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________________ गीता दर्शन भाग-1 40 वाली बात थी। क्योंकि वह कोरा कागज ही ले आया था। गुरु ने पूछा कि क्या बना नहीं पाए ? उसने कहा कि नहीं, चित्र बना है, देखें। फिर गुरु ने उसके कागज की तरफ देखा, और शिष्यों भी कागज की तरफ देखा; फिर सबने उसकी तरफ देखा और पूछा कि गाय कहां है ! तो उसने कहा, गाय घास चरकर जा चुकी है। उन्होंने पूछा कि घास कहां है? तो उसने कहा कि घास गाय चर गई। तो उन्होंने पूछा, इसमें फिर क्या बचा? तो उसने कहा, जो गाय के पहले भी था और घास के पहले भी था, और गाय के बाद भी बचता है और घास के बाद भी बचता है, वही मैं बना लाया हूं। लेकिन वे सब कहने लगे, यह कोरा कागज है ! पर उसने कहा कि यही बचता है - यह कोरापन । कृष्ण इस कोरेपन को सूक्ष्म कह रहे हैं। जो सब लहरों के उठ जाने, गिर जाने पर बच जाता है। और जो सदा बच जाता है, वही सत है। प्रश्न : भगवान श्री, नथिंगनेस वर्सेस एवरीथिंगनेस में आप कभी आपके प्रवचन में भागना और जागना जो प्रयोग करते हैं, तो मैं उससे भागूं या जागूं, इससे उसको क्या मतलब है? इसमें क्या एफर्ट का तत्व नहीं आता ? और टोटल एक्सेप्टिबिलिटी में ईविल का क्या स्थान होता है ? शू | न्य, नथिंगनेस और सब कुछ, एवरीथिंगनेस, एक ही चीज को कहने के दो ढंग हैं दो ओर से नकार से या विधेय से, निगेटिव से या पाजिटिव से। जब हम कहते हैं शून्य, तो यह हमारा चुनाव है नकार का। जब हम कहते हैं पूर्ण, तो यह हमारा चुनाव है विधेय का। लेकिन मजे की बात है कि सिर्फ शून्य ही पूर्ण होता है और पूर्ण ही शून्य होता है। सिर्फ शून्य ही पूर्ण होता है, क्योंकि शून्य के अपूर्ण होने का कोई उपाय नहीं है। आप अधूरा शून्य नहीं खींच सकते। आप शून्य के दो हिस्से नहीं कर सकते। आप शून्य में से कितना ही निकाल लें, तो भी शून्य में कुछ कम नहीं होता। आप शून्य में कितना ही जोड़ दें, कुछ बढ़ता नहीं। में शून्य का मतलब ही यह है कि उससे बाहर-भीतर कुछ नहीं निकाला जा सकता। का भी मतलब यही है। पूर्ण का मतलब ही यह है कि जिसमें जोड़ने को कुछ नहीं बचा। क्योंकि पूर्ण के बाहर कुछ नहीं बच सकता। दि टोटल, अब उसके बाहर कुछ बचा नहीं, जिसको जोड़ें। जिसमें से कुछ निकालें तो कोई जगह नहीं बची, क्योंकि टोटल के बाहर कोई जगह नहीं बच जाएगी, जिसमें निकाल लें। शून्य से कुछ निकालें, तो पीछे शून्य ही बचता है। शून्य में कुछ जोड़ें, तो उतना ही शून्य रहता है । पूर्ण से कुछ निकालने का उपाय नहीं, पूर्ण में कुछ जोड़ने का उपाय नहीं । क्योंकि पूर्ण में अगर कुछ जोड़ा जा सके, तो इसका मतलब है कि वह अपूर्ण था पहले, अब उसमें कुछ जोड़ा जा सकता है। शून्य और पूर्ण एक ही सत्य के दो नाम हैं। हमारे पास दो रास्ते हैं, जहां से हम नाम दे सकते हैं। या तो हम नकार का उपयोग करें, या विधेय का उपयोग करें। सब कुछ और कुछ भी नहीं, एक ही बात को कहने के दो ढंग हैं। यह हमारा चुनाव है कि हम कैसे इसे. कहें। अगर यह खयाल में आ जाए, तो इस जगत में उठे बहुत बड़े |विवाद की बुनियादी आधारशिला गिर जाती है। N बुद्ध और शंकर के बीच कोई विवाद नहीं है। सिर्फ नकार और विधेय के शब्दों के प्रयोग का फासला और भिन्नता है । बुद्ध नकारात्मक शब्दों का प्रयोग करते हैं। वे कहते हैं, नहीं है, शून्य है, निर्वाण है। निर्वाण का मतलब, दीए का बुझ जाना। जैसे दीया बुझ जाता है; बस, ऐसे ही सब कुछ नहीं हो जाता है। शंकर कहते हैं, सब है, ब्रह्म है, मोक्ष है, ज्ञान है । सब विधेय शब्दों का प्रयोग करते हैं। और बड़े मजे की बात यह है कि ये दोनों इशारे बिलकुल एक चीज की तरफ हैं। शंकर और बुद्ध से करीब दूसरे आदमी खोजना मुश्किल है। लेकिन शंकर और बुद्ध के करीब ही इस मुल्क का सबसे बड़ा विवाद खड़ा हुआ। हां और न | | के बीच कितना फांसला मालूम पड़ता है! इससे ज्यादा उलटे शब्द नहीं हो सकते। लेकिन पूर्ण हां और पूर्ण न के बीच कोई फासला नहीं है। लेकिन वह हमें अनुभव हो जाए दो में से किसी एक का भी, तो ही दिखाई पड़ सकता है। - पूछा है कि मैं कहता हूं, भागें मत, जागें – समग्र के प्रति जागें । क्योंकि भागने का मतलब ही यह है कि हमने समग्र में कुछ चुनाव कर लिया कि इसे छोड़ेंगे, उसे पकड़ेंगे, तभी भागा जा सकता है। भागने का मतलब है कि कुछ हम छोड़ेंगे और कुछ हम पकड़ेंगे। | अगर पूरे को छोड़ें, तो भागकर कहां जाएंगे? अगर पूरे को स्वीकार करें, तो भागकर कहां जाएंगे? अगर त्याग पूर्ण हो, तो भागना नहीं 112
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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