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पावन दीक्षा-परमात्मा से जुड़ जाने की
कहा, वह है नहीं, वह हमारी सुरक्षा की खोज के कारण निर्मित हुआ है। एक विसियस सर्किल, एक दुष्टचक्र है। असुरक्षा से बचने की जो आकांक्षा है, वह असुरक्षा पैदा कर देती है। जब असुरक्षा पैदा हो जाती है, तो हमारे भीतर और बचने की आकांक्षा पैदा होती है। वह और असुरक्षा पैदा कर देती है। सागर बड़ा होता जाता है। भीतर बचने की आकांक्षा प्रगाढ़ होती जाती है। वही आकांक्षा सागर को बड़ा करती जाती है।
संन्यासी का अनुभव यह है कि जो सुरक्षा का खयाल ही छोड़ देता है, उसकी अब कैसी असुरक्षा? जिसने मरने के लिए तैयारी कर ली, जो राजी हो गया, उसकी कैसी मौत? अब मौत करेगी भी क्या? वह तो उसी पर कुछ कर पाती है, जो बचता था, भागता था, सुरक्षा का इंतजाम करता था कि मौत आ न जाए। मौत उसी के लिए है, जो मौत से भयभीत है। जो भयभीत ही नहीं है, जो मौत को आलिंगन करने को तैयार है, उसके लिए कैसी मौत! मौत, मौत में नहीं, मौत के भय में है। उस भय के कारण हमें रोज मरना पड़ता है। रोज मरने में ही जीना पड़ता है, जी ही नहीं पाते, मरते ही रहते हैं।
निरालंब पीठः।
संन्यासी निरालंब होने को ही अपनी स्थिति मानते हैं। वही स्थिति है। वे मांग ही नहीं करते। वे कहते ही नहीं कि हमें बचाओ। वे कहते हैं, हम तैयार हैं, जो भी हो। वे सूखे पत्तों की तरह हो जाते हैं, * हवाएं जहां ले जाती हैं, वहीं चले जाते हैं। वे नहीं कहते कि पश्चिम जाएंगे कि पश्चिम हमारा किनारा है, कि पूरब जाएंगे कि पूरब हमारी मंजिल है। वे नहीं कहते कि हवा हमें आकाश में उठाए और बादलों के सिंहासन पर बिठा दे। हवा नीचे गिरा देती है, तो वे विश्राम करते हैं वृक्षों के तले में; हवा ऊपर उठा देती है, तो वे बादलों में परिभ्रमण करते हैं। हवा पूरब ले जाती है, तो वे पूरब चले जाते हैं; हवा पश्चिम ले जाती है, वे पश्चिम चले जाते हैं। उनका कोई आग्रह नहीं है कि हमें कहीं जाना है।
जिनका कोई आग्रह नहीं है। जो किसी विशेष स्थिति के लिए आतुर नहीं हैं कि ऐसा ही हो। जो भी होता है उसके लिए राजी हैं, उनके जीवन में कष्ट समाप्त हो जाता है। इसलिए एलन वाट ने कहा है, विजडम आफ इनसिक्यूरिटी। जो बुद्धिमान हैं, वे असुरक्षा के लिए राजी हो जाते हैं और सुरक्षित हो जाते हैं। . संन्यासी से ज्यादा सुरक्षित कोई भी नहीं है और गृहस्थ से ज्यादा असुरक्षित कोई भी नहीं है। और गृहस्थ से ज्यादा सुरक्षा का इंतजाम कोई नहीं करता। और संन्यासी से कम सुरक्षा का इंतजाम कौन करता है!
निरालंब पीठः।
ये बहुत अदभुत दो छोटे से शब्द हैं। उनकी बैठक, उनका आसन, निरालंब होना है। और जब कोई व्यक्ति इतना साहस जुटा लेता है, तो उसे परमात्मा का आलंबन तत्क्षण, तत्क्षण उपलब्ध हो जाता है।
परमात्मा केवल उनके ही काम आ सकता है, जिनका यह भ्रम छूट गया कि हम हमारे काम आ सकते हैं। हम कुछ कर लेंगे, ऐसी जिनकी भ्रांति टूट गई, जिनके कर्ता का भाव टूट गया, परमात्मा की सहायता केवल उन्हीं को उपलब्ध हो सकती है। क्षण की भी देर नहीं लगती, परमात्मा की ऊर्जा दौड़ पड़ती है, आपके रोएं-रोएं में समा जाती है।
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