________________
Sam
गीता दर्शन भाग-1-m
सत्य की तरह जो मान लेता है, उसके समाने दो विकल्प हैं। या तो | | तो प्रसन्न नहीं होता। कहता नहीं, कि आइए, स्वागत है, बड़ा सपने में डूबे, भोगे; या सपने से भागे और त्यागे।
अच्छा हुआ। गीता, भोग और त्याग दोनों की अतियों को सपने के बीच ___ जागने का अर्थ यह है, जहां हैं-कहीं न कहीं हैं, किसी न मानेगी। जागना! और जागने के लिए ही वे कह रहे हैं कि तू पहचान | | किसी सपने में हैं; कोई आश्रम के सपने में होगा, कोई दूकान के अर्जुन, क्या सत है, क्या असत है! यह तू पहचान, तो यह | सपने में होगा—जहां हैं, किसी न किसी सपने में हैं, वहां जागें। पहचान, यह रिकग्नीशन ही तेरा जागरण बन जाने वाला है। इस सपने को पहचानें कि यह सत्य है ? इस बात की जिज्ञासा, इस
बात की खोज कि जो मैं देख रहा हूं, वह क्या है? .
नहीं, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप कहने लगें, यह सपना है। प्रश्नः भगवान श्री, आप यह तो कहेंगे न कि जागना | अगर आपको कहना पड़े कि यह सपना है, तो जागना नहीं होगा, भी भागने का शीर्षासन है? इतना तो एफर्ट करना तब एफर्ट होगा। अगर आपको कोशिश करनी पड़े कि यह सब पड़ेगा!
सपना है, आपको अगर कोशिश करके अपने को समझाना पड़े कि यह सब सपना है, तब तो समझ लेना कि अभी आपको सपने का
| पता नहीं चला। सपने का पता अगर चल जाए, तो यह कहने की न हीं, जागना भागने से जरा भी संबंधित नहीं है। | कोई जरूरत नहीं रह जाती कि सब सपना है। सब सपना है, यह UI जागना भागने से संबंधित ही नहीं है। क्योंकि जागने | | तो वही आदमी दोहराता है अपने मन में, जिसे अभी सपने का कोई
में भागने का कोई भी तत्व नहीं है, विपरीत तत्व भी | | भी पता नहीं है। नहीं है; दूसरी तरफ भागना भी नहीं है। जागने का मतलब ही है कि | एक सूफी फकीर को मेरे पास लाए थे। वह मित्र जो लाए थे, जो है, उसे हम देखने को तत्पर होते हैं।
कहने लगे कि उन फकीर को सब जगह परमात्मा ही परमात्मा धन है, इसके साथ भागने के दो काम हो सकते हैं। एक काम | दिखाई पड़ता है। मैंने उनसे पूछा कि जगह भी दिखाई पड़ती है? हो सकता है कि इसे छाती से लगाकर पकड़कर बैठ जाएं; इसमें | | परमात्मा भी दिखाई पड़ता है ? दोनों दिखाई पड़ते हैं ? उन्होंने कहा, ' से एक पैसा न भाग जाए, इसका ध्यान रखें। दूसरा हो सकता है | | हां, उन्हें कण-कण में परमात्मा दिखाई पड़ता है। तो मैंने कहा, कण कि इससे ऐसे भागें कि लौटकर न देखें।
भी दिखाई पड़ता है, कण में परमात्मा भी दिखाई पड़ता है ? ऐसा? मुझे कोई कह रहा था कि विनोबा के सामने पैसा करो, तो दूसरी| उन्होंने कहा, आप कैसी बातें पूछते हैं? मैंने कहा, अगर परमात्मा तरफ मुंह कर लेते हैं। पैसे से इतना डर! तो पैसे में काफी ताकत ही दिखाई पड़ता है, तो अब कण दिखाई नहीं पड़ना चाहिए। और मालूम पड़ती है। रामकृष्ण के पास अगर कोई पैसा रख दे, तो ऐसी कण दिखाई पड़ता है, तो परमात्मा आरोपित होगा, इंपोज्ड होगा। छलांग लगाकर उचकते हैं कि सांप-बिच्छू आ गया। पैसे में कोशिश की गई होगी। सांप-बिच्छ? तो सपना टटा नहीं। सपने ने दसरी शकल ली। | इसलिए जो आदमी कहता है। कण-कण में परमात्मा दिखाई पहले पैसा स्वर्ग मालूम पड़ता था, अब नर्क मालूम पड़ने लगा। पड़ता है, उसे दो चीजें दिखाई पड़ रही हैं, कण भी दिखाई पड़ रहा लेकिन पैसा कुछ है-यह जारी है।
है, परमात्मा भी दिखाई पड़ रहा है। ये दोनों चीजें एक साथ दिखाई पैसा कुछ भी नहीं है। है तो लहर है-न भागने योग्य, न नहीं पड़ सकतीं। इनमें से एक ही चीज एक बार दिखाई पड़ सकती पकड़ने योग्य। जागना बहुत और बात है। उसमें पैसे से आंख बंद है। अगर परमात्मा दिखाई पड़ता है, तो कण दिखाई नहीं पड़ता। करने की जरूरत नहीं है, पैसे को छाती से पकड़ लेने की जरूरत | क्योंकि परमात्मा के अतिरिक्त कण की कोई जगह नहीं रह जाती, नहीं है। पैसा वहां है, आप यहां हैं। पैसे ने कभी आपको नहीं | जहां उसे देखें। और अगर कण दिखाई पड़ता है, तो परमात्मा पकड़ा, न पैसा कभी आपसे भागा। आपकी पैसे ने इतनी फिक्र नहीं दिखाई नहीं पड़ता। क्योंकि जब तक कण दिखाई पड़ रहा है, तब की, जितनी फिक्र आप पैसे की कर रहे हैं। पैसा कहीं ज्यादा ज्ञानी तक परमात्मा दिखाई पड़ना मुश्किल है। मालम पड़ता है। आप चले जाओ तो रोता नहीं है. आप आ जाओ | तो मैंने उनसे कहा, कोशिश की होगी, समझाया होगा अपने