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________________ निर्वाण उपनिषद - अव्याख्य की व्याख्या का एक दुस्साहस गया, उन्होंने पूछा, कौन सा आदेश ? जब मूसा के पास गया, यहूदी मूसा के पास गया ईश्वर और उसने कहा कि मैं कुछ आदेश तुम्हें देना चाहता हूं, तो मूसा ने पूछा, कितने दाम होंगे ? हाऊ मच इट विल कॉस्ट ? यहूदी यही पूछेगा। जैनों के पास आता तो जैनी भी यही पूछता, हाउ मच इट विल कॉस्ट ? ईश्वर ने कहा कि नहीं, कुछ भी कीमत नहीं, मुफ्त में दूंगा । तो मूसा ने कहा, देन आई विल टेक टेन । तब मैं दस ले लूंगा, क्या हर्जा है ! अगर मुफ्त ही दे रहे हो तो दस दे दो। फिर एक की क्या बात है । इसलिए दस आदेश ईश्वर ने दिए – टेन कमांडमेंट्स । लेकिन उपनिषदों के पास ऐसा कोई आदेश नहीं है— चोरी मत करो, बेईमानी मत करो, व्यभिचार मत करो - कोई आदेश नहीं है। एम्मॉरल, बिलकुल नीतिशून्य है। कारण है। कारण यह है कि उपनिषद धर्मग्रंथ हैं, नीतिग्रंथ नहीं हैं। उपनिषद कहते हैं कि चोरी मत करो, यह तो चोरों से कहने की बात है। झूठ मत बोलो, यह तो झूठों से बोलने की बात है। हम तो उस परम सत्य के अन्वेषण करने वाले हैं, जहां झूठ प्रवेश नहीं करता, जहां चोरी की कोई खबर नहीं मिलती। वहां इस सबकी चर्चा ? इस सबकी कोई चर्चा का कारण नहीं है। हम तो उस परम ज्योति की तलाश कर रहे हैं, जहां नीति- अनीति का कोई सवाल नहीं उठता, जहां आदमी द्वंद्व के पार चला जाता है। इसलिए, मैं परमहंस हूं, उपनिषद का ऋषि कहता है । और संन्यास परमहंस अवस्था में पूरी तरह थिर हो जाना है। यह कोई नैतिक धारणा नहीं, एक धार्मिक यात्रा है। आज इतना ही । • हम और सूत्र लेंगे। अब हम ध्यान के लिए तैयार होंगे। तो कुछ बातें समझ लें जो कल रात मैं आपसे नहीं पूरी कह पाया। दो-तीन सूत्र आपसे कह देने हैं, फिर हम ध्यान के लिए बैठेंगे। रात मैं आपसे कहा कि सात दिनों के लिए — इंद्रिय - निग्रह । इंद्रियों का जितना कम उपयोग कर सकें, उतना हितकर है। बिलकुल न करें, परम हितकर है। आंखें बंद रखें अधिकतम समय, ओंठ बंद रखें अधिकतम समय, कान बंद रखें अधिकतम समय । ये सात दिन बिलकुल ही ध्यान के लिए दे दें। इसमें कोई और दूसरे विकल्प न रखें। घूमने भी मत जाएं, देखने भी मत जाएं। यह भी नहीं कि मंदिर देखने जाना है, और वह स्थान देखना है, और वह स्पॉट देखना है। उस पागलपन के लिए फिर कभी आएं। अभी यह पागलपन काफी है। कोई दूसरी बात बीच में न खड़ी करें। हमारा मन बहुत कुशल है धोखा देने में। वह कहेगा कि कम से कम मंदिर के तो दर्शन कर ही आने चाहिए। नहीं, बिलकुल नहीं, मंदिर भी नहीं । स्वभावतः, सिनेमागृह जाने की बात ही नहीं है, मंदिर भी नहीं। कहीं न जाएं, इस सात दिन तो अपने भीतर ही जाएं और सब यात्राएं बंद कर दें। अगर मेरी मान पाएं तो आपको कहने का कारण नहीं रहेगा कि यह ध्यान हमें कब होगा ! अगर मेरी 41
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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