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निर्वाण उपनिषद
इतना बचाते हैं धूप से और कल उसे आपके ही सगे-संबंधी आग में जला देंगे।
पर हम पर्तों को बचाने में लगे हैं, जो नहीं बचाई जा सकती। और जो सदा बचा हुआ है, उसकी हमें खबर ही नहीं मिलती। हम इसी में उलझे-उलझे नष्ट हो जाते हैं। कितने जन्म हम गंवाते हैं!
ऋषि कहता है, अक्षय है वह।
उसकी ही खोज करो, जो अक्षय है। जो अक्षय को पा लेता है, वही धनी है; बाकी सब निर्धन हैं। क्योंकि उसने उसे पा लिया, जिसे अब चोर चुरा नहीं सकते, आग जला नहीं सकती, शस्त्र छेद नहीं सकते, मारा नहीं जा सकता, मिटाया नहीं जा सकता। अब, अब कोई भय न रहा। और जब भी कोई अक्षय की धारा में उतर जाता है, तो वह पाता है वहां सब निर्लेप है। वहां कोई विकार नहीं है। ___सब विकार पर्तों के हैं और पर्ते बिना विकार के नहीं हो सकतीं, इसे समझ लें। अगर मुझे अपने शरीर पर धूल चिपकानी हो, तो पहले मुझे तेल लगाना पड़े, नहीं तो धूल का चिपकना मुश्किल है। क्योंकि धूल और शरीर के बीच में कुछ स्निग्ध होना चाहिए, कुछ राग होना चाहिए, कुछ चिपकने वाला होना चाहिए, जो जोड़ दे। अगर आपको शरीर के साथ अपने को जोड़े रखना है, तो वासना चाहिए, कामना चाहिए, तृष्णा चाहिए, इच्छा चाहिए। ये बीच की स्निग्धताएं हैं, जिनसे जोड़ बनेगा। अगर ये बिलकुल सूख जाएं...। ___इसलिए तो बुद्ध और महावीर परेशान हैं-छोड़ दो तृष्णा, छोड़ दो वासना, छोड़ दो इच्छा। क्यों? क्योंकि ये बीच से छूट जाए, तो वह जो धूल की पर्त है चारों तरफ, उससे जोड़ टूट जाए।
लेकिन हम पर्तों को सम्हाले रखते हैं। पर्तों को सम्हालने के लिए उस सारे इंतजाम को भी सम्हालना पड़ता है जिससे पर्ते हमसे जुड़ी रहती हैं। इसलिए हमें निर्लेप का कोई पता नहीं चलता। पर्तों के साथ . तो विकारों का ही पता चलता है, क्योंकि विकार ही पर्तों को जोड़ते हैं। अगर विकार सब छूट जाएं, तो . पर्ते सब छूट जाएं, उनके साथ ही अलग हो जाएं। जोड़ने वाला बीच का तत्व न रह जाए, तो जो अलगहै वह अलग गिर जाए, जो मैं हूं वही बच रहूं।
इसलिए ऋषि कहता है, वह अक्षय है, निर्लेप है। जो संशय से शून्य है, वही ऋषि है।
और संशय से शून्य है जो, वही ऋषि है। संशय से शून्य होना ऋषि का सार अंश है। लेकिन संशय तब तक नहीं मिटता, जब तक इस अक्षय का अनुभव न हो। अनुभव के बिना संशय नहीं मिटता। ध्यान रखें, श्रद्धा से नहीं मिटता, आस्था से नहीं मिटता, विश्वास से नहीं मिटता। संशय मिटता ही नहीं किसी उपाय से सिवाय अनुभव के। कितना ही मैं कहूं कि आग में जलाए जाएंगे आप, आप नहीं जलेंगे। आप कहेंगे, क्या कह रहे हैं! भला मान लें मेरी बात, फिर भी आग में कूदने को तैयार नहीं होंगे। और अगर तैयार होंगे, तो कारण मेरी बात नहीं होगी, कारण कुछ और होगा।
सुना है मैंने कि हिटलर से मिलने एक अंग्रेज राजनीतिज्ञ गया था युद्ध के पहले। देखने किं हिटलर ने तैयारी क्या की है। तो एडोल्फ हिटलर उसे अपने कमरे में ले गया। उसके कमरे के बाहर कमरा था उसका सातवीं मंजिल पर-कोई दस सिपाही पहरा देते थे। एडोल्फ हिटलर ने कहा कि तुम ब्रिटिशर्स झंझट में मत पड़ो, क्योंकि मेरे पास ऐसे आदमी हैं, जो मेरी आवाज पर जान दे सकते हैं। और उसने
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