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गीता दर्शन भाग-1 -
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः। | से, तो भी छाती धड़कती रही है। जागकर देख लिया है कि स्वप्न उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ।। १६ ।। । | था, लेकिन छाती धड़की जा रही है, हाथ-पैर कंपे जा रहे हैं। और हे अर्जुन, असत (वस्तु) का तो अस्तित्व नहीं है और यदि वह स्वप्न बिलकुल ही नहीं होता, तो उसका कोई भी सत का अभाव नहीं है। इस प्रकार, इन दोनों को हम परिणाम नहीं हो सकता था। था, लेकिन उस अर्थ में नहीं था. जिस तत्व-ज्ञानी पुरुषों द्वारा देखा गया है। | अर्थ में जागकर जो दिखाई पड़ता है, वह है। उसे किस कोटि में
रखें न होने की, होने की? उसे किस जगह रखें ? था जरूर और
फिर भी नहीं है! क पा है सत्य, क्या है असत्य, उसके भेद को पहचान | असत की जो कोटि है, असत की जो केटेगरी है, अनरियल की पपा लेना ही ज्ञान है, प्रज्ञा है। किसे कहें है और | जो कोटि है, वह अनस्तित्व की कोटि नहीं है। अनरियल, असत
किसे कहें नहीं है, इन दोनों की भेद-रेखा को | की कोटि अस्तित्व और अनस्तित्व के बीच की कोटि है। ऐसा सत, खींच लेना ही जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। क्या है स्वप्न | जो सत मालूम पड़ता है, लेकिन नहीं है।
और क्या है यथार्थ, इसके अंतर को समझ लेना ही मुक्ति का मार्ग | | लेकिन हम यह कैसे जानेंगे? क्योंकि स्वप्न में तो पता नहीं है। कृष्ण ने इस वचन में कहा है, जो है, और सदा है, और जिसके पड़ता कि जो हम देख रहे हैं, वह नहीं है। स्वप्न में तो मालूम होता न होने का कोई उपाय नहीं है, जिसके न होने की कोई संभावना ही | | है, जो देख रहे हैं, वह बिलकुल है। और ऐसा नहीं है कि पहली नहीं है, वही सत है, वही रियल है। जो है, लेकिन कभी नहीं था दफे स्वप्न देखने में ऐसा मालूम पड़ता हो। जीवनभर स्वप्न देखकर
और कभी फिर नहीं हो सकता है, जिसके न हो जाने की संभावना | | भी और रोज सुबह जागकर भी, जानकर कि नहीं था, आज रात है, वही असत है, वही अनरियल है।
| फिर जब स्वप्न आएगा, तब स्वप्न में पूरी तरह लगेगा कि है। यहां बहुत समझ लेने जैसी बात है। साधारणतः असत, | | लगता है पूरी तरह कि है; भासता है पूरी तरह कि है; फिर भी सुबह अनरियल हम उसे कहते हैं, जो नहीं है। लेकिन जो नहीं है, उसे तो | जागकर पाते हैं कि नहीं है। असत कहने का भी कोई अर्थ नहीं है। जो नहीं है, उसे तो कुछ भी __ यह जो एपिअरेंस है, भासना है, यह जो दिखाई पड़ना है, यह ' कहने का कोई अर्थ नहीं है। जो नहीं है, उसे इतना भी कहना कि जो होने जैसा धोखा है, इसका नाम असत है। संसार को जब असत वह नहीं है, गलत है, क्योंकि हम है शब्द का प्रयोग कर रहे हैं। कहा है, तो उसका यह अर्थ नहीं है कि संसार नहीं है। उसका इतना जब हम कहते हैं नहीं है, तब भी हम है शब्द का प्रयोग कर रहे हैं। ही अर्थ है कि चेतना की ऐसी अवस्था भी है, जब हम जागने से जो नहीं है, उसके लिए नहीं है, कहना भी गलत है। जो नहीं है, | | भी जागते हैं। अभी हम स्वप्न से जागकर देखते हैं, तो पाते हैं, वह नहीं ही है, उसकी कोई बात ही अर्थहीन है।
स्वप्न नहीं है। लेकिन जब हम जागने से भी जागकर देखते हैं, तो इसलिए असत का अर्थ नान-एक्झिस्टेंट नहीं होता है। असत | | पाते हैं कि जिसे जागने में जाना था, वह भी नहीं है। जागने से भी का अर्थ होता है, जो नहीं है, फिर भी है; जो नहीं है, फिर भी होने | | जाग जाने का नाम समाधि है। जिसे अभी हम जागना कह रहे हैं, का भ्रम देता है; जो नहीं है, फिर भी प्रतीत होता है कि है। रात स्वप्न | जब इससे भी जागते हैं, तब पता चलता है कि जो देखा था, वह देखा है, यह नहीं कह सकते कि वह नहीं है। नहीं था, तो देखा | भी नहीं है। कैसे? नहीं था, तो स्वप्न भी हो सके, यह संभव नहीं है। देखा है, | | कृष्ण कह रहे हैं, जिसके आगे-पीछे न होना हो और बीच में जीया है, गुजरे हैं, लेकिन सुबह उठकर कहते हैं कि स्वप्न था। होना हो, वह असत है। जो एक समय था कि नहीं था और एक ___ यह सुबह उठकर जिसे स्वप्न कहते हैं, उसे बिलकुल नहीं, | समय आता है कि नहीं हो जाता है, उसके बीच की जो घटना है, नान-एक्झिस्टेंट नहीं कहा जा सकता। था तो जरूर। देखा है, गुजरे | | बीच की जो हैपनिंग है, दो न होने के बीच जो होना है, उसका नाम हैं। और ऐसा भी नहीं था कि जिसका परिणाम न हुआ हो। जब रात | | असत है; उसका नाम अनरियल है। स्वप्न में भयभीत हुए हैं, तो कंप गए हैं। असली शरीर कंप गया | लेकिन जिसका न होना है ही नहीं, जिसके पीछे भी होना है, है, प्राण कंप गए हैं, रोएं खड़े हो गए हैं। नींद भी टूट गई है स्वप्न | बीच में भी होना है, आगे भी होना है, जो तीनों तलों पर है ही; सोएं
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