SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ am गीता दर्शन भाग-1 AM यह थोड़ा ध्यान रखने जैसा है। बर्नार्ड शा ने कभी कहा कि अगर चढ़ता है तो सीढ़ियों के किनारे रेलिंग की जगह नंगी स्त्रियों को मुझे स्वर्ग भी मिले और नंबर दो होना पड़े, तो मैं इनकार करता हूं। | खड़ा रखता है, उनके कंधों पर हाथ रखकर चढ़ता है। जरा इससे मैं नर्क में ही रहना पसंद कर लूंगा, लेकिन नंबर एक होना चाहिए। | सावधान रहना। शराब और स्त्री के अतिरिक्त इसकी जिंदगी में नंबर एक होना चाहिए, नर्क भी पसंद कर लूंगा। नंबर दो भी अगर कभी कुछ नहीं आया है। और यह आज अचानक भिक्षु होने और हो जाता हूं, तो स्वर्ग मुझे नहीं चाहिए। क्या मजा होगा उस स्वर्ग | त्यागी बनने, तपश्चर्या का व्रत लेने आया है। यह आदमी बीच में में जिसमें नंबर दो हो गए! नर्क में भी मजा हो सकता है, अगर धोखा न दे जाए। नंबर एक...। इसलिए नंबर एक होने वाले लोग अगर सब नर्क | बद्ध ने कहा, जहां तक मैं आदमियों को जानता है, यह आदमी में इकट्ठे हो जाते हों तो बहुत हैरानी नहीं है। दिल्ली से नर्क का | धोखा न देगा। यह एक अति से ऊब गया, अब दूसरी अति पर जा रास्ता एकदम करीब है। दिल्ली से गए कि नर्क में गए। वहां बीच रहा है। एक एक्सट्रीम से ऊब गया और अब दूसरे एक्सट्रीम पर में गैप भी नहीं है। वह जो नंबर एक होने के लिए पीड़ित है, अगर | जा रहा है। पर उन्होंने कहा, हमें संदेह होता है, क्योंकि यह कल उससे सम्राट होना छटता हो तो वह तत्काल जो दसरा विकल्प है, तक बिलकुल और था। बुद्ध ने कहा, मुझे संदेह नहीं होता है। इस वह भिखारी होने का है। | तरह के लोग अक्सर ही अतियों में चुनाव करते हैं। भय मत करो। यह विकल्प भी देखना जरूरी है; क्योंकि यह विकल्प सिर्फ | उन्होंने कहा, हमें नहीं लगता है कि यह भीख मांग सकेगा, सड़क अहंकार ही चुनता है। यह विकल्प-एक्सट्रीम, अति का | पर नंगे पैर चल सकेगा, धूप-छांव सह सकेगा, हमें नहीं दिखाई विकल्प-सदा अहंकार ही चुनता है। क्योंकि अहंकार को इससे | पड़ता। बुद्ध ने कहा, यह तुम से ज्यादा सह सकेगा। हंसे वे सब। मतलब नहीं है कि सम्राट बनो कि भिखारी बनो; मतलब इससे है। उन्होंने कहा कि इस मामले में कम से कम बुद्ध निश्चित ही गलत कि नंबर एक! हो जाने वाले हैं। अर्जुन कह रहा है कि इससे तो बेहतर है कि मैं भिखारी ही हो लेकिन नहीं, बुद्ध गलत नहीं हुए। दूसरे ही दिन से देखा गया जाऊं, सड़क पर भीख मांगू। ऊपर से दिखाई पड़ता है कि बड़ी | | कि भिक्षु अगर रास्ते पर चलते, तो रास्ते के नीचे चलता वह सम्राट विनम्रता की बात कह रहा है। सम्राट होना छोड़कर भीख मांगने की | जहां कांटे होते। और भिक्षु अगर वृक्ष की छाया में बैठते, तो वह ' बात कह रहा है। लेकिन भीतर से बहुत फर्क नहीं है। भीतर बात वही | सम्राट धूप में खड़ा रहता। और भिक्षु अगर दिन में एक बार भोजन है। भीतर बात वही है, अति पर होने की बात अहंकार की इच्छा है। करते, तो वह सम्राट दो दिन में एक बार भोजन करता। आखिरी पोल पर, ध्रुव पर खड़े होने की इच्छा अहंकार की इच्छा है। छह महीने में वह सूखकर काला पड़ गया। अति सुंदर उसकी या तो इस कोने या उस कोने, मध्य उसके लिए नहीं है। | काया थी। भूख से हड्डियां उसकी बाहर निकल आईं। पैरों में घाव बद्ध के मनोविज्ञान का नाम मध्यमार्ग है, दि मिडल वे। और बन गए। बुद्ध ने अपने भिक्षुओं से पूछा कि कहो, तुम कहते थे कि जब बुद्ध से किसी ने पूछा कि आप अपने मार्ग को मज्झिम | यह आदमी भरोसे का नहीं, और मैंने तुमसे कहा था कि यह आदमी निकाय-बीच का मार्ग-क्यों कहते हैं? तो बुद्ध ने कहा, जो दो | | बहुत भरोसे का है, यह आदमी तुमसे आगे तपश्चर्या कर लेगा। अतियों के बिलकुल बीच में खड़ा हो जाए, वही केवल अहंकार से पर, वे भिक्षु कहने लगे, हम हैरान हैं कि आप कैसे पहचाने! मक्त हो सकता है, अन्यथा मक्त नहीं हो सकता। बुद्ध ने कहा, अहंकार सदा एक अति से दूसरी अति चुन लेता एक छोटी-सी घटना बुद्ध के जीवन के साथ जुड़ी है। एक गांव | है। बीच में नहीं रुक सकता। यह सम्राटों में सम्राट था, यह भिक्षुओं में बुद्ध आए हैं। सम्राट दीक्षित होने आ गया। और उस सम्राट ने | में भिक्षु है। यह सम्राटों में नंबर एक सम्राट था। इसने सारी सुंदर कहा कि मुझे भी दीक्षा दे दें। बुद्ध के भिक्षुओं ने बुद्ध के कान में | | स्त्रियां राज्य की इकट्ठी कर रखी थीं। इसने सारे हीरे-जवाहरात कहा, सावधानी से देना इसे आप। क्योंकि हमने जो इसके संबंध | | अपने महल के रास्तों पर जड़ रखे थे। अब यह भिक्षुओं में साधारण में सुना है, वह बिलकुल विपरीत है। यह आदमी कभी रथ से नीचे | | | भिक्षु नहीं है। यह भिक्षुओं में असाधारण भिक्षु है। तुम चलते हो नंगे पैर भी नहीं चला है। यह आदमी अपने महल में, जो भी संभव | सीधे रास्ते पर, यह चलता है तिरछे रास्ते पर। तुम कांटे बचाकर है, सारे भोग के साधनों में डूबा पड़ा है। यह अपनी सीढ़ियां भी चलते हो, यह कांटे देखकर चलता है कि कहां-कहां हैं। तुम छाया
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy