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m-भागना नहीं-जागना है AM
तो भी है, जागें तो भी है, जागकर भी जागें तो भी है; निद्रा में भी | जानेंगे कि असत्य क्या है? सत्य पता हो, तो ही असत्य को जान है, जागरण में भी है, समाधि में भी है; जो चेतना की हर स्थिति में | | सकेंगे। और सत्य हमें पता नहीं है। ही है, उसका नाम सत है। और ऐसा जो सत है, वह सदा है, | लेकिन इससे उलटी बात भी कही जा सकती है। और सोफिस्ट सनातन है, अनादि है, अनंत है।
उलटी दलील भी देते रहे हैं। वे कहते हैं कि जब तक हमें यही पता जो ऐसे सत को पहचान लेते हैं, वे बीच में आने वाले असत के | नहीं है कि असत्य क्या है, तो हम कैसे समझ लेंगे कि सत्य क्या भंवर को, असत की लहरों को देखकर न सुखी होते हैं, न दुखी | | है! यह चक्रीय तर्क वैसा ही है, जैसे अंडे और मुर्गी का है। कौन होते हैं। क्योंकि वे जानते हैं, जो क्षणभर पहले नहीं था, वह क्षणभर | पहले है? अंडा पहले है या मुर्गी पहले है? कहें कि मुर्गी पहले है बाद नहीं हो जाएगा। दोनों ओर न होने की खाई है, बीच में होने | तो मुश्किल में पड़ जाते हैं, क्योंकि मुर्गी बिना अंडे के नहीं हो का शिखर है। तो स्वप्न है। तो असत है। दोनों ओर होने का ही | | सकेगी। कहें कि अंडा पहले है तो उतनी ही कठिनाई खड़ी हो जाती विस्तार है अंतहीन, तो जो है, वह सत है।
है, क्योंकि अंडा बिना मुर्गी के रखे रखा नहीं जा सकेगा। लेकिन कसौटी, कृष्ण कीमती कसौटी हाथ में देते हैं, उससे सत की | | कहीं से प्रारंभ करना पड़ेगा, अन्यथा उस दुष्चक्र में, उस विशियस परख हो सकती है। सुख अभी है, अभी क्षणभर पहले नहीं था, | सर्किल में कहीं कोई प्रारंभ नहीं है।
और अभी क्षणभर बाद फिर नहीं हो जाता है। दुख अभी है, क्षणभर | | अगर ठीक से पहचानें, तो मुर्गी और अंडे दो नहीं हैं। इसीलिए पहले नहीं था, क्षणभर बाद नहीं हो जाता है। जीवन अभी है, कल दुष्चक्र पैदा होता है। अंडा, हो रही मुर्गी है; मुर्गी, बन रहा अंडा नहीं था, कल फिर नहीं हो जाता है। जो-जो चीजें बीच में होती हैं है। वे दो नहीं हैं; वे एक ही प्रोसेस, एक ही हिस्से के, एक ही लहर
और दोनों छोरों पर नहीं होती हैं, वे बीच में केवल होने का धोखा के दो भाग हैं। और इसीलिए दुष्चक्र पैदा होता है कि कौन पहले! ही दे पाती हैं। क्योंकि जो दोनों ओर नहीं है, वह बीच में भी नहीं उनमें कोई भी पहले नहीं है। एक ही साथ हैं, साइमलटेनियस हैं, हो सकता है। सिर्फ भासता है, दिखाई पड़ता है, एपीअर होता है। युगपत हैं। अंडा मुर्गी है, मुर्गी अंडा है।
जीवन की प्रत्येक चीज को इस कसौटी पर कसा जा सकता है। यह सत और असत का भी करीब-करीब सवाल ऐसा है। वह अर्जुन से कृष्ण यही कह रहे हैं कि तू कसकर देख। जो अतीत में | | जिसको हम असत कहते हैं, उसका आधार भी सत है। क्योंकि वह नहीं था, जो भविष्य में नहीं होगा, उसके अभी होने के व्यामोह में | असत भी सत होकर ही भासता है; वह भी दिखाई पड़ता है। एक मत पड़। वह अभी भी वस्तुतः नहीं है; वह अभी भी सिर्फ दिखाई | रस्सी पड़ी है और अंधेरे में सांप दिखाई पड़ती है। सांप का दिखाई पड़ रहा है; वह सिर्फ होने का धोखा दे रहा है। और तू धोखे से | पड़ना बिलकुल ही असत है। पास जाते हैं और पाते हैं कि सांप जाग भी न पाएगा कि वह नहीं हो जाएगा। तू उस पर ध्यान दे, जो | नहीं है, लेकिन पाते हैं कि रस्सी है। वह रस्सी सांप जैसी भास पहले भी था, जो अभी भी है और आगे भी होगा। हो सकता है, | | सकी, पर रस्सी थी भीतर। रस्सी का होना सत है। वह सांप एक वह तुझे दिखाई भी न पड़ रहा हो, लेकिन वही है। तू उसकी ही | क्षण को दिखाई पड़ा, फिर नहीं दिखाई पड़ा, वह असत था। पर तलाश कर, तू उसकी ही खोज कर।
वह भी, उसके आधार में भी सत था, सब्सटैंस में, कहीं गहरे में जीवन में सत्य की खोज. असत्य की परख से शरू होती है। ट |सत था। उस सत के ही आभास से, उस सत के ही प्रतिफलन से नो दि फाल्स एज दि फाल्स, मिथ्या को जानना मिथ्या की भांति, वह असत भी भास सका है। असत को पहचान लेना असत की भांति, सत्य की खोज का आधार | लहर के पीछे भी सागर है, मर्त्य के पीछे भी अमृत है, शरीर के है। सत्य को खोजने का और कोई आधार भी नहीं है हमारे पास। पीछे भी आत्मा है, पदार्थ के पीछे भी परमात्मा है। अगर पदार्थ भी हम कैसे खोजें कि सत क्या है? सत्य क्या है? हम ऐसे ही शुरू भासता है, तो परमात्मा के ही प्रतिफलन से, रिफ्लेक्शन से भासता कर सकते हैं कि असत्य क्या है।
है, अन्यथा भास नहीं सकता। कई बार बड़ी उलझन पैदा होती है। क्योंकि कहा जा सकता है| आप एक नदी के किनारे खड़े हैं और नीचे आपका प्रतिबिंब कि जब तक हमें सत्य पता न हो, तब तक हम कैसे जानेंगे कि बनता है। निश्चित ही वह प्रतिबिंब आप नहीं हैं, लेकिन वह असत्य क्या है! जब तक हमें सत्य पता न हो, तब तक हम कैसे प्रतिबिंब आपके बिना भी नहीं है। निश्चित ही वह प्रतिबिंब सत नहीं
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