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________________ संन्यासी अर्थात जो जाग्रत है, आत्मरत है, आनंदमय है, परमात्म-आश्रित है यात्रा पर नहीं निकली है। किसी वासना का तीर प्रत्यंचा पर नहीं चढ़ा है। कोई लक्ष्य नहीं है, जिसे वेध डालना है। नहीं, बस यह मौज है। यह भीतर आनंद भर गया है, यह बाहर बिखरना चाहता है, लुटना चाहता है। . जैसे फूल खिल गए हैं वृक्ष पर और उनकी सुगंध रास्ते पर गिरती है, यह क्रीड़ा है। वृक्ष इसकी चिंता में नहीं है कि कौन निकलता है नीचे से। और जो निकलता है वह वी आई पी है या नहीं, कोई प्रतिष्ठित आदमी निकलता है कि कोई गरीब मजदूर निकलता है, कि आदमी निकलता है कि गधा निकलता है। वृक्ष को कोई मतलब नहीं है। गधे को भी वृक्ष अपने फल की सगंध वैसे ही दे देता है. जैसा एक राजनैतिक नेता नीचे से निकले तो उसको भी दे। कोई भेद नहीं करता। और कोई नहीं निकलता, निर्जन हो जाता है रास्ता, तो भी फूल की सुगंध गिरती रहती है। क्योंकि यह फूल का अंतर-आनंद है, यह किसी के प्रति प्रेरित नहीं है, इट इज़ नाट एड्रेस्ड। यह जो सुगंध है, इस पर किसी का पता नहीं लिखा है कि इसके पास पहुंचे। अनएड्रेस्ड, यह किसी के प्रति नहीं है। यह तो फूल का अंतर-आविर्भाव है। यह तो भीतर उसके प्राणों में जो सुगंध बढ़ गई है, उसे वह लुटा दे रहा है। हवाएं ले जाएंगी। खाली खेतों में पड़ जाएगी, निर्जन रास्तों पर लुट जाएगी। आनंद इसे लुटा देने में है। एक बहुत अदभुत घटना मैंने सुनी है। सुना है मैंने, एक बहुत बड़ा मनोचिकित्सक, विल्हेम रेक, अभी पश्चिम में जो थोड़े से कीमती आदमी इस आधी सदी में हुए, उनमें से एक। और जो होता है कीमती आदमियों के साथ-विल्हेम रेक को दो साल तो आखिर में जेलखाने में रहना पड़ा। और जो आदमी कम से कम पागल था, अमरीका के समाज और कानून ने उसे पागल करार देकर अंततः पागलखाने में डाल दिया। हमारे ढंग नहीं बदलते। हजारों साल बीत जाएं, हम वही करते हैं। उसमें कोई फर्क नहीं होता। विल्हेम रेक एक मरीज का इलाज कर रहा था-एक बीमार, मानसिक बीमार का। उसका मनोविश्लेषण कर रहा था। तीन बजे का उसे वक्त दिया था, तीन बजे नहीं आया मरीज। सवा तीन ब गए, घड़ी देखी। ठीक सवा तीन बजे मरीज भागा हुआ अंदर आया। उसने कहा, क्षमा करना, मुझे थोड़ी देर हो गई। विल्हेम रेक ने कहा. य केम जस्ट इन टाइम. अदरवाइज आई वाजट बिगिन माई वर्क। इसका इलाज कर रहा है, इसकी मनोचिकित्सा कर रहा है। विल्हेम रेक ने कहा कि तुम ठीक वक्त पर आ गए, समय के भीतर आ गए, नहीं तो मैं अपना काम शुरू करने वाला था। उस मरीज ने कहा, लेकिन जब मैं आता ही नहीं, तो आप काम कैसे शुरू करते? मेरा ही तो मनोविश्लेषण होना है! फूल निर्जन में सुगंध डाले तो हमारी समझ में आ सकता है, लेकिन विल्हेम रेक अगर बिना मरीज के मनोविश्लेषण शुरू कर दे, तो हम भी कहेंगे, पागल है। विल्हेम रेक ने कहा कि त तो सिर्फ निमित्त है। त नहीं भी आता. तो काम तो हम शरू कर ही देते। वह हमारा आनंद है। ___ यह समझना कठिन होगा। फूल को समझ लेना आसान है, क्योंकि फूल को हम पागल नहीं सोच सकते। आदमी को समझना कठिन है। ऐसा हो सकता है, ऐसा हुआ है कि फूल की तरह निर्जन में भी जागे हुए पुरुषों की वाणी गूंजी है। ____ लाओत्से के बाबत सुना है मैंने कि कई बार ऐसा हुआ कि वह किसी वृक्ष के नीचे बैठा है और बोल रहा है। राहगीर कोई निकला, ठिठककर खड़ा हो गया। चौंककर उसने देखा, सुनने वाला कोई भी नहीं 89
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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