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Sam गीता दर्शन भाग-1 AK
छोड़ो भी। आओ भी उस पर, जाओ भी उस पर से। उठो भी उस | | उपाय करे, आकाश की तरफ उड़ेगी, सागर में कूद नहीं सकती। तक, पार भी हो जाओ। चूंकि मन के पार भी सत्ता है, इसलिए मन | बूंद कूद सकती है। का जो आखिरी सत्य है-अहंकार-वह पार की सत्ता के लिए | तो पश्चिम का मनोविज्ञान बूंद बनाने तक है, कृष्ण का छोड़ने का पहला कदम होगा। अगर मैं अपने घर से आपके घर में | मनोविज्ञान सागर बनाने तक है। लेकिन पश्चिम के मनोविज्ञान से आना चाहूं, तो मेरे घर की आखिरी दीवार छोड़ना ही आपके घर में | गुजरना पड़ेगा। जो अभी भाप हैं, उनको फ्रायड और जुंग के पास प्रवेश का पहला कदम होगा। मन की आखिरी सीमा अहंकार है। | से गुजरना पड़ेगा, तभी वे कृष्ण के पास पहुंच सकते हैं। लेकिन अहंकार से ऊपर मन नहीं जा सकता।
बहुत से भाप के कण सीधे ही कृष्ण तक पहुंचना चाहते हैं, वे चूंकि पश्चिम का मनोविज्ञान मन को आखिरी सत्य समझ रहा | | मुश्किल में पड़ जाते हैं। बीच में फ्रायड है ही, उससे बचा नहीं जा है, इसलिए अहंकार के विकास की बात उचित है। उचित कह रहा | | सकता। अंत वह नहीं है, लेकिन प्रारंभ वह जरूर है। हूं, सत्य नहीं। सीमा के भीतर बिलकुल ठीक है बात। लेकिन जिस कृष्ण का मनोविज्ञान चरम मनोविज्ञान है, दि सुप्रीम। जहां से दिन पश्चिम के मनस-शास्त्र को एहसास होगा, और एहसास | मन समाप्त होता है, वहां है वह। वह लास्ट बैरियर पर है। और होना शुरू हो गया है। जुंग के साथ दीवार टूटनी शुरू हो गई है। फ्रायड और एडलर मन की पहली सीमा की चर्चा कर रहे हैं। यह और अनुभव होने लगा है कि अहंकार के पार भी कुछ है। अगर खयाल में रहे, तो कठिनाई नहीं होगी।
लेकिन अभी भी अहंकार के पार का जो अनुभव हो रहा है। मैं भी कहूंगा, अहंकार को संश्लिष्ट करें, ताकि एक दिन पश्चिम के मनोविज्ञान को, वह अहंकार के नीचे हो रहा है—बिलो समर्पित कर सकें। क्योंकि समर्पित वही कर सकेगा जो संश्लिष्ट ईगो; बियांड ईगो नहीं हो रहा है। अहंकार के पार भी कुछ | है। जिसके अपने ही अहंकार के पच्चीस खंड हैं, जो स्किजोफ्रेनिक है-मतलब अचेतन, चेतन से भी नीचे-अति चेतन नहीं, सुपर है, जिसके भीतर एक मैं भी नहीं है, कई मैं हैं—वह समर्पण करने कांशस नहीं, चेतन के भी आगे नहीं। लेकिन यह बड़ी शुभ घड़ी कैसे जाएगा? एक मैं को समर्पण करेगा, दूसरा कहेगा, रहने दो, है। अहंकार के पार तो कम से कम कुछ है, नीचे ही सही। और वापस आ जाओ।
अगर नीचे है तो ऊपर होने की बाधा कम हो जाती है। और अगर ___ हम अभी ऐसे ही हैं। मनोविज्ञान की समस्त खोजें कहती हैं, हम • हम अहंकार के पार नीचे भी कुछ स्वीकार करते हैं, तो आज नहीं | | पोलीसाइकिक हैं। हमारे भीतर एक मैं भी नहीं है, बहुत मैं हैं, कल ऊपर भी स्वीकार करने की सुविधा बनती है। | अनेक मैं हैं। रात एक मैं कहता है कि सुबह पांच बजे उठेंगे, कसम
मनोविज्ञान तो कहेगा, अहंकार को ठीक से इंटिग्रेटेड, | | खा लेता है। सुबह पांच बजे दूसरा मैं कहता है, सर्दी बहुत है। क्रिस्टलाइज्ड, अहंकार को ठीक शुद्ध, साफ, संश्लिष्ट हो जाना छोड़ो, कहां की बातों में पड़े हो! फिर कल देखेंगे। करवट लेकर चाहिए। यही इंडिविजुएशन है, यही व्यक्तित्व है। कृष्ण नहीं | सो जाता है। सुबह सात बजे तीसरा में कहता है कि बड़ी भूल की। कहेंगे। कृष्ण कहेंगे, उसके आगे एक कदम और है। संश्लिष्ट, | शाम को तय किया था, पांच बजे सुबह बदले क्यों? बड़ा पश्चात्ताप एकाग्र हुए अहंकार को किसी दिन समर्पित हो जाना चाहिए, | | करता है। आप एक ही आदमी पांच बजे तय किए थे, तो सुबह किस सरेंडर्ड हो जाना चाहिए। वह आखिरी कदम है अहंकार की तरफ आदमी ने आपसे कहा कि सो जाओ! आपके भीतर ही कोई बोल से। लेकिन ब्रह्म की तरफ वह पहला कदम है।
| रहा है, बाहर कोई नहीं बोल रहा है। और जब सो ही गए थे पांच निश्चित ही बूंद अपने को खो दे सागर में, तो सागर हो सकती बजे, तो सुबह सात बजे पश्चात्ताप क्यों कर रहे हैं? आप ही सोए है। और अहंकार अपने को खो दे सागर में, तो ब्रह्म हो सकता है। थे, किसी ने कहा नहीं था। अब यह पश्चात्ताप कौन कर रहा है? लेकिन खोने के पहले होना तो चाहिए, बूंद भी होनी तो चाहिए। सामान्यतः हमें खयाल आता है कि मैं एक मैं हूं, इससे बड़ा अगर बंद ही न हो. भाप हो. तो सागर में खोना मश्किल है। अगर कनफ्यजन पैदा होता है। हमारे भीतर बहत मैं हैं। एक मैं कह देता कोई भाप की बूंद उड़ रही हो, तो उससे हम पहले कहेंगे, बूंद बन है उठेंगे, दूसरा मैं कहता है नहीं उठते, तीसरा मैं कहता है पश्चात्ताप जाओ। फिर बूंद बन जाने पर कहेंगे कि जाओ, सागर में कूद करेंगे। चौथा मैं सब भूल जाता है, कोई याद ही नहीं रखता इन सब जाओ। क्योंकि भाप सीधी सागर में नहीं कद सकती, कितना ही बातों की। और ऐसे ही जिंदगी चलती चली जाती है।
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