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________________ निर्वाण उपनिषद को मैं कह सकते हैं, उन सबकी तरफ से है। इस परमहंस को अगर विकसित करना हो, सजग करना हो, ज्योतिर्मय करना हो, तो इसका उपयोग करना चाहिए। ___ हम जिस चीज का उपयोग करते हैं, वहीं प्रगाढ़ हो जाती है, प्रखर हो जाती है, तेजस्वी हो जाती है। अगर हम बैठे रहें तो पैर चलने की क्षमता खो देते हैं, अगर हम आंखें बंद करे रहें तो कुछ ही दिनों में आंखें देखना बंद कर देती हैं। उपयोग करना पडे। सुना है मैंने, कोई दो सौ साल आगे की कहानी सुनी है। बाइसवीं सदी में जैसे और सब चीजें बिकती हैं, ऐसे ही लोगों के मस्तिष्क भी बिकने लगे हैं, स्पेयर। आपको अपना दिमाग अगर ठीक नहीं मालूम पड़ता है, तो आप जा सकते हैं और अपनी खोपड़ी के भीतर जो है, उसे बदलवा सकते हैं। एक आदमी एक दुकान में गया है, जहां मस्तिष्क बिकते हैं। अनेक तरह के मस्तिष्क हैं। दुकानदार ने उसे मस्तिष्क दिखाए और उसने कहा कि यह एक वैज्ञानिक का मस्तिष्क है, पांच हजार रुपए इसके दाम होंगे। उसने कहा, यह तो बहुत ज्यादा हो जाएगा। लेकिन इससे भी अच्छे मस्तिष्क हैं क्या? तो उसने बताया है कि यह एक धार्मिक आदमी का मस्तिष्क है, इसके दाम दस हजार रुपए होंगे। उसने कहा, बहुत महंगा है। लेकिन क्या इससे भी कोई अच्छा है? उसने कहा, सबसे अच्छा यह मस्तिष्क है, इसके दाम पच्चीस हजार रुपए होंगे। उसने कहा, यह किसका मस्तिष्क है ? क्योंकि वह चकित हुआ। वैज्ञानिक का पांच हजार दाम है. धार्मिक का दस हजार दाम. यह किसका मस्तिष्क है। उसने कहा, यह राजनीतिज्ञ का मस्तिष्क है। तो उस आदमी ने कहा, राजनीतिज्ञ के मस्तिष्क का इतना दाम! तो उस दुकानदार ने कहा, बिकाज इट हैज बीन नेवर यूज्ड, इसका कभी उपयोग नहीं किया गया है। राजनीतिज्ञ को दिमाग का उपयोग करने की जरूरत भी क्या है ? तो यह बिलकुल फ्रेश है, क्योंकि कभी भी इसका . उपयोग नहीं हुआ। एक मील भी नहीं चला। बिलकुल ताजा है। इसलिए इसके दाम ज्यादा हैं। किसी दिन अगर मस्तिष्क बिकें तो राजनीतिज्ञों के मस्तिष्कों के दाम ज्यादा होंगे। जिस चीज का उपयोग न किया जाए. बंद पड़ जाती है। अगर एक घड़ी की गारंटी दस साल चलने की हो और आप चलाएं ही न, तो सौ साल चल सकती है। चल सकती है मतलब चलाएं ही न! जिस चीज का हम उपयोग नहीं करते उसके चारों तरफ अनुपयोग की एक आवरण, व्यवस्था निर्मित हो जाती है। हम अपने जीवन में इस परमहंस-पन का जरा भी उपयोग नहीं करते। हम कभी सार और असार में फर्क नहीं करते। धीरे-धीरे धीरे-धीरे हम भल ही जाते हैं कि हमारे भीतर वह बैठा है जो जहर और अमृत को अलग कर सकता है। ___ ध्यान रहे, हम जहर को चुन ही इसीलिए पाते हैं, क्योंकि वह जो अलग करने वाला है, करीब-करीब निष्क्रिय पड़ा है। नहीं तो जहर को कोई चुन न पाए। अगर आपको दिखाई पड़ जाए कि सार क्या है और असार क्या है, तो क्या असार को चुन सकिएगा? सार को छोड़ सकिएगा? दिख गया तो बात समाप्त हो गई। इसलिए सुकरात कहता थाः ज्ञान ही क्रांति है, ज्ञान ही आचरण है। अगर दिखने लगा कि यह पत्थर है, हीरा नहीं, तो उसको कैसे ढोइएगा! अगर समझ में आ गया कि यह नकली सिक्का है, असली नहीं, तो इसको तिजोरी में सम्हालकर कैसे रखिएगा! तिजोरी में तभी तक सम्हालकर रख सकते हैं जब तक 736
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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