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निर्वाण उपनिषद-अव्याख्य की व्याख्या का एक दुस्साहस
और चौथा चरण विश्राम का, चार चरण हैं। __पहले दस मिनट में आप आंख पर पट्टी बांध लेंगे, कान में रुई डाल देंगे, दस मिनट में श्वास लेनी है। इतने जोर से श्वास लेनी है कि पूरे शरीर की ऊर्जा, एनर्जी श्वास की चोट से जग जाए। श्वास का हथौड़ी की तरह उपयोग करना है और भीतर चोट पहुंचानी है, भस्त्रिका जैसा। कोई नियमबद्ध नहीं। तेज श्वास लेनी, छोड़नी; लेनी, छोड़नी। दस मिनट बिलकुल श्वास के साथ दौड़ना-भीतर, बाहर; भीतर, बाहर। दस मिनट में श्वास चोट करके शरीर के रोएं-रोएं में सोई हुई इलेक्ट्रिसिटी को जगा देगी। __और जब विद्युत जगेगी तो दूसरे चरण में शरीर में गति होनी शुरू होगी। कोई नाचने लगेगा, कोई कूदने लगेगा, कोई चिल्लाएगा, कोई रोएगा, कोई हंसेगा। उसे जोर से करना है दस मिनट। नाचें, गाएं, रोएं, चिल्लाएं, सारे जगत को भूल जाएं। अगर आपने दस मिनट पूरी गति से नाचना, चिल्लाना, रोना, हंसना. कदना किया. तो आप दस मिनट में पाएंगे कि शरीर अलग और आप अलग हैं। वह जो भीतर परमहंस बैठा है वह देखने लगेगा कि शरीर नाच रहा है, हंस रहा है, कूद रहा है, आप अलग हो जाएंगे।
तीसरे चरण में पिछले प्रयोग में हम यहां 'मैं कौन हूं' का प्रयोग कर रहे थे-इस बार सिर्फ 'हू' का प्रयोग करना है। हू की चोट, हुंकार, हू-हू-हू, तेज चोट करनी है। क्योंकि मैं कौन हूं में मस्तिष्क थोड़ा सोचने लगता है, इसलिए उसे छोड़ दें। हू में सोचने का कोई उपाय नहीं है। यह कोई शब्द नहीं है सिर्फ आवाज है, जैसे ओम, ऐसा हू। और इस हू की चोट आपकी नाभि के नीचे तक जाएगी। ठीक चोट करेंगे तो ठीक नाभि के नीचे तक हू की चोट प्रवेश कर जाएगी। और वहां से धारा शक्ति की उठेगी और मस्तिष्क की तरफ दौड़ने लगेगी। तीसरे चरण में दस मिनट तक हू। तीनों चरणों में आपको बिलकुल पागल हो जाना है।
चौथे चरण में जैसे ही मैं कहूं कि शांत हो जाएं, फिर एकदम शांत हो जाना है। फिर एक क्षण भी नहीं रुकना। फिर मन कह भी रहा हो, आनंद भी आ रहा हो, तो भी रुक जाना है। फिर एकदम रुक जाना और दस मिनट के लिए मुर्दे की तरह पड़ जाना है जमीन पर। पड़ गए मुर्दे की तरह, मर गए दस मिनट के लिए। अगर दस मिनट में एक क्षण को भी मौत आपके भीतर आ गई, तो उसी द्वार से परमात्मा प्रवेश कर जाएगा।
यह अभी का प्रयोग। दोपहर को तीस मिनट कीर्तन करेंगे हम यहीं आकर। और तीस मिनट फिर बिलकुल मौन में चले जाएंगे। फिर रात्रि की सूचना मैं आपको रात्रि दे दूंगा।
तो अपनी-अपनी जगह ले लें। हट जाएं थोड़े दूर-दूर। खड़े होकर प्रयोग होगा। दूर-दूर हट जाएं, ताकि सभी को कूदने-नाचने की पूरी सुविधा हो सके। यह तो बड़ा मैदान है, आप दूर-दूर हट जाएं और आनंद से नाच सकें इतनी फिकर कर लें।
...हां, दूर-दूर फैल जाएं, नहीं तो बाधा पड़ेगी। कोई आपको धक्का दे देगा। और कपड़े भी किसी को छोड़ने का मन आ जाए तो बिलकुल छोड़ देना, उसकी फिकर न करें। पहले से किसी को छोड़ देना हो, वह पहले से उतारकर अलग रख दे। बीच में किसी को खयाल आ जाए, फौरन कपड़े अलग कर दे, उसकी जरा चिंता न करे। और कम तो कर ही दें, ताकि कपड़े की कोई बाधा न रह जाए।
...हां, आंख पर पट्टियां बांध लें, कान पर रुई ले आए हों तो रुई लगा लें, अन्यथा आज दोपहर
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