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________________ निर्वाण उपनिषद चेतना की ऐसी दशा भी है जहां नियंत्रण की कोई जरूरत ही नहीं होती । चेतना की इतनी प्रबुद्ध स्थिति भी है, जहां विकार सामने आने की हिम्मत ही नहीं करते। इतना जागरूक व्यक्तित्व भी होता है, जहां अंधेरा निकट आने का साहस नहीं जुटा पाता । कोई नियंत्रण नहीं है । संन्यास धर्म की परम आकांक्षा है। संन्यासी वह नहीं है जो नियंत्रित है, कंट्रोल्ड | संन्यासी वह नहीं है जिसने कि अपने ऊपर संयम थोप लिया। संन्यासी वह है जो इतना जागा कि संयम व्यर्थ हो गया, नियंत्रण की कोई जरूरत न रही। यह ठीक से समझ लें, क्योंकि आगे के सूत्र बहुत ही क्रांतिकारी हैं और इसको समझेंगे तो ही खयाल में आ सकेंगे। इसको ठीक से समझ लें, अन्यथा आगे के सूत्र कठिन हो जाएंगे। इसलिए उपनिषदों ने नीति की कोई बात नहीं की। ईसाइयों के पास टेन कमांडमेंट्स हैं और ईसाई बड़े गौरव से कह सकते हैं कि तुम्हारे उपनिषदों के पास एक भी कमांडमेंट नहीं, एक भी आदेश नहीं है। दस उनके पास सूत्र हैं— चोरी मत करो, व्यभिचार मत करो, झूठ मत बोलो - ऐसे दस सूत्र हैं । एक मजाक मैंने सुनी है। सुना है कि परमात्मा उतरा और अनेक लोगों के पास गया। वह गया एक सबसे पहले, एक राजनीतिज्ञ के पास । सोचा कि यह मान जाए तो बहुत लोग मान जाएंगे। परमात्मा ने उससे कहा कि मैं तुम्हें एक आदेश देने आया हूं, क्या तुम लेना चाहोगे ? राजनीतिज्ञ ने पूछा कि पहले मैं जांच लूं कि आदेश है क्या? तो परमात्मा ने कहा, झूठ मत बोलो। तो राजनीतिज्ञ ने कहा, मर गए। अगर झूठ न बोलें तो हम मर गए। राजनीति का सारा धंधा झूठ पर खड़ा है। क्षमा करें, आप कोई और आदमी खोजें । यह आदेश हम न मान सकेंगे। परमात्मा पुरोहित के पास गया, क्योंकि राजनीतिज्ञ के बाद पुरोहित का प्रभाव है। परमात्मा ने उससे भी कहा कि आदेश मैं तुम्हें कुछ देने आया हूं। उसने कहा, कौन सा आदेश ? परमात्मा ने कहा, पहला देश, झूठ मत बोलो। पुरोहित ने कहा कि अगर हम झूठ न बोलें, तो ये सारे मंदिर, मस्जिद, ये गिरजे, गुरुद्वारे ये सब गिर जाएं। हमें खुद ही पता नहीं है कि तुम हो, फिर भी हम कहते रहते हैं कि तुम हो। हमें खुद ही पता नहीं है कि कोई मोक्ष है, फिर भी हम समझाते रहते हैं कि मोक्ष है, और लोगो जाओ! हमें खुद ही पता नहीं है कि पाप का कोई दुष्फल मिलता है, लेकिन हम लोगों को समझाते रहते हैं कि पाप का दुष्फल मिलता है, और पीछे के दरवाजे से हम पाप किए चले जाते हैं। नहीं, यह न हो सकेगा, यह तो हमारा पुरोहित का सारा धंधा ही गिर जाएगा। यह तो पुरोहित का धंधा ही झूठ पर खड़ा है। और जो पुरोहित जितनी हिम्मत से झूठ बोल सकता है उतना धंधा ठीक चलता है। हमारे धंधे में, पुरोहित ने कहा कि झूठ और सच में एक ही फर्क है— हिम्मत से बोलने का । क्षमा करें, हम आपकी पूजा-प्रार्थना करते रह सकते हैं, लेकिन यह काम अगर हमने किया तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी। ऐसे ईश्वर बहुत लोगों के पास भटका । वह व्यापारी के पास गया। वह वकील के पास गया। उसने बहुत धंधों के लोगों से सलाह ली, कोई राजी न हुआ। कहते हैं, फिर वह मोजिज़ के पास गया, यहूदियों का जो प्रोफेट है मोजिज, मूसा के पास गया। यहूदियों के संबंध में आपको एक बात खयाल दे दूं तो समझ में आ जाएगा। यहूदी खरीदने-बेचने की भाषा में सोचते हैं, व्यापारी हैं, पक्के व्यापारी हैं। जिनके भी पास ईश्वर 40
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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