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________________ निर्वाण उपनिषद मानें तो जिम्मा आपका है। मेरे पास आकर मत कहें कभी भी कि मुझे ध्यान नहीं होता। ध्यान तो होगा ही, यह तो वैज्ञानिक नियम की बात है। दो और दो आप जोड़ेंगे तो चार हो ही जाएंगे। लेकिन दो और दो ही न जोड़ें और फिर चिल्लाते फिरें कि चार नहीं होते हैं, तो इसमें फिर किसी का कसूर नहीं है। इंद्रिय - निग्रह का पूरा खयाल रखें। एक इंचभर भी व्यर्थ अपव्यय न हो शक्ति का, तो सात दिन में इतनी शक्ति इकट्ठी हो जाएगी कि हम उसका उपयोग कर लेंगे। उस शक्ति पर ही आपको बिठाकर अंतर्यात्रा पर निकाल देंगे। भोजन भी कम से कम लें। क्योंकि भोजन के पचाने में हमारी ऊर्जा अधिकतम व्यय होती है। कम से कम लें। इतना लें कि आपको पता ही न चले कि आपने भोजन लिया है। बस, इतना खयाल रखें। भोजन के बाद ऐसा न लगे कि भोजन ले लिया है, इतना भोजन लें। बस, इसको ही सूत्र मानें। तो भोजन पचाने में ज्यादा आपकी शक्ति न लगे। ध्यान रहे कि जब भी भोजन पचता है तो मस्तिष्क की सारी ऊर्जा पेट पर चली जाती है। इसीलिए तो भोजन के बाद नींद आती है, क्योंकि मस्तिष्क की ऊर्जा नीचे उतर जाती है। और यहां तो हमें ध्यान का प्रयोग करना है, तो सारी ऊर्जा को मस्तिष्क की तरफ ले जाना है। वहीं से द्वार खुलना है। इसलिए कम से कम भोजन । ध्यान रखें उसका। तीसरी बात, जितनी शक्ति आपके भीतर हो उसमें इंचभर भी कृपणता न करें लगाने में। अगर उसमें कृपणता करेंगे, तो कई दफा ऐसा होता है कि आपने बिलकुल लगा दी और जरा सी बचा ली, वह जो जितनी लगाई वह बेकार हो जाएगी, वह जो जरा सी बचाई उसकी वजह से। सवाल यह नहीं है कि आप कितना लगाते हैं, सवाल यह है कि आप पूरा लगाते हैं या नहीं। समझ लें ऐसा कि एक आदमी के पास केवल दस मात्रा की शक्ति है और एक आदमी के पास सौ मात्रा की शक्ति है। अगर सौ मात्रा की शक्ति वाले ने निन्यानबे मात्रा लगाई और दस वाले ने पूरी दस लगा दी, तो दस वाला प्रवेश कर जाएगा और निन्यानबे वाला पीछे छूट जाएगा। आप यह नहीं कह सकते कि मैंने निन्यानबे लगाई और इसने दस लगाई। सवाल यह नहीं है। टोटल, जितनी है आपके पास उतनी लगा दें। कितनी है, इसकी मैं पूछता नहीं। जितनी हो उतनी लगा दें। एक बात ध्यान रखें भीतर कि जब ध्यान में लगा रहे हों वह ताकत, तो खयाल रखें कुछ भी बचाया नहीं है- -कुछ भी ! निश्चित ही, बिलकुल पागल हो जाना पड़ेगा। पागल हुए बिना कोई रास्ता नहीं है। लेकिन एक मजा है कि जब कोई आदमी स्वेच्छा से पागल होता है, तो कम से कम पागल की हालत होती है। और जब कोई आदमी मजबूरी में पागल होता है, पागल हो जाता है, तब ज्यादा से ज्यादा पागल की हालत होती है। जब आप अपनी ही मौज से पागल होते हैं तो आप कम से कम पागल होते हैं, क्योंकि भीतर का विवेक पूरा जागा रहता है। और अगर आप अपनी मर्जी से पागल होने को राजी नहीं तो किसी दिन आप पागल हो सकते हैं, लेकिन तब गैर-मर्जी से होंगे। उस वक्त आपके हाथ के बाहर होगी बात । ध्यान में जो गुजरेगा पूरे पागलपन से उसकी जिंदगी में पागलपन कभी नहीं आ सकता। और जो ध्यान के पागलपन से गुजरने की हिम्मत नहीं जुटाता वह कभी भी पागल हो सकता है । पागल है, कमोबेश मात्रा का फर्क होगा। तो तीसरी बात, पूरी शक्ति लगा देनी है। यहां सुबह जो ध्यान होगा, उसके तीन चरण हैं प्रयोग के 42
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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