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________________ Sam गीता दर्शन भाग-1 AM है, पानी पर बनी केवल छवि है। लेकिन फिर भी वह प्रतिबिंब जहां | आप पाएंगे कि आपके भीतर कोई रूपांतरित होता चला जा रहा है। से आ रहा है, वहां सत है। और जहां कल मन पकड़ लेने का होता था, आज वहां मुट्ठी नहीं ___ असत, सत की ही झलक है क्षणभर को मिली। क्षणभर को सत | | बंधती। कल जहां मन रोक लेने का होता था किसी स्थिति को, ने जो आकृति ली, अगर हमने उस आकृति को जोर से पकड़ | | आज वहां हंसकर गुजर जाने का मन होता है। क्योंकि जो दोनों लिया, तो हम असत को पकड़ लेते हैं। और अगर हमने उस | | तरफ नहीं है, उसे पकड़ना, हवा को मुट्ठी में बांधने जैसा है। जितने आकृति में से उसको पहचान लिया जो निराकार, निर्गुण, उस जोर से पकड़ो, उतने ही बाहर हाथ के हो जाती है। मत पकड़ो तो क्षणभर आकृति में झलका था, तो हम सत को पकड़ लेते हैं। बनी रहती है; पकड़ो तो खो जाती है। किन जहां हम खड़े हैं, वहां आकृतियों का जगत है। जहां हम जैसे ही यह दिखाई पड़ गया कि दो नहीं के बीच में जो है. है खड़े हैं, वहां प्रतिफलन ही दिखाई पड़ते हैं। हमारी आंखें इस तरह | मालूम पड़ता है, वह स्वप्न है, वैसे ही आपकी जिंदगी से असत झुकी हैं कि नदी के तट पर कौन खड़ा है, वह दिखाई नहीं पड़ता; की पकड़ गिरनी शुरू हो जाएगी; स्वप्न बिखरना शुरू हो जाएगा। नदी के जल में जो प्रतिबिंब बन रहा है, वही दिखाई पड़ता है। हमें | तब जो शेष रह जाता है, दि रिमेनिंग, वह सत्य है। जिसको आप उससे ही शुरू करना पड़ेगा; हमें असत से ही शुरू करना पड़ेगा। | पूरी तरह जागकर भी नहीं मिटा पाते, जिसको आप पूरी तरह स्मरण हम स्वप्न में हैं, तो स्वप्न से ही शुरू करना पड़ेगा। अगर हम स्वप्न | करके भी नहीं मिटा पाते, जो आपके बावजूद शेष रह जाता है, वही को ठीक से पहचानते जाएं, तो स्वप्न तिरोहित होता चला जाएगा। | सत्य है। वह शाश्वत है; उसका कोई आदि नहीं है, कोई अंत नहीं यह बड़े मजे की बात है, कभी प्रयोग करने जैसा अदभुत है। है। कहना चाहिए, वह टाइमलेस है। रोज रात को सोते समय स्मरण रखकर सोएं, सोते-सोते एक ही यह भी थोड़ा समझ लेने जैसा है। स्मरण रखे रहें कि जब स्वप्न आए तब मझे होश बना रहे कि यह असत हमेशा टाइम में होगा, समय में होगा। क्योंकि जो कल स्वप्न है। बहुत कठिन पड़ेगा, लेकिन संभव हो जाता है। नींद | नहीं था, आज है, और कल नहीं हो जाएगा, उसके समय के तीन लगती जाए, लगती जाए, और आप स्मरण करते जाएं, करते जाएं | विभाजन हुए–अतीत, वर्तमान और भविष्य। लेकिन जो कल भी कि जैसे ही स्वप्न आए, मैं जान पाऊं कि यह स्वप्न है। थोड़े ही था, आज भी है, कल भी होगा, उसके तीन विभाजन नहीं हो दिन में यह संभव हो जाता है. नींद में भी यह स्मति प्रवेश कर जाती सकते। उसका कौन-सा अतीत है? उसका कौन-सा वर्तमान है? है। अचेतन में उतर जाती है। और जैसे ही स्वप्न आता है, वैसे ही | | उसका कौन-सा भविष्य है? वह सिर्फ है। इसलिए सत्य के साथ पता चलता है, यह स्वप्न है। | टाइम सेंस नहीं है, समय की कोई धारणा नहीं है। सत कालातीत लेकिन एक बहुत मजे की घटना है। जैसे ही पता चलता है, यह है, समय के बाहर है। असत समय के भीतर है। स्वप्न है, स्वप्न तत्काल टूट जाता है—तत्काल, इधर पता चला जैसे मैंने कहा, आप नदी के तट पर खड़े हैं और आपका कि यह स्वप्न है कि उधर स्वप्न टूटा और बिखरा। स्वप्न को स्वप्न प्रतिफलन, रिफ्लेक्शन नदी में बन रहा है। आप नदी के बाहर हो की भांति पहचान लेना, उसकी हत्या कर देनी है। वह तभी तक जी सकते हैं, लेकिन रिफ्लेक्शन सदा नदी के भीतर ही बन सकता है। सकता है, जब तक सत्य प्रतीत हो। उसके जीने का आधार उसके | | पानी का माध्यम जरूरी है। कोई भी माध्यम जो दर्पण का काम कर सत्य होने की प्रतीति में है। सके, कोई भी माध्यम जो प्रतिफलन कर सके, वह जरूरी है। इस प्रयोग को जरूर करना ही चाहिए। आपके होने के लिए, कोई प्रतिफलन करने वाले माध्यम की इस प्रयोग के बाद कृष्ण का यह सूत्र बहुत साफ समझ में आ जरूरत नहीं है। लेकिन आपका चित्र बन सके, उसके लिए जाएगा कि वे इतना जोर देकर क्यों कह रहे हैं कि अर्जुन, असत प्रतिफलन के माध्यम की जरूरत है। और सत के बीच की भेद-रेखा को जो पहचान लेता है, वह ज्ञान टाइम, समय प्रतिफलन का माध्यम है। किनारे पर सत खड़ा को उपलब्ध हो जाता है। स्वप्न से ही शुरू करें रात के, फिर बाद होता है, समय में असत पैदा होता है। समय की धारा में, समय के में दिन के स्वप्न को भी जागकर देखें और वहां भी स्मरण रखें कि दर्पण पर, टाइम मिरर पर जो प्रतिफलन बनता है, वह असत है। जो है-दो नहीं के बीच में वह स्वप्न है। और तब अचानक । और समय में कोई भी चीज थिर नहीं हो सकती। जैसे पानी में कोई 11081
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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