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________________ im गीता दर्शन भाग-144 लेकिन भूखा मारना आपको अगर बुरा है, तो मुझको भूखा है, वह अगर अहंकार से उठ रही है, तो अहंकार को फुलाने से मारना कैसे ठीक हो जाएगा? सिर्फ इसलिए कि यह शरीर मेरे जिम्मे | तत्काल विदा हो जाएगी। पड़ गया है और वह शरीर आपके जिम्मे पड़ गया है! तो आपके | इसलिए कहते हैं, कातरपन की बातें कर रहा है! कायरता की शरीर को अगर कोड़े मारूं और आपको अगर नंगा खड़ा करूं और बातें कर रहा है! सख्त से सख्त शब्दों का वे उपयोग करेंगे। कांटों पर लिटा दूं, तो अपराध हो जाएगा। और खुद नंगा हो जाऊं । यहां अर्जुन से वे जो कह रहे हैं पूरे वक्त, उसमें क्या प्रतिक्रिया और कांटों पर लेट जाऊं, तो तपश्चर्या हो जाएगी! सिर्फ रुख पैदा होती है, उसके लिए कह रहे हैं। मनोविश्लेषण शुरू होता है। बदलने से, सिर्फ तीर उस तरफ से हटकर इस तरफ आ जाए, तो कृष्ण अर्जुन को साइकोएनालिसिस में ले जाते हैं। लेट गया अर्जुन धर्म हो जाएगा! कोच पर अब कृष्ण की। अब वे जो भी पूछ रहे हैं, उसको जगाकर अर्जुन कह रहा है, इन्हें मारने की बजाय तो मैं मर जाऊं। वह पूरा देखना चाहेंगे कि वह है कहां! कितने गहरे पानी में है! बात वही कह रहा है; मरने-मारने की ही कह रहा है। उसमें कोई अब आगे से कृष्ण यहां साइकोएनालिस्ट, मनोविश्लेषक हैं। बहुत फर्क नहीं है। हां, तीर का रुख बदल रहा है। और अर्जुन सिर्फ पेशेंट है, सिर्फ बीमार है। और उसे सब तरफ से और ध्यान रहे, दूसरे को मारने में कभी इतने अहंकार की तृप्ति उकसाकर देखना और जगाना जरूरी है। पहली चोट वे उसके नहीं होती, जितना स्वयं को मारने में होती है। क्योंकि दूसरा मरते अहंकार पर करते हैं। वक्त भी मुंह पर थूककर मर सकता है। लेकिन खुद आदमी जब __ और स्वभावतः, मनुष्य की गहरी से गहरी और पहली बीमारी अपने को मारता है, तो बिलकुल निहत्था, बिना उत्तर के मरता है। | अहंकार है। और जहां अहंकार है, वहां दया झूठी है। और जहां दूसरे को मारना कभी पूरा नहीं होता। दूसरा मरकर भी बच जाता | अहंकार है, वहां अहिंसा झूठी है। और जहां अहंकार है, वहां शांति है। उसकी आंखें कहती हैं कि मार डाला भला, लेकिन हार नहीं | झूठी है। और जहां अहंकार है, वहां कल्याण और मंगल और गया वह! लेकिन खुद को मारते वक्त तो कोई उपाय ही नहीं। हराने लोकहित की बातें झूठी हैं। क्योंकि जहां अहंकार है, वहां ये सारी का मजा पूरा आ जाता है। की सारी चीजें सिर्फ अहंकार के आभूषण के अतिरिक्त और कुछ अर्जुन दया की बात करता हो और कृष्ण उससे कहते हैं कि भी नहीं हैं। अर्जुन, तेरे योग्य नहीं हैं ऐसी बातें, अपयश फैलेगा-तो वे सिर्फ उसके अहंकार को फुसला रहे हैं, परसुएड कर रहे हैं। दसरा सत्र कष्ण का. बताता है कि पकडी है उन्होंने नसावे ठीक अर्जुन उवाच जगह छ रहे हैं उसे। क्योंकि उसे यह समझाना कि दया ठीक नहीं, कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन । व्यर्थ है। उसे यह भी समझाना कि दया और करुणा में फासला है, ईषुभिः प्रति योत्स्यामि पूजाविरिसूदन ।। ४ ।। अभी व्यर्थ है। अभी तो उसकी रग अहंकार है। अभी अहंकार तब अर्जुन बोला, हे मधुसूदन, मैं रणभूमि में भीष्म पितामह सैडिज्म से मैसोचिज्म की तरफ जा रहा है। अभी वह दूसरे को दुख और द्रोणाचार्य के प्रति किस प्रकार बाणों को करके युद्ध देने की जगह, अपने को दुख देने के लिए तत्पर हो रहा है। कलंगा, क्योंकि हे अरिसूदन, वे दोनों ही पूजनीय हैं। इस स्थिति में वे दूसरे सूत्र में उससे कहते हैं कि त क्या कह रहा है! आर्य होकर, सभ्य, सुसंस्कृत होकर, कुलीन होकर, कैसी अकुलीनों जैसी बात कर रहा है! भागने की बात कर रहा है युद्ध | - किन अर्जुन नहीं पकड़ पाता। वह फिर वही दोहराता से? कातरता तेरे मन को पकड़ती है? वे चोट कर रहे हैं उसके | CI है दूसरे कोण से। वह कहता है, मैं द्रोण और भीष्म से अहंकार को। ___ कैसे युद्ध करूंगा, वे मेरे पूज्य हैं। बात फिर भी वह बहुत बार गीता को पढ़ने वाले लोग ऐसी बारीक और नाजुक विनम्रता की बोलता है। जगहों पर बुनियादी भूल कर जाते हैं। क्या कृष्ण यह कह रहे हैं कि । लेकिन अहंकार अक्सर विनम्रता की भाषा बोलता है। और अहंकारी हो? नहीं, कृष्ण सिर्फ यह देख रहे हैं कि जो दया उठ रही अक्सर विनम्र लोगों में सबसे गहन अहंकारी पाए जाते हैं। असल 14
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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