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निर्वाण उपनिषद
उसे कुछ भी समझ में नहीं आता।
रामकृष्ण के जीवन में उल्लेख है कि उन्हें जो पहली समाधि मिली वह छह वर्ष की उम्र में मिली। ऐसे ही किसी पहाड़ के निकट से गुजरते थे, खेत की मेड़ पर। हरे-भरे खेत फैले थे। सुबह का सूरज निकला था, पीछे काले बादलों की एक कतार आकाश में थी। और खेत की मेड़ से गुजरते ही एक खेत में बैठे हुए बगुलों की एक भीड़ रामकृष्ण के पैर की आहट सुनकर उड़ गई। एक पंक्तिबद्ध बगुले उड़े। पीछे थे काले बादल, सुबह का सूरज, नीचे थी हरियाली, और सफेद बगुलों की पंक्ति का खिंच जाना उन काले बादलों की पृष्ठभूमि में-रामकृष्ण वहीं आंख बंद करके समाधिस्थ हो गए। और जब रामकृष्ण से बाद में लोग पूछते थे, तो रामकृष्ण कहते थे कि बहुत प्रार्थना-पूजा करके भी उस गहराई को पाना मुश्किल मालूम पड़ता है, जो उस दिन बगुलों की वह उड़ी हुई कतार दे गई थी। __ आप कहेंगे कि क्या बगुलों की कतार से समाधि मिल सकती है? हमने भी बगुले देखे हैं, काले बादल देखे हैं, हमने भी पहाड़ देखे हैं। लेकिन जिसे जीवन के काव्य का कोई अनुभव नहीं हुआ है, वह रामकृष्ण के इस अनुभव को न समझ पाएगा।
हमें जो अनुभव हैं, वह हम समझ पाते हैं। शब्द उसकी सूचना दे पाते हैं। इसलिए जितना गहरा अनुभव होने लगता है, उतनी ही कठिनाई शब्दों में होने लगती है। और सत्य का अनुभव तो अंतिम है, अल्टीमेट है, आत्यंतिक है, आखिरी है। ऋत का अनुभव तो चरम है। उस अनुभव को शब्द में कहने जब मैं जाऊं, तब तुम मेरी रक्षा करना, ऋषि कहता है प्रभु से।
लेकिन कौन कहता है कि कहने जाना। मत जाना! लेकिन एक कठिनाई है। जितना गहरा अनुभव हो उतनी ही तीव्रता से प्रकट होना चाहता है। उसके कारण हैं।
सत्य का जब अनुभव होता है, तो प्राण हृदय से प्रफुल्लित हो जाते हैं, आनंद से प्रफुल्लित हो जाते हैं। और आनंद का गुण है, बंटने की इच्छा। आनंद बंटना चाहता है। जब आप दुख में होते हैं तो सिकुड़ जाते हैं, बंद। चाहते हैं कोई मिले न, कमरे में छिप जाएं, मर जाएं। जब आप आनंद में होते हैं, तो दौड़ते हैं कि कोई मिल जाए उससे बांट लें।
महावीर और बुद्ध जब दुख में थे तो जंगल चले गए। जब आनंद से भरे तो गांव में वापस लौट आए।
यह बहुत मजे की बात है कि जब भी कोई दुखी था तो जंगल में गया और जब आनंद से भरा तो बांटने के लिए नगरों में वापस आ गया। आना ही पड़ेगा। आनंद बंटना चाहता है। शेयर, किसी के साथ साझा, कोई बांट ले, कोई थोड़ा ले ले। क्यों? क्योंकि आनंद जितना बंटता है उतना बढ़ता है। अगर आप अपने पूरे हृदय के आनंद को उलीच दें, तो आप तत्काल पाएंगे उससे अनंतगुना आपके हृदय में फिर भर गया।
कबीर ने कहा है. दोनों हाथ उलीचिए। उलीचो। क्योंकि अनंत स्रोत के करीब आ गए हो। अब कितना ही उलीचो, समाप्त नहीं होगा। आनंद तो आनंद है ही, उसका बांटना परम आनंद है। ___ इसलिए ऋषि कहता है, मेरी रक्षा करना। क्योंकि सत्य का जब मुझे अनुभव होगा, ऋत में मैं जब जीऊंगा तो मैं कहना चाहूंगा, जो मैंने जाना है, वह बताना चाहूंगा। और शब्द नष्ट कर देते हैं। तुम मेरी रक्षा करना।
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