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गीता विषाद में से प्रकट हुआ संगीत है। विषाद वरदान. वाचक है। अर्जुन को विषाद नहीं जागा होता तो गीता की रचना नहीं होती। कृष्ण अर्जुन के साथ एक ही स्तर पर रहकर संवाद कर रहे हैं। ग्यारहवें अध्याय में कृष्ण ने विश्वरूप दर्शन कराया, उसे प्रथम अध्याय में ही करवा सकते थे और अर्जुन को कह सकते थे कि मैं परमात्मा हूं, तुम्हें मेरी बात माननी पड़ेगी। ___ परमात्मा कभी इस भाषा में बात नहीं करता; वह तो संदेह को योग्य परिप्रेक्ष्य में रखकर अर्जुन को खुद ही उत्तर सूझे, ऐसा करता है। और उसमें से ही अर्जुन के 'करिष्ये वचनं तव' जैसे शब्द प्रकट हो पाए।
विषाद में से वसंत को खिलाने की समग्र प्रक्रिया ओशो हमें अनोखे ढंग से समझाते हैं। ओशो के अभिगम में क्रांति है। यह क्रांति भी मनुष्य जाति के लिए उनके अनुभव से निकले विषाद में से जागी है। उनमें एक कृष्ण और एक अर्जुन सतत प्रश्नोत्तर करते नजर आते हैं; एक महावीर और एक गौतम सतत सवाल पूछता है, जवाब देता है। एक आनंद संदेह करता है, एक बुद्ध समाधान देता है। ओशो अपनी अंतर्दृष्टि से गीता में प्रवेश करते हैं और हम आगे बढ़ने के लिए तैयार हों तो वे पगडंडी पर हमारी अंगुली पकड़ने को राजी हैं।
हरीन्द्र दवे
श्री हरीन्द्र दवे भारतीय साहित्य के सुविख्यात सर्जक हैं। उन्होंने गुजराती भाषा को आसव, मौन समय, अर्पण, सूर्योपनिषद और हयाती जैसे महत्वपूर्ण काव्य-संग्रह दिए हैं। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और उपन्यासकार, नाटककार, विवेचक, निबंधकार और प्रख्यात पत्रकार भी हैं। समर्पण और जनशक्ति के संपादन के बाद इन दिनों वे जन्मभूमि-प्रवासी के मुख्य संपादक हैं। • गुजराती साहित्य को अनूठे योगदान के लिए श्री दवे को 1978 में राष्ट्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार से अलंकृत किया गया।
1982 में इन्हें रणजीतराय गोल्ड मेडल तथा इनकी रचना 'कृष्ण अने मानव संबंधों के लिए 1982-83 का श्री अरविंदो मेडल प्राप्त हुआ। इनको महाराष्ट्र सरकार का महाराष्ट्र गौरव, गुजरात साहित्य अकादमी का के. एम. मुंशी स्वर्णपदक जैसे अनेक सम्मान मिले हैं। मध्यप्रदेश शासन ने इन्हें 1991-92 के कबीर सम्मान से सम्मानित किया है। भारतीय कविता के लिए दिया जाने वाला यह देश का सर्वोच्च सम्मान है। पत्रकारिता के लिए इन्हें आर्गेनाइजेशन आफ अंडरस्टैंडिंग एंड फ्रेटरनिटी के हारमनी अवार्ड और बी.डी.गोयनका अवार्ड से भी विभूषित किया गया है। 1981 में ब्रिटिश सरकार ने अध्ययन-भ्रमण के लिए तथा 1984 में उत्तरी अमेरिका की साहित्य अकादमी ने संयुक्त राज्य अमेरिका में भाषण-भ्रमण के लिए इन्हें आमंत्रित किया। अमेरिका के विभिन्न राज्यों के विश्वविद्यालयों में इनके भाषण हुए। 1987-88 में भारत के प्रधानमंत्री की मास्को, तुर्की, सीरिया, पश्चिम जर्मनी तथा संयुक्त राष्ट्र की विशेष यात्राओं में . प्रतिनिधिमंडल के साथ इन्हें आमंत्रित किया गया। ___ और सर्वाधिक उल्लेखनीय है कि जन्मभूमि-प्रवासी में श्री हरीन्द्र दवे के साप्ताहिक धर्मलेखों में ओशो का जीवन-दर्शन निरंतर झलकता है।