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________________ mm गीता दर्शन भाग-1 +m में उपलब्ध होने लगेगी, जिस-जिस चीज का अवसर बनने लगेगा, | | लगता है। फिर एक बड़ा महल बनाता है, थोड़े दिन में वह भी छोटा वह सूक्ष्म शरीर उन-उन चीजों को प्रकट करना शुरू कर देगा। | | मालूम पड़ने लगता है। लेकिन एक बार ऐसी मृत्यु भी होती है, जब सूक्ष्म शरीर भी | | असल में आदमी के पास इतना बड़ा अस्तित्व है कि पूरा आपके साथ नहीं होता। वैसी मृत्यु को ही मुक्ति, वैसी मृत्यु को ही | | आकाश भी छोटा है। इसलिए वह कितने ही बड़े मकान बनाता मोक्ष...। उसके बाद सिर्फ अस्तित्व होता है, फिर कोई अभिव्यक्त | | जाए, सब छोटे पड़ जाएंगे। उसको इतनी स्पेस चाहिए, जितनी शरीर नहीं होता। लेकिन साधारण मृत्यु में आपके साथ एक शरीर | | परमात्मा को मिली है। बस, इससे कम में काम नहीं चल सकता। होता है। असाधारण मत्य है वह, महामत्य है, समाधिस्थ की होती वहां भी भीतर परमात्मा ही है। वह पुरी जगह चाहता है, वह असीम है। जो इस जन्म में समाधि को उपलब्ध होगा, उसका मतलब होता चाहता है, जहां कहीं कोई सीमा न आती हो। जहां भी सीमा है कि उसने जीते जी अपने सूक्ष्म शरीर को विसर्जित कर दिया। आएगी, वहीं बंधन मालूम होगा। और शरीर बहुत तरह की सीमाएं समाधि का मतलब ही यही है कि उसने जीते जी सूक्ष्म शरीर को | बना लेता है। देखने की सीमा, सुनने की सीमा, सोचने की सीमा, विसर्जित कर दिया, बिल्ट-इन-प्रोग्रैम तोड़ डाला। अब आगे की | | सब चीज की सीमा है। यात्रा के लिए उसके पास कोई योजना न रही। अब न कोई | और असीम है अस्तित्व और सीमित है अभिव्यक्ति, इसलिए पंचवर्षीय योजना है उसके पास, न कोई पांच जीवन की। अब | | अभिव्यक्ति से मुक्त होना ही संसार से मुक्त होना है। वह जिसको उसके पास कोई योजना नहीं है। अब वह योजना-मुक्त हो गया। | हम पुरानी भाषा में कहें, आवागमन से मुक्त होना, वह अभिव्यक्ति अब इस शरीर के गिरते ही उसके पास सिर्फ अस्तित्व रह जाएगा, | से मुक्त होना है। वह शुद्ध अस्तित्व की तलाश है, प्योर अभिव्यक्ति नहीं। एक्झिस्टेंस की तलाश है। वह उस अस्तित्व की तलाश है, जहां अभिव्यक्ति बंधन है, क्योंकि अभिव्यक्ति पूरे की अभिव्यक्ति | | अभिव्यक्ति नहीं होगी, बस होना ही होगा—जस्ट बीइंग-सिर्फ नहीं है। इसलिए थोड़ा-सा प्रकट होता है और जो अप्रकट रहता | होना ही रह जाएगा। और कोई सीमा न होगी। सिर्फ होने में सीमा है, वह बेचैन होता है। हमारे प्राणों में जो स्वतंत्रता की छटपटाहट | है, हमारे प्राणों में जो मुक्ति की आकांक्षा है, वह इस कारण से है तो जिस दिन कोई समाधि को पाकर, सब बिल्ट-इन-प्रोग्रॅम कि बड़ा थोड़ा-सा प्रकट हो रहा है। जैसे एक आदमी के सारे शरीर तोड़कर, अभिव्यक्ति की सारी आकांक्षाएं छोड़कर, अभिव्यक्ति में जंजीरें बांध दीं और सिर्फ एक अंगुली खुली छोड़ दी। वह अपनी की सारी वासनाओं को छोड़कर मरता है, उस दिन उसके पास फिर अंगुली हिला रहा है। तकलीफ में पड़ा हुआ है। वह कहता है, मुझे कोई शरीर नहीं होता, फिर हम उसका फोटोग्राफ नहीं ले सकते। स्वतंत्रता चाहिए। क्योंकि मेरा पूरा शरीर जकड़ा हुआ है। | तो अभी पश्चिम में साइकिक रिसर्च सोसाइटीज ने जो ऐसे ही हमारा पूरा अस्तित्व जकड़ा हुआ है। एक छोटे-से द्वार फोटोग्राफ्स लिए हैं, उन फोटोग्राफ्स में महावीर का फोटोग्राफ नहीं से जरा-सी अभिव्यक्ति है, वह अभिव्यक्ति बंधन मालूम पड़ती | | हो सकता, उस फोटोग्राफ में बुद्ध को नहीं पकड़ा जा सकता, उस है। वही हमारी पीड़ा है। छटपटा रहे हैं। लेकिन इस छटपटाहट के | फोटोग्राफ में कृष्ण को नहीं पकड़ा जा सकता। उस फोटोग्राफ में हम दो तरह के प्रयोग कर सकते हैं। या तो वह जो छोटा-सा द्वार | उनको ही पकड़ा जा सकता है, जो अभी बिल्ट-इन-प्रोग्रैम लेकर है हमारा शरीर, उसी के माध्यम से हम अपने को मुक्त करने की | चले हैं। जिनके पास एक योजना है, एक ब्लूप्रिंट है शरीर का, कोशिश में लगे रहें, तो हम उसको बड़ा करेंगे। उनको पकड़ा जा सकता है। महावीर का फोटोग्राफ नहीं पकड़ा जा एक आदमी बड़ा मकान बनाता है। उसका मतलब सिर्फ यह है | | सकता है, कोई उपाय नहीं है। अस्तित्व का कोई भी चित्र नहीं लिया कि वह अपने शरीर को बड़ा बना रहा है। कोई और मतलब नहीं | | जा सकता। अस्तित्ववान का चित्र लिया जा सकता है, अस्तित्व है। एक आदमी बड़ा मकान बनाता है और बड़े मकान में जरा का कोई चित्र नहीं लिया जा सकता है। अस्तित्व का कैसे चित्र लगता है कि थोड़ा मुक्त हुआ। स्पेस बढ़ी, जगह बड़ी हुई। छोटी | | होगा? क्योंकि अस्तित्व की कोई सीमा नहीं है। चित्र उसी का हो कोठरी में ज्यादा बंद मालम होता था. बडे मकान में जरा खला सकता है. जिसकी सीमा हो। मालूम पड़ता है। लेकिन थोड़े दिन में वह भी छोटा मालूम पड़ने । तो साधारण मृत्यु में तो—पूछा है आपने—शरीर रहेगा, सूक्ष्म नहीं है। 98
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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