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निर्वाण उपनिषद
भाव भर जाता है कि वह प्रगट होना चाहता है, इसलिए मौन नहीं हो सका पीछे। तो कल दूसरा इंतजाम करना पड़ेगा।
पंद्रह मिनट कीर्तन चलेगा। और इसीलिए मैंने कहा कि कीर्तन में खड़े मत रहें, पूरी शक्ति लगाकर उलीच डालें। नहीं तो जो बच रहेगा वह पीछे मौन न होने देगा। और कीर्तन के बाद मौन का इसीलिए प्रयोग रख रहे हैं ताकि पहले आप खाली हो जाएं, उलीच दें और फिर शांत हो जाएं।
तो पंद्रह मिनट कल कीर्तन चलेगा। उसके बाद पंद्रह मिनट आपको स्वतंत्रता रहेगी और उलीचने
जो भी मन में आता हो-नाचना. कदना. चिल्लाना, गाना, रोना, हंसना—वह आप कर लें। फिर पीछे तीस मिनट पूर्ण मौन रहेगा। उसमें फिर जरा सी भी आवाज नहीं चाहिए, जरा सी भी। और ध्यान रखें, आप उसमें आवाज करें तो आप अपना नुकसान करते हैं, दूसरे का भी नुकसान करते हैं। बिलकुल आवाज नहीं। फिर तीस मिनट मुर्दे की तरह पड़े रहें।
दूसरी बात, दोपहर के प्रयोग में कुछ लोग दर्शक की तरह भीतर बैठ गए, वे नहीं बैठने चाहिए। जिनको करना हो वही...। जिनको नहीं करना, वे दूर पहाड़ी पर बैठ जाएं, वहां न बैठे। उससे उन्हें भी नुकसान है और दूसरों को भी नुकसान है।
नुकसान गहरे हैं। जहां इतने लोगों के भीतर के भाव, विकार, बीमारियां, मानसिक रोग फिंक रहे हों बाहर, वहां कोई खाली बैठा रहे तो वह रिसेप्टिव हो जाता है, वह पकड़ लेगा। वह पच्चीस बीमारियां ग्रहण कर लेगा। वह हालांकि सोच रहा है कि हम बहुत बुद्धिमान हैं। हम बुद्धिमान की तरह बैठे हैं, बगल का आदमी देखो पागलपन कर रहा है। लेकिन उसे पता नहीं है कि वह गड्डा बन गया, वह पागलपन उसमें घसेगा। वहां भीतर नहीं बैठना है किसी को भी। वे दर, काफी दूर बैठे। साधक से सावधान रहें। साधक खतरनाक, उससे जरा दूर रहें। या तो साधक हो जाएं तो उसके भीतर आएं, नहीं तो दूर रहें। पहाड़ पर बैठ जाएं, वहां से बैठकर देखें।
समझदारी ज्यादा मत दिखाएं। ज्यादा समझदारी कभी-कभी बड़ी नासमझी होती है। करना हो तो ठीक, न करना हो दूर चले जाएं। कल मैं एक भी व्यक्ति को आंख खुले हुए वहां बैठना नहीं चाहूंगा कि कोई बैठे। और कोई बैठा दिखाई पड़ेगा तो फिर वालेंटियर उसे उठाकर ले जाएंगे, इसलिए वहां नहीं बैठेंगे।
दोपहर के मौन में एक भी दर्शक नहीं चाहिए। दर्शक पहाड़ पर बैठ जाए दूर जाकर, देखे मजे से। लेकिन जब दर्शन ही करना हो पूरा मजे से तो खुद ही करके करना चाहिए। भीतर से देखें। दूसरे भी कर रहे हैं, आप भी करें। और भीतर से देखते रहें कि क्या हो रहा है, तो बहुत फायदा होगा। बाहर से देखने से कोई फायदा नहीं होगा। यही लगेगा कि अरे, ये पागल! लेकिन जिस दिन आपको लगेगा कि अरे, मैं पागल! उस दिन कुछ फायदा हो सकता है। इसलिए दूसरे को मत देखें।
तीस मिनट के मौन में आंख बिलकुल बंद रहनी चाहिए। पट्टियां सारे लोग ले लें और आंख पर पट्रियां बांध लें। क्योंकि आप पर भरोसा नहीं किया जा सकता। बीच में आंख खल जाए, खल ही जाए तो पट्टी तो रोकेगी कम से कम। इसलिए पट्टियां बांध लें-दोपहर के लिए।
रात्रि के ध्यान में जो प्रयोग है, वह आपसे कह दूं। रात्रि का ध्यान है त्राटक का। तीस मिनट तक आपको एकटक मेरी तरफ देखना है, खड़े होकर। आंख का पलक नहीं झपना है। तो जिन लोगों ने
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