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________________ निर्वाण उपनिषद भरा नहीं होता। इसलिए परमात्मा से प्रार्थना कर ली है कि हम एक उपद्रव के काम में उतरते हैं, तू हमारी रक्षा करना। ___ इतना विनम्र जो व्यक्ति है, इतनी ह्यूमिलिटी है जहां, वह एक पहले ही सूत्र में जो घोषणा करता है, वह बहुत अदभुत है। ___ वह कहता है, मैं परमहंस हूं। परमहंसः सोऽहम्। जो इतना विनम्र है कि सत्य बोलने में भी कहता है, परमात्मा मेरी रक्षा करना, जो इतना विनम्र है कि इस उपनिषद को रचता है और कहता है कि हम सिर्फ व्याख्यान कर रहे हैं उस उपनिषद पर जो सदा से है, वह पहली ही घोषणा में कहता है, मैं परमहंस हूं। __ बड़ा विपरीत मालूम पड़ेगा। लेकिन ध्यान रहे, जो इतने विनम्र हैं, वे ही इतनी स्पष्ट घोषणा कर सकते हैं। विनम्रता ही कह सकती है अपनी गहराइयों में कि मैं परमात्मा हूं, नहीं तो नहीं। अहंकार कभी हिम्मत नहीं जुटा सकता कहने की कि मैं परमात्मा हूं। यह बहुत मजे की बात है। ____ अहंकार कभी हिम्मत नहीं जुटा सकता कहने की कि मैं परमात्मा हूं। अहंकार बहुत निर्बल है। बहुत कमजोर है। यह उसका साहस नहीं है। वह छोटे-मोटे दावे कर सकता है कि मैं चीफ मिनिस्टर हूं, कि प्राइम मिनिस्टर हूं, कि राष्ट्रपति हूं, ये दावे कर सकता है। लेकिन अहंकार यह दावा कभी नहीं कर सकता है कि मैं परमात्मा हूं। नहीं करने का कारण है। क्योंकि राष्ट्रपति कोई हो जाए तो अहंकार बड़ा होता है, लेकिन परमात्मा कोई हो जाए तो अहंकार शून्य हो जाता है। मैं परमात्मा हूं, यह कहने का अर्थ है कि मैं नहीं है। मैं परमात्मा हं, यह कहने का अर्थ है, मैं की हत्या हो गई। इस पृथ्वी पर सर्वाधिक अहंकारपूर्ण दिखने वाली घोषणाएं-दिखने वाली, जस्ट इन ' एपियरेंस-उन लोगों ने की हैं जो बिलकुल विनम्र थे, जिनके जीवन में अस्मिता थी ही नहीं। कृष्ण कह सकते हैं अर्जुन से, सर्व धर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। सब छोड़, मेरे चरणों में आ। यह कोई अहंकारी नहीं कह सकता। अहंकारी कोशिश यही करता है कि सब छोड़ और मेरे चरणों में आ। लेकिन यह कह नहीं सकता। अहंकार होशियार है। वह जानता है कि अगर अपने अहंकार को प्रगाढ़ करना हो तो छिपाओ, बचाओ। अगर अपने अहंकार को बड़ा करना हो तो दूसरे के अहंकार को चोट मत पहुंचाओ, परसुएड करो, दूसरे के अहंकार को राजी करो। कृष्ण जैसा निरहंकारी ही कह सकता है कि सब छोड़कर मेरे चरणों में आ जा। यह उपनिषद का ऋषि कहता है, मैं परमहंस हूं। यह पहली घोषणा है निर्वाण उपनिषद की। क्या अर्थ है परमहंस होने का? यह पारिभाषिक शब्द है। हंस के साथ एक माइथोलाजी. एक मिथ, एक पुराण-कथा चलती है कि वह दूध और पानी को अलग-अलग करने में समर्थ है। है या नहीं, इससे कोई प्रयोजन नहीं है। यह शाब्दिक है। यह शब्द हंस अर्थ रखता है कि जो दूध और पानी को अलग करने में समर्थ है। और परमहंस उसे कहते रहे हैं, जो सार और असार को अलग करने में समर्थ है, जो सत्य और असत्य को अलग करने में समर्थ है।। ____ तो ऋषि कहता है, मैं परमहंस हूं। मैं वही हूं, जो सार और असार को अलग करने में समर्थ है। यह घोषणा पहले ही सूत्र में! यह घोषणा उचित है, क्योंकि पीछे सार और असार को अलग करने की ही 734
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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