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यात्रा-अमृत की, अक्षय की निःसंशयता, निर्वाण और केवल-ज्ञान की
है। क्योंकि ईश्वर का मतलब होता है है, इज़नेस, और है का भी मतलब होता है, ईश्वर।
ऐसे परम सिद्धांत को कहना बड़ा कठिन है। ईश्वर, अस्तित्व, परम सत्य-उसे जानना तो उतना कठिन नहीं है, बहुत कठिन है, उतना कठिन नहीं जितना उसे कहना कठिन है। क्योंकि कहते ही उन शब्दों का सहारा लेना पड़ता है, जो पूर्ण को कहने के लिए नहीं बने हैं, जो अपूर्ण को कहने के लिए बने हैं।
पर ऋषियों का जो सिद्धांत है, वह मत नहीं, विवाद नहीं, वाद नहीं, हाइपोथीसिस नहीं, वह उनकी अनुभूति है। यह अनुभूति आकाश जैसी निर्लेप है। इसमें विचार का कोई भी आवरण नहीं है। यह खुले मुक्त आकाश जैसा है।
आप जब आकाश की तरफ देखते हैं, तो आकाश नीला दिखाई पड़ता है। तो आप सोचते होंगे कि आकाश का रंग नीला है, तो आपने गलती कर दी। आकाश का कोई रंग नहीं है। नीला आपको दिखाई पड़ता है। दिखाई पड़ता है आपको नीला, आकाश का कोई रंग नहीं है। आपको नीला दिखाई पड़ने का कारण हवाएं हैं। बीच में हवाओं की पर्ते हैं दो सौ मील तक। सूर्य की किरणें इन दो सौ मील तक हवाओं में प्रवेश करके भ्रांति पैदा करती हैं नीलिमा की। इसलिए जैसे ही इन दो सौ मील के पार उठ जाता है अंतरिक्ष में यात्री, आकाश रंगहीन हो जाता है, कलरलेस हो जाता है। __ आकाश में कोई रंग नहीं है, लेकिन हमारी आंख आकाश में रंग डाल देती है। उसे भी नीला कर देती है। अस्तित्व में भी कोई रंग नहीं है। लेकिन हमारे विचार और हमारी देखने की दृष्टि उसमें भी रंग डाल देती है। हम वही देख लेते हैं जो हम देख सकते हैं; वह नहीं, जो है।
लेकिन ऋषि तो वही देखते हैं, जो है। अगर वही देखना है, जो है, तो अपनी आंखों से छुटकारा चाहिए। अगर वही सुनना है, जो है, तो कानों से छुटकारा चाहिए। यह बात बड़ी उलटी लगेगी कि बिना आंखों के देखेंगे कैसे, बिना कानों के सुनेंगे कैसे! और मैं कह रहा हूं कि वही देखना है, जो है, तो आंख बीच में नहीं चाहिए, नहीं तो आंख बीच में उपद्रव पैदा करती है।
कभी आप प्रयोग करें, तो समझ में आ जाएगा।
जब पहली दफा गैलेलियो ने दूरबीन बनाई, खुर्दबीन बनाई, जिनसे दूर की चीजें देखी जा सकती हैं और पास की चीजें अनंत गुनी बड़ी हो जाती हैं, तो गैलेलियो की खबर उड़ गई; लोगों ने कहा कि यह आदमी कुछ चकमा दे रहा है। ऐसा कहीं हो सकता है! चीजें जितनी बड़ी हैं, उतनी बड़ी हैं। अगर एक पत्थर तीन इंच का है, तो तीन इंच का है; वह हजार इंच का कैसे दिखाई पड़ सकता है! और अगर दिखाई पड़ सकता है, तो कोई धोखा है। और खुली आंख से जो तारे हैं, वे दिखाई पड़ते हैं। अगर दूरबीन से ऐसे भी तारे दिखाई पड़ते हैं जो खुली आंख से दिखाई नहीं पड़ते, तो कहीं जरूर कोई धोखा है। ___ बड़े-बड़े पंडित और यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गैलेलियो की दूरबीन से देखने को राजी नहीं हुए। उन्होंने कहा, तुम्हारी दूरबीन हमें धोखा दे सकती है। जो राजी हुए, वे देखकर हट गए। उन्होंने कहा, इसमें कुछ चालबाजी है। क्योंकि जिस चेहरे को हम कहते थे, सुंदर और प्रीतिकर है, वह तुम्हारी खुर्दबीन से ऐसा दिखाई पड़ता है, जैसे ऊबड़-खाबड़ जमीन है। अगर चेहरे को बड़ा कर दिया जाए, तो आपके चेहरे के छोटे-छोटे छेद बड़े गड्ढे हो जाते हैं। सुंदर से सुंदर स्त्री ऐसी मालूम पड़ती है, जैसे पहाड़ी स्थान पर यात्रा कर रहे हैं। बहुत घबड़ाने वाला मालूम होता है।
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