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अनुक्रम गीता-दर्शन अध्याय 1-2
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विचारवान अर्जुन और युद्ध का धर्मसंकट ... 1
गीता का प्रारंभ अंधे धृतराष्ट्र की जिज्ञासा से - जीवन की सारी कथाएं भी / अंधे पिता की अंधी संतानें – कौरव / सभी अंधे आदमी के ही पुत्र हैं / भीतर की आंख पानी कठिन / धर्मक्षेत्र में ही अधिकतर युद्ध / धर्मक्षेत्र में भी युद्ध की पिपासा - मनुष्य के गहरे में छिपा पशु / संजय की दूर दृष्टि और दूर-श्रवण की क्षमता का स्रोत क्या है? दूर- दृष्टि की क्षमता मानसिक शक्ति है - आध्यात्मिक नहीं / अमेरिका के टेड सीरियो की आंख में तस्वीरों का बनना / टेड सीरियो एक साधारण आदमी - आत्म- ज्ञानी नहीं / दुर्घटनावश अतींद्रिय क्षमताओं के सक्रिय होने के उदाहरण / कान से रेडियो तरंगों का पकड़ना / दिन में तारे देखना / साइकिक पावर्स में उलझने वाला सत्य तक नहीं पहुंच पाता / अमेरिका और रूस के अंतरिक्ष यात्रियों को दूर - दर्शन और विचार संप्रेषण के लिए प्रशिक्षित करना / दुर्योधन हीनता की ग्रंथि से पीड़ित नहीं है / दुर्योधन द्वारा विरोधियों के गुणों का उल्लेख पहले करना - प्रशंसनीय / भीष्म का प्रतिस्पर्धी भीम को क्यों माना गया है— अर्जुन को क्यों नहीं ? युद्ध का केंद्र अर्जुन के बजाय भीम जैसा कम बुद्धि और अधिक शक्ति वाला व्यक्ति ही / अर्जुन बुद्धिमान है / जहां बुद्धि - वहां संशय; जहां संशय - वहां द्वंद्व / अर्जुन युद्ध
लिए भरोसे योग्य नहीं / भीम और दुर्योधन में सामंजस्य / युद्ध का केंद्र भीम से अर्जुन पर बदल जाना / एक अज्ञात परमात्म शक्ति का बीच में हस्तक्षेप / अर्जुन को कृष्ण द्वारा युद्ध के लिए तैयार करना / व्यक्ति कैसे जान पाए कि अज्ञात की क्या इच्छा है? व्यक्ति अपने को मिटा दे, तो जान सकता है / अहंकार के हटते ही सब कुछ ब्रह्म द्वारा ही हो रहा है इसका बोध / जीवन से संघर्ष का परिणाम — दुख, पीड़ा, संताप / जीवन के स्वीकार का परिणाम - आनंद, नृत्य, गीत / सब ब्रह्म- इच्छा है, तो वैज्ञानिक शोध का क्या होगा ? वह भी व्यक्ति इच्छा का परिणाम नहीं है / सारी खोजों का स्रोत - निर्विचार मौन / मैडम क्यूरी का नींद में सवाल हल करना / आर्किमिडीज को बाथ टब में समाधान / निर्व्यक्ति चेतना में हल का उतरना / अपौरुषेय - वेद, उपनिषद, कुरान, बाइबिल आदि / जितना गहरा सत्य का अनुभव, उतना ही व्यक्ति क्षीण / अचेतन मन भगवान से जुड़ा है या शैतान से ? मेरे लिए भगवान और शैतान एक / अच्छा-बुरा, अंधकार-प्रकाश - एक ही अस्तित्व के दो छोर / विभाजन, विरोध और पोलेरिटी - मनुष्य निर्मित / कृष्ण का शंखनाद क्या भीष्म के शंखनाद की प्रतिक्रिया है ? प्रतिक्रिया नहीं – चुनौती का स्वीकार है / जीवन
- प्रतिपल चुनौती की स्वीकृति में / पहला शंखनाद कौरवों की ओर से - वे युद्ध के लिए उत्तरदायी / कृष्ण का केवल प्रतिसंवेदन / पांडवों की ओर से शंख का उत्तर कृष्ण से शुरू हुआ / युद्ध अर्जुन के लिए ऊपर से आया दायित्व है, भीतर से आयी पुकार नहीं / भीतर दुश्मनी हो तो बाहर दुश्मन प्रक्षेपित / भीतरी या बाहरी युद्ध में जीतने का . नियम - शत्रु को ठीक से पहचान लेना / लड़ने के लिए आंख बंद चाहिए / निरीक्षण हो तो क्रोध नहीं, क्रोध हो तो निरीक्षण नहीं / अर्जुन क्रोध में नहीं है / युद्ध का पहला सूत्रः सम्यक अवलोकन / निरीक्षण में उत्सुक अर्जुन लड़ाई में कठिनाई पाएगा / भीम या दुर्योधन जैसे विचारहीन व्यक्ति ही युद्ध कर सकते हैं / या कृष्ण की तरह निर्विचार व्यक्ति युद्ध कर सकते हैं / विकास के तीन चरण - विचारहीनता, विचार और निर्विचार / संत का बच्चे जैसा हो जाना / बच्चे की निर्दोषता में अप्रकट दोष छिपे हुए / ज्ञानी - अज्ञानी जैसा ही सरल / अर्जुन युद्ध में जा सकेगा - यदि विचारहीन हो जाए या निर्विचार |