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________________ यात्रा-अमृत की, अक्षय की—निःसंशयता, निर्वाण और केवल-ज्ञान की से निवेदन किया कि लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो बिलकुल किनारे पर खड़े हैं, जस्ट ऑन द बाउंड्री। अगर आप न बोलें तो वे इसी पार रह जाएं, अगर आप बोलें तो वे एक कदम उठा लें और उस पार हो जाएं। आप ठीक कहते हैं, देवताओं ने बुद्ध से कहा कि कुछ जो मुझे सुनकर समझ पाएंगे, वे मुझे बिना सुने भी समझ लेंगे। उनकी योग्यता इतनी है। कुछ जो मुझे बिना बोले नहीं समझ सकते, वे मुझे सुनकर भी गलत समझ लेंगे। उनकी अयोग्यता इतनी है। ___ लेकिन, देवताओं ने कहा, इन दोनों के बीच में भी कुछ लोग हैं, जो आप नहीं बोलेंगे तो शायद इसी पार रह जाएंगे और आप बोलेंगे तो शायद उस पार हो जाएंगे। बिलकुल किनारे पर हैं। जैसे पानी निन्यानबे डिग्री पर उबलता हो, आपके हाथ की गर्मी भी उसे सौ डिग्री कर देगी। वह भाप बन सकता है। माना कि जो बर्फ है, वह आपके हाथ को ही ठंडा करेगा। और यह भी माना कि जो सौ डिग्री पर पहुंच ही गया है, उसको आपके हाथ की गर्मी की भी कोई जरूरत नहीं, वह भाप बन ही जाएगा। लेकिन इन दोनों के बीच में भी कुछ हैं, उन पर कृपा करें। और बुद्ध को कुछ सूझा नहीं और बुद्ध को राजी होना पड़ा-उनके लिए बोलने को, जो शायद दोनों के बीच में हों। ऋषियों ने सदा उनके लिए ही बोला है, जो दोनों के बीच में हैं। पर ऋषियों ने सिद्धांत कहे हैं—मत नहीं, वाद नहीं, इज्म नहीं। केवल वही कहा है जो जीवन का परम रहस्य है। वह ऋषियों का विचार नहीं है, वह ऋषियों का अनुभव है। अनुभव और विचार में थोड़ा फर्क होता है, उसे समझ लें। ___ विचार होता है उस चीज के संबंध में जिसका हमें कोई पता नहीं। अगर आपसे कोई पूछे कि ईश्वर के संबंध में आपका क्या विचार है ? तो आप जरूर कोई विचार देंगे। आप कहेंगे, मैं मानता हूं ईश्वर को; या आप कहेंगे कि मैं नहीं मानता हूं ईश्वर को। लेकिन ये दोनों आपके विचार हैं। न तो जो मानता है, उसे पता है; और न उसे पता है, जो नहीं मानता है। वे एक ही गड्ढे में खड़े हैं। उन्होंने अपने गड्ढे का नाम अलग-अलग रख छोड़ा है। वे एक ही से अंधेरे में खड़े हैं। लेकिन जो जानता है, वह यह नहीं कहेगा कि मैं मानता हूं या नहीं मानता हूं। वह कहेगा, मैं जानता हूं। ___एक बहुत बड़े वैज्ञानिक, लापलेस, ने पांच ग्रंथों में नेपोलियन के समय में विश्व की पूरी व्यवस्था के बाबत एक किताब लिखी। वह किताब अनूठी है-पूरे ब्रह्मांड के बाबत! बड़ी किताब है। नेपोलियन ने किताब को उलटा-पलटा, देखा। वह चकित हुआ कि पांच खंडों में हजारों पृष्ठों की किताब है विश्व के संबंध में, लेकिन ईश्वर का एक जगह भी नाम भी नहीं आया। लापलेस को उसने बुलाया राजमहल अपने दरबार में और कहा कि किताब अदभुत है और तुमने श्रम किया है, जीवनभर लगाया है, लेकिन मैं सोचता था कि विश्व के संबंध में जो इतनी गहन किताब है, उसमें कहीं तो ईश्वर का उल्लेख होगा। तो ईश्वर शब्द का भी उल्लेख नहीं है एक बार। खंडन के लिए भी नहीं। यह भी लापलेस ने नहीं कहा कि ईश्वर नहीं है। __ लापलेस ने कहा कि ईश्वर की जो हाइपोथीसिस है, परिकल्पना है, ईश्वर का जो विचार है, उसकी मुझे जगत को समझाने के लिए कोई जरूरत नहीं। द हाइपोथीसिस ऑफ गॉड इज़ नाट रिक्वायर्ड टु एक्सप्लेन द यूनिवर्स। 497
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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