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निर्वाण उपनिषद
लेकिन वस्तुतः दीक्षा तो फलित तभी होती है, जब भीतर का तार जुड़ जाता है अनंत से।
जब आप बैठे हों सागर के किनारे, मौन हो जाएं। थोड़ी देर में सागर कौन है और आप कौन हैं, यह फासला गिर जाएगा। आकाश के नीचे लेटे हों, मौन हो जाएं। कौन तारा है और कौन देखने वाला है, थोड़ी देर में फासला गिर जाएगा।
सब फासला विचार का है। वियोग विचार का है, संयोग निर्विचार का है। जहां भी निर्विचार हो जाएंगे, वहीं संयोग हो जाएगा।
एक वृक्ष के पास बैठ जाएं और निर्विचार हो जाएं, तो वृक्ष और वृक्ष को देखने वाला दो नहीं रह जाएंगे। द ऑबजर्ल्ड एंड द ऑबजर्वर विल बी वन। जो देख रहा है वह, और वह जो देखा जा रहा है, एक हो जाएगा। एक क्षण को भी ऐसा अनुभव हो जाए कि वह जो धूप मुझे घेरे हुए है, वह और मैं एक हूं; वह जो वृक्ष मुझ पर छाया किए है, वह और मैं एक हूं; बदलियां जो आकाश में तैर रही हैं, वह और मैं एक हूं। ___ यह विचार से नहीं, यह आप सोच सकते हैं। यह आप वृक्ष के पास बैठकर सोच सकते हैं कि मैं
और वृक्ष एक हूं। तब संयोग नहीं होगा, क्योंकि अभी सोचने वाला मौजूद है। और यह जो कह रहा है, मैं एक हूं, यह अपने को समझा रहा है कि मैं एक हूं। और समझाने की तभी तक जरूरत है, जब तक अनुभव नहीं होता कि एक हूं।
वृक्ष के पास निर्विचार हो जाएं, तो अचानक उदघाटन होगा कि एक हूं। यह विचार नहीं होगा तब, यह रोएं-रोएं में प्रतीत होगा। वृक्ष के पत्ते हिलेंगे, तो लगेगा मैं हिल रहा हूं। वृक्ष में फूल खिलेंगे, तो लगेगा मैं खिल रहा हूं। वृक्ष से सुगंध फैलने लगेगी, तो लगेगी मेरी सुगंध है। लगेगी, यह विचार नहीं . होगा, यह प्रतीति होगी, यह आत्मिक अनुभव होगा।
ऐसा जिस दिन समस्त अस्तित्व के साथ लगने लगता है, उस दिन दीक्षा-संयोगदीक्षा। उठते, बैठते, चलते-श्वास-श्वास में, कण-कण में, रोएं-रोएं में ऐसी प्रतीति होने लगती है, एक हूं, एक ही है। वह जो आपकी छाती में छुरा भोंक दे, वह शत्रु भी एक ही है। वह हाथ, जो छाती में छुरा भोंक गया है, मेरा ही है। तब, तब दीक्षा है। तब संयोग है।
तो ऋषि कहता है, संयोग दीक्षा। वियोग उपदेश।
एक ही उपदेश है—वियोग। किससे वियोग और किससे संयोग? जो हम नहीं हैं, उससे वियोग। और जो हम हैं, उससे संयोग। जो स्वप्न जैसा है उससे वियोग, और जो सत्य है, उससे संयोग। जो हमने ही प्रोजेक्ट किया है, हमने ही प्रक्षेप किया है, उस विचार के जगत से वियोग; और जो है हमसे पहले से और हम नहीं होंगे तब भी होगा, उस अस्तित्व के जगत से संयोग। __हम सब एक अपनी दुनिया बनाकर जीते हैं—ए वर्ल्ड आफ अवर ओन। पर्ल बक ने एक किताब लिखी है अपने जीवन संस्मरणों की, माई सेवरल वर्ड्स, मेरे अनेक जगत। ठीक है नाम, क्योंकि प्रत्येक आदमी अलग-अलग जगत में जीता है। एक ही घर में अगर सात आदमी होते हैं, तो सेवन वढू, सात दुनियाएं होती हैं। क्योंकि बेटे की दुनिया वही नहीं हो सकती, जो बाप की है। और इसीलिए तो घर में कलह होती है। सात दुनिया एक घर में रहें, सात जगत, तो कलह होने ही वाली है। सात बर्तन में हो
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