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मृत्यु के पीछे अजन्मा, अमृत और सनातन का दर्शन AM
हो जाएगा। असाधारण मृत्यु में, योगिक मृत्यु में, महामृत्यु में, कामना, उसकी अपनी वासना को तिरोहित करेगी। निर्वाण में नहीं कोई शरीर रह जाता, सिर्फ अस्तित्व ही रह जाता है। यह बड़े मजे की बात है कि दूसरे की वासना जगाने में हम अपनी नहीं कोई लहर रह जाती, बस सागर ही रह जाता है। ही वासना जगाते हैं। और दूसरे की वासना मिटाने में हम अपनी ही
वासना मिटाते हैं। असल में दूसरे के साथ जो हम करते हैं, गहरे
में अपने ही साथ करते हैं। सच तो यह है कि दूसरे के साथ सिर्फ प्रश्नः भगवान श्री, वासनामय सूक्ष्म शरीर की शांति किए जाने का दिखावा हो सकता है, सब करना अंततः अपने ही के लिए क्या पुत्र-पत्नी कुछ कर सकते हैं? क्योंकि साथ है। उपयोगी है, लेकिन कृपा करके ऐसा मत सोचें कि वह जो गीता में पिंडदान का उल्लेख आता है।
दूसरा यात्रा पर निकल गया है, उसके लिए उपयोगी है। आपके लिए उपयोगी है। आपके लिए सार्थक है।
लेकिन शायद ऐसा अगर कहा गया होता जैसा मैं कह रहा हूं, वासना, प्रत्येक व्यक्ति की अपनी है, दूसरा उसमें कुछ | तो शायद पत्नी प्रार्थना भी न करे। सोचेगी, ठीक है। लेकिन मरे पा भी नहीं कर सकता। वासना मेरी है, मेरी पत्नी कुछ | हुए पति के लिए इतना करने की आकांक्षा उसके मन में होती है कि
नहीं कर सकती। हां, लेकिन मेरी वासना के लिए . | शायद उनको सुगम मार्ग मिल जाए, आनंद की राह मिल जाए, करने के बहाने से अपनी वासना के लिए कुछ कर सकती है। पर स्वर्ग का द्वार मिल जाए। वह बहुत दूसरी बात है।
होने का बुनियादी कारण है। क्योंकि जिंदा रहते तो हम ___ पति मर गया है। पत्नी अपने पति को वासनामुक्त करने की | एक-दूसरे को सिर्फ नर्क के द्वार तक पहुंचाते हैं, एक-दूसरे को कोशिश करती है—प्रार्थना करती है, हवन करती है, पिंडदान | दुख में धक्के देते हैं। इसलिए मरने के बाद पछतावा, रिपेंटेंस शुरू करती है, कुछ भी करती है, कोई आयोजन करती है—इससे उसके | होता है। मरने के बाद पति पत्नी को जितना प्रेम करता हुआ दिखाई पति की वासना में कोई अंतर नहीं पड़ सकता है, लेकिन उसकी पड़ने लगता है, ऐसा जिंदगी में कभी नहीं किया था। रिपेंटेंस शुरू स्वयं की वासना में अंतर पड़ सकता है। और योजना का सीक्रेट होता है। जीते के साथ जो किया था, उससे बिलकुल उलटा करना यही है।
शुरू होता है। योजना पति की वासना-मुक्ति के लिए नहीं है। क्योंकि पति की बाप के साथ बेटा जिंदा में जो कर रहा था, वह मरने के बाद वासना-मक्ति अगर आप करवा दें, तब तो पति को वासना भी कछ और करने लगता है। जिंदा में कभी आदर न दिया था. मरने पकड़ा सकते हैं आप। तब तो इस दुनिया में मुक्ति मुश्किल हो के बाद तस्वीर, फोटो लगाता है, फूल चढ़ाता है! जिंदा में कभी पैर जाएगी। महावीर मर जाएं और महावीर की पत्नी वासना पकड़ाए, न दबाए थे, मरने के बाद राख को समेटकर गंगा ले जाता है। जिंदा तो महावीर क्या करेंगे। क्योंकि जिसे हम मुक्त कर सकते हैं, उसे बाप ने कहा होता कि गंगा ले चलो, तो भूलकर न ले गया होता। हम बांध भी सकते हैं। तब तो मुक्ति भी बंधन बन जाएगी; तब तो | मरे बाप को गंगा ले जाता है! मुक्ति भी असंभव है।
__ यह बहुत गहरे में हमारा जो जगत है, इसमें हम जिंदा लोगों के नहीं, लेकिन राज दूसरा है, सीक्रेट दूसरा है। वह सीक्रेट | साथ इतना दुर्व्यवहार कर रहे हैं कि सिर्फ मरों के साथ क्षमायाचना साधारणतः खोला नहीं गया है। राज यह है कि पति मर गया है; | कर सकते हैं, और कुछ नहीं। इसलिए पति के लिए पत्नी कर पति के लिए तो पत्नी कुछ भी नहीं कर सकती। जिंदा में ही कुछ । सकती है, पति पत्नी के लिए कर सकता है, बेटा बाप के लिए कर नहीं कर सकती, मरने के बाद करना तो बहुत मुश्किल है। दूसरे सकता है, बेटा मां के लिए कर सकता है। अपने लिए शायद नहीं का अपना होना है, जिसमें हमारा कोई प्रवेश नहीं है-न पति का, | भी करेगा। न पत्नी का, न मां का, न पिता का। लेकिन पति के बहाने वह जो | | इसलिए एक बहुत मनोवैज्ञानिक सत्य'को, एक बहुत गलत करेगी-अगर वह पति को वासना-मुक्त करने की आकांक्षा से | | कारण देकर पकड़ाने की कोशिश की गई है। वह सत्य केवल इतना प्रार्थना करे, तो यह प्रार्थना, यह आकांक्षा, यह वासना-मुक्ति की है कि हम अपनी वासना को, दूसरे की वासना-शांति के लिए किए