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HTRA अर्जुन का पलायन-अहंकार की ही दूसरी अति
पर
और जो आदमी अपने को पागल समझता हो, समझना चाहिए, वह प्रश्नः भगवान श्री, आपने बताया कि प्रोफेसर पागल पागल होने के ऊपर उठने लगा।
होते हैं। तो आप पहले दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक थे, ___ क्या तुम हमें पागल समझते हो? उन दोनों ने कहा। नहीं, जुंग अब आप आचार्य बन गए हैं। तो हमको आप उपलब्ध ने कहा, ऐसी भूल मैं कैसे कर सकता हूं! पागल बिलकुल आपको हुए हैं, यह हमारा सौभाग्य है। आपने अभी एक बात नहीं समझता हूं। पर यही मैं पूछ रहा हूं कि जब एक बोलता है, तो बताई ईगो के बारे में। तो एक प्रश्न यह उठता है कि दूसरा चुप क्यों रह जाता है! तो उन्होंने कहा, क्या तुम समझते हो ईगो के बिना तो प्रोजेक्शन होता ही नहीं। और कि हमें कनवर्सेशन का नियम भी मालूम नहीं, बातचीत करने की साइकोलाजिस्ट जो हैं-आप तो आत्म-संश्लेषक व्यवस्था भी मालूम नहीं? हमें मालूम है कि जब एक बोले तो दूसरे | हैं-मगर साइकोलाजिस्ट तो यह कहते हैं कि ईगो को चुप रहना चाहिए। जुंग ने कहा, जब तुम्हें इतना मालूम है, तो | | फुलफिलमेंट के बिना व्यक्तित्व का पूर्णतया विकास मैं यह और पूछना चाहता हूं कि जो एक बोलता है, उससे दूसरे के नहीं होता। और आप अहं-शून्यता की बात करते हैं, बोलने का कभी कोई संबंध ही नहीं होता! दोनों फिर हंसने लगे। तो क्या ईगो को एनाइलेट करने का आप सूचन दे उन्होंने कहा, खैर, हम तो पागल समझे जाते हैं, लेकिन इस जमीन रहे हैं? पर जहां भी लोग बोलते हैं दो, उनकी बातों में कोई संबंध होता है? जंग घबड़ाकर वापस लौट आया। उसने अपने संस्मरण में लिखा है कि उस दिन से मैं भी सोचता हूं जब किसी से बात करता 17 क तो मैंने कहा कि प्रोफेसर के पागल होने की संभावना हूं-संबंध है!
ए ज्यादा होती है। पागल हो ही जाता है, ऐसा नहीं कहा। . थोड़ा संबंध हम बना लेते हैं। जब आपसे मैं बात कर रहा हूं,
और दूसरा यह भी नहीं कहा है कि सभी पागल प्रोफेसर अगर हम पागल नहीं हैं—जिसकी कि संभावना बहुत कम है तो होते हैं। ऐसा भी नहीं कहा है; संभावना ज्यादा होती है। असल में जब आप बोल रहे हैं. तब मैं अपने भीतर बोले चला जाता है। जैसे |
| जहां भी तथाकथित ज्ञान का भार ज्यादा हो, बर्डन हो, वहीं चित्त ही आप चप होते हैं. मैं बोलना शरू करता है। मैं जो बोलना शरू विक्षिप्त हो सकता है। ज्ञान तो चित्त को मुक्त करता है, ज्ञान का भार करता हूं, उसका संबंध मेरे भीतर जो मैं बोल रहा था, उससे होता विक्षिप्त करता है। और ज्ञान, जो मुक्त करता है, वह स्वयं से आता है; आपसे नहीं होता। हां, इतना संबंध हो सकता है जैसा खुंटी और है। और ज्ञान, जो विक्षिप्त कर देता है, वह स्वयं से कभी नहीं आता, कोट का होता है, कि आपकी बात में से कोई एक बात पकड़ लूं, वह सदा पर से आता है। खूटी बना लूं, और मेरे भीतर जो चल रहा था, उसको उस पर टांग __दूसरी बात पूछी है कि मनोवैज्ञानिक तो अहंकार को विकसित दूं। बस, इतना ही संबंध होता है।
करने की बात करते हैं। मैं तो अहंकार को शून्य करने की बात अर्जुन और कृष्ण की चर्चा में यह मौका बार-बार आएगा, करता हूं। मनोवैज्ञानिक निश्चित ही अहंकार को विकसित करने की इसलिए मैंने इसे ठीक से आपसे कह देना चाहा। अर्जुन ने | बात करेंगे। सभी मनोवैज्ञानिक नहीं; बुद्ध नहीं करेंगे, कृष्ण नहीं बिलकुल नहीं सुना कि कृष्ण ने क्या कहा है। नहीं कहा होता, ऐसी | करेंगे, महावीर नहीं करेंगे। फ्रायड करेगा, एरिक्सन करेगा। करेगा, ही स्थिति है। वह अपने भीतर की ही सुने चला जा रहा है। वह कह | | उसका कारण है। क्योंकि फ्रायड या एरिक्सन के लिए अहंकार से रहा है, ये पूज्य, ये द्रोण, ये भीष्म...। वह यह सोच रहा होगा | ऊपर कोई और सत्य नहीं है। तो जो आखिरी सत्य है, उसको भीतर। इधर कृष्ण क्या बोल रहे हैं, वे जो बोल रहे हैं, वह परिधि | | विकसित किया जाना चाहिए। महावीर, बुद्ध या कृष्ण के लिए के बाहर हो रहा है। उसके भीतर जो चल रहा है, वह यह चल रहा अहंकार आखिरी सत्य नहीं है, केवल बीच की सीढ़ी है। निरहंकार है। वह कृष्ण से कहता है कि मधुसूदन, ये पूज्य, ये प्रिय; इन्हें मैं | | आखिरी सत्य है। अहंकार नहीं, ब्रह्म आखिरी सत्य है। अहंकार मार सकता हूं? मैं अर्जुन। इसे ध्यान रखना। उसने कृष्ण की बात | सिर्फ सीढ़ी है।
इसलिए बुद्ध या महावीर या कृष्ण कहेंगे, अहंकार को विकसित भी करो और विसर्जित भी करो। सीढ़ी पर चढ़ो भी और सीढ़ी को
नहीं सुनी।