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________________ IIT मृत्यु के पीछे अजन्मा, अमृत और सनातन का दर्शन - अर्जुन जब कह रहा है कि ये सब मर जाएंगे, तब वह फार्म की, | चित्र इतना ऊपर दूसरा और ऊपर, तीसरा और ऊपर, चौथा और रूप की, आकृति की बात कह रहा है। वह कह रहा है, ये सब मिट | ऊपर। इतनी तेजी से घूमने से हाथ उठता हुआ मालूम पड़ता है। जाएंगे। उसे आकृति से ज्यादा का कोई भी पता नहीं है। लेकिन अगर उन्हें धीमे चलाया जाए तो आप पाएंगे कि हाथ के __ और जब कृष्ण कहते हैं कि नहीं, जिन्हें तू आज देख रहा है, वे हजार चित्र लेने पड़े हैं। पहले नहीं थे, ऐसा नहीं है। वे पहले भी थे। मैं भी पहले था, तू भी | ठीक ऐसे ही, जब हम एक व्यक्ति को देख रहे हैं, तो हम एक पहले था। और ऐसा भी नहीं है कि जो हम आज हैं, कल नहीं होंगे। ही व्यक्ति को नहीं देख रहे हैं। जितनी देर हमने देखा, उस बीच कल भी हम होंगे, सदा-सदा अनादि से अनंत तक हमारा होना है। हजार चित्र हमारी आंखों ने ग्रहण किए हैं। भीतर चित्र संश्लिष्ट यहां कृष्ण और अर्जुन दो अलग चीजों की बात कर रहे हैं, यह हुए और एक आकृति हमारे मन में बनी। जब तक वह बनी है, तब समझ लेना जरूरी है। तक बाहर सब बदल गया है। __ अर्जुन रूप की बात कर रहा है, कृष्ण अरूप की बात कर रहे हैं। विराट आकाश में तारे दिखाई पड़ते हैं। जो तारे हमें दिखाई पड़ते अर्जुन उसकी बात कर रहा है, जो दिखाई पड़ता है; कृष्ण उसकी हैं, वे वहीं नहीं होते हैं, जहां दिखाई पड़ते हैं। वहां कभी थे। क्योंकि बात कर रहे हैं, जो नहीं दिखाई पड़ता है। अर्जुन उसकी बात कर रहा | जो निकटतम तारा है, उससे भी हम तक आने में कोई चार साल है, जो आंखों और हाथों की पकड़ में आता है; कृष्ण उसकी बात रोशनी को लग जाते हैं। और रोशनी धीमी नहीं चलती। रोशनी कर रहे हैं, जो हाथ, आंख और कान की पकड़ के पीछे छूट जाता चलती है एक सेकेंड में एक लाख छियासी हजार मील। एक लाख है। अर्जुन, जैसा हम सब सोचते हैं, वैसा सोच रहा है। कृष्ण, वैसा | छियासी हजार मील प्रति सेकेंड से प्रकाश की किरण यात्रा करती कह रहे हैं, जैसा हम सब जान सकें कभी तो सौभाग्य है। है हम तक। चार साल लगते हैं, निकटतम तारे से हम तक पहुंचने • जो दिखाई पड़ता है, वह सदा नहीं था। सदा तो बहुत बड़ा शब्द में। जब हमारे पास किरण पहुंचती है, तो हमें तारा वहां दिखाई है। जो दिखाई पड़ता है, वह क्षणभर पहले भी नहीं था। आप मेरे | पड़ता है, जहां चार साल पहले था। इस बीच हो सकता है कि रहा चेहरे को देख रहे हैं, क्षणभर पहले यह चेहरा यही नहीं था, क्षणभर | | ही न हो, बिखर गया हो। और इतना तो तय है कि उस जगह अब बाद यही नहीं होगा। क्षणभर में बहुत कुछ मेरे शरीर में मर गया | नहीं होगा, जहां चार साल पहले था। इस बीच में वह करोड़ों, और बहुत कुछ नया आ गया। | अरबों, खरबों मील की यात्रा कर गया है। बुद्ध कहा करते थे—कोई उनसे मिलने आता, तो वे उससे कहा ___ इसलिए रात हमें जो तारे दिखाई पड़ते हैं, वे वहां नहीं हैं, जहां करते थे—कि तुम जब मिलने आए थे और जब तुम विदा होओगे, | दिखाई पड़ते हैं। रात बड़ी झूठी है, तारे बिलकुल झूठे हैं। कोई तारा तो वही नहीं होओगे जो मिलने आया था। वहां नहीं है। और दूर के तारे हैं। किसी तारे को सौ वर्ष लगते हैं, घंटेभर में बहुत कुछ बदल जाता है। एक आदमी सत्तर साल में हजार वर्ष लगते हैं रोशनी पहुंचाने में; करोड़ वर्ष लगते हैं। ऐसे कोई दस बार पूरा का पूरा बदल जाता है। हर सात साल में शरीर | तारे हैं कि जब पृथ्वी बनी थी—कोई चार अरब वर्ष पहले तब के सब अणु-परमाणु बदल जाते हैं। प्रतिक्षण शरीर में कुछ मर रहा | | से उनकी चली रोशनी अब तक पृथ्वी पर नहीं पहुंची। इन चार है और बाहर फेंका जा रहा है। प्रतिक्षण शरीर में नया जीवित हो | अरब वर्षों में न मालूम क्या हो गया होगा! रहा है, नया आ रहा है, भोजन से आप नया डाल रहे हैं। और | | जो हमें दिखाई पड़ता है, वह वही नहीं है, जो है। उतनी देर में प्रतिपल शरीर से बहुत कुछ बाहर फेंका जा रहा है। सात साल में | भी बदल जाता है। जब आंख से मैं देखता हूं आपके चेहरे को, तो पूरा शरीर बदल जाता है। लेकिन हम कहे चले जाते हैं कि मैं वही | | आपसे किरण मुझ तक आती है, तब तक भी समय गुजरा। आप हूं। आकृति की समानता, आकृति की एकता बन जाती है। | वही नहीं होते हैं। इस बीच भीतर सब कुछ बदल गया है। फिल्म देखते हैं कभी आप। अगर परदे पर फिल्म को धीमे-धीमे आकृति-सदा की तो बात दूर-क्षणभर भी एक नहीं रहती। चलाया जाए, तो आप बहुत हैरान हो जाएंगे। इतना हाथ, पैर से हेराक्लतु ने कहा है, यू कैन नाट स्टेप ट्वाइस इन दि सेम इतना ऊपर सिर तक उठे, इतने हाथ के उठने के लिए हजारों चित्र रिवर–एक ही नदी में दोबारा नहीं उतर सकते। यह भी जरा ठीक लेने पड़ते हैं। फिर वे चित्र एकदम से तेजी से चलाए जाते हैं। एक नहीं है, बिलकुल ठीक नहीं है। एक ही नदी में एक बार भी उतरना
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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