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________________ गीता दर्शन भाग - 14 में भटकाव, उसकी बात वह नहीं उठाता; वह दूसरी बात उठाता है। जैसे उसने कृष्ण को सुना ही नहीं। उसके वचन कह रहे हैं कि बीच में जो कृष्ण ने बोला है, अर्जुन ने नहीं सुना। सभी बातें जो बोली जाती हैं, हम सुनते नहीं। हम वही सुन लेते हैं, जो हम सुनना चाहते हैं। सभी जो दिखाई पड़ता है, वह हम देखते नहीं। हम वही देख लेते हैं, जो हम देखना चाहते हैं। सभी जो हम पढ़ते हैं, वह पढ़ा नहीं जाता; हम वही पढ़ लेते हैं, जो हम पढ़ना चाहते हैं। हमारा देखना, सुनना, पढ़ना, सब सिलेक्टिव है; उसमें चुनाव है। हम पूरे वक्त वह छांट रहे हैं, जो हम नहीं देखना चाहते। एक नया मनोविज्ञान है, गेस्टाल्ट। यह जो अर्जुन ने उत्तर दिया वापस, यह गेस्टाल्ट का अदभुत प्रमाण है। गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिक कहते हैं, आकाश में बादल घिरे हों, तो हर आदमी उनमें अलग-अलग चीजें देखता है । डरा हुआ आदमी भूत-प्रेत देख लेता है, धार्मिक आदमी भगवान की प्रतिमा देख लेता है, फिल्मी दिमाग का आदमी अभिनेता-अभिनेत्रियां देख लेता है। वह एक ही बादल आकाश में है, अपना-अपना देखना हो जाता है। प्रत्येक आदमी अपनी ही निर्मित दुनिया में जीता है। और हम अपनी दुनिया में... इसलिए इस पृथ्वी पर एक दुनिया की भ्रांति में मत रहना आप। इस दुनिया में जितने आदमी हैं, कम से कम उतनी दुनियाएं हैं। अगर साढ़े तीन अरब आदमी हैं आज पृथ्वी पर, तो पृथ्वी पर साढ़े तीन अरब दुनियाएं हैं। और एक आदमी भी पूरी जिंदगी एक दुनिया में रहता हो, ऐसा मत सोच लेना। उसकी दुनिया भी रोज बदलती चली जाती है। पर्ल बक ने एक किताब अपनी आत्मकथा की लिखी है, तो नाम दिया है, माई सेवरल वर्ड्स, मेरे अनेक संसार । अब एक आदमी के अनेक संसार कैसे होंगे ? रोज बदल रहा है। और प्रत्येक व्यक्ति अपनी दुनिया के आस पास बाड़े, दरवाजे, संतरी, पहरेदार खड़े रखता है । और वह कहता है, इन-इन को भीतर आने देना, इन-इन को बाहर से ही कह देना कि घर पर नहीं हैं। यह हम लोगों के साथ ही नहीं करते, सूचनाओं के साथ भी करते हैं। अब अर्जुन बिलकुल नहीं सुना है; कृष्ण ने जो कहा, वह . बिलकुल नहीं सुना है। वह जो उत्तर दे रहा है, वह बताता है कि वह इररेलेवेंट है, उसकी कोई संगति नहीं है । हम भी नहीं सुनते। दो आदमी बात करते हैं, अगर आप चुपचाप साक्षी बनकर खड़े हो जाएं तो बड़े हैरान होंगे। लेकिन साक्षी बनकर खड़ा होना मुश्किल है। क्योंकि पता नहीं चलेगा और आप भी तीसरे आदमी भागीदार हो जाएंगे बातचीत में। अगर आप दो आदमियों की साक्षी बनकर बात सुनें तो बहुत हैरान होंगे कि ये एक-दूसरे से बात कर रहे हैं या अपने-अपने से बात कर रहे हैं ! एक आदमी जो कह रहा है, दूसरा जो कहता है उससे उसका कोई भी संबंध नहीं है। जुंग ने एक संस्मरण लिखा है कि दो पागल प्रोफेसर उसके पागलखाने में भर्ती हुए इलाज के लिए। ऐसे भी प्रोफेसरों के पागल होने की संभावना ज्यादा है। या यह भी हो सकता है कि पागल आदमी प्रोफेसर होने को उत्सुक रहते हैं। वे दोनों पागल हो गए हैं। | साधारण पागल नहीं हैं। साधारण पागल डर जाता है, भयभीत हो जाता है। प्रोफेसर पागल हैं। पागल होकर वे और भी बुद्धिमान हो गए हैं। जब तक जागे रहते हैं, घनघोर चर्चा चलती रहती है। जुंग | खिड़की से छिपकर सुनता है कि उनमें क्या बात होती है ! बातें बड़ी अदभुत होती हैं, बड़ी गहराई की होती हैं। दोनों | इन्फार्म्स हैं; उन दोनों ने बहुत पढ़ा-लिखा, सुना-समझा है। कम उनकी जानकारी नहीं है, शायद वही उनके पागलपन का कारण है। जानकारी ज्यादा हो और ज्ञान कम हो, तो भी आदमी पागल हो सकता है। और ज्ञान तो होता नहीं, जानकारी ही ज्यादा हो जाती है, फिर वह बोझ हो जाती है। चकित है जुंग, उनकी जानकारी देखकर। वे जिन विषयों पर | चर्चा करते हैं, वे बड़े गहरे और नाजुक हैं। लेकिन इससे भी चकित ज्यादा दूसरी बात पर है, और वह यह कि जो एक बोलता है, उसका | दूसरे से कोई संबंध ही नहीं होता। लेकिन यह तो पागल के लिए | बिलकुल स्वाभाविक है। इससे भी ज्यादा चकित इस बात पर है | कि जब एक बोलता है तो दूसरा चुप रहता है। और ऐसा लगता है कि सुन रहा है। और जैसे ही वह बंद करता है कि दूसरा जो बोलता है तो उसे सुनकर लगता है कि उसने उसे बिलकुल नहीं सुना । | क्योंकि अगर वह आकाश की बात कर रहा था, तो वह पाताल की शुरू करता है । उसमें कोई संबंध ही नहीं होता । | तब वह अंदर गया और उसने जाकर पूछा कि और सब तो मेरी समझ में आ गया; आप गहरी बातें कर रहे हैं, वह समझ में आ गया। समझ में यह नहीं आ रहा है कि जब एक बोलता है, तो दूसरा चुप क्यों हो जाता है ! तो वे दोनों हंसने लगे और उन्होंने कहा कि क्या तुम हमें पागल समझते हो ? इस दुनिया में पागल भर अपने को कभी पागल नहीं समझते। 76
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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