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________________ संन्यासी अर्थात जो जाग्रत है, आत्मरत है, आनंदमय है, परमात्म-आश्रित है लेकिन उलटी है हमारी यह दुनिया, बड़े कंट्राडिक्शंस से, बड़े विरोधाभासों से भरी। वासना से जो भरे हैं, उन्हें हम सम्राट कहते हैं। और करुणा से जो भरे हैं, उन्हें हम भिक्षु कहते हैं! जो दे रहे हैं सिर्फ, वे भिखारी हैं! और जो ले रहे हैं सिर्फ, वे सम्राट हैं! - गहरा व्यंग्य है बुद्ध का इसमें कि बुद्ध अपने को भिक्षु कहते हैं, कि मैं भिखारी हूं। और हम सब भी राजी हो जाते हैं कि ठीक है, दो रोटी तो बुद्ध हमसे मांगते ही हैं, तो भिखारी तो हो ही गए। बुद्ध हमें क्या देते हैं, उसकी कोई कीमत आंकी जा सकती है। लेकिन हमें यह भी पता न चले कि वे हमें दे रहे हैं, इसकी भी वे चेष्टा करते हैं। इसलिए दो रोटी हमसे लेकर भिखारी बन जाते हैं, कहीं हमें ऐसा न लगे कि वे हमें देकर हम पर कोई एहसान कर रहे हैं। करुणा इतना भी नहीं चाहती। और हम ऐसे नासमझ हैं कि अगर हमें यह पता चल जाए कि बुद्ध हमें कुछ दे रहे हैं, तो हमारे अहंकार को चोट लगे। शायद हम लेने का दरवाजा ही बंद कर दें। इसलिए बुद्ध हमसे दो रोटी ले लेते हैं। हमारे अहंकार को बड़ा रस आता है। लेकिन हमें पता नहीं कि हम एक बहुत हारती हुई बाजी लड़ रहे हैं। बुद्ध दो रोटी लेते हैं, और जो देते हैं, उसका हमें पता भी नहीं चलता। दो रोटी में बुद्ध को कुछ भी नहीं मिलेगा, लेकिन वे जो हमें दे रहे हैं, वह हमारे अहंकार को पूरी तरह भस्मीभूत कर देगा। वह राख कर देगा हमारे भीतर वह जो अस्मिता है, उसे मिटा देगा। . करुणा का अर्थ है : देने के लिए जीना। वासना का अर्थ है : लेने के लिए जीना। वासना भिखारी है, करुणा सम्राट है। लेकिन दे कौन सकता है ? दे वही सकता है, जिसके पास हो। और वही दिया जा सकता है, जो हमारे पास हो। वह तो नहीं दिया जा सकता, जो हमारे पास न हो। वही दिया जा सकता है, जो हमारे पास हो। ___हम तो मांगकर ही जीते हैं पूरे जीवन में। हमारे पास कुछ भी नहीं है। प्रेम भी हम मांगते हैं, कोई दे। धन भी हम मांगते हैं, कोई दे। यश भी हम मांगते हैं कि कोई दे। बड़े से बड़ा राजनेता भी भिखारी ही होता है, क्योंकि वह आप सबसे मांगकर जीता है। आप देते हो यश तो मिलता है उसे, आप खींच लेते हो तो खो जाता है। दो दिन अखबार में उसका नाम नहीं छपता, तो बात खतम हो गई। लोग भूल जाते हैं, कहां गया, कौन था, था भी या नहीं था। ___1917 में लेनिन जब सत्ता में आया रूस में, तो उसके पहले जो प्रधानमंत्री था रूस का, करेंस्की, वह 1960 तक जिंदा था। जब मरा, तभी लोगों को पता चला कि वह अब तक जिंदा था। क्योंकि वह एक किराने की दुकान कर रहा था अमरीका में। लोग भूल ही चुके थे, बात ही खतम हो चुकी थी। वह तो मरा, तब पता चला कि यह आदमी जिंदा था। कभी वह रूस में सर्वाधिक शक्तिशाली आदमी था। लेनिन के पहले वह सर्वाधिक शक्तिशाली आदमी था। फिर वह ना-कुछ हो गया। राजनेता भी हमसे यश मांगकर जीता है। जो भी हमसे मांगकर जीता है, वह संन्यासी नहीं है। संन्यासी तो वह है, जो हमें देकर जीता है। और देने की बात भी नहीं करता कभी कि आपको कुछ दिया है। ऐसे उपाय करता है कि आपको लगे कि आपने ही उसे कुछ दिया। करुणा ही उसकी क्रीड़ा है। बस एक ही, वह भी क्रीड़ा है। यह बहुत मजेदार बात है। यह नहीं कहा कि करुणा ही उसका काम 87 7
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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