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________________ भ्रांति भंजन, कामादि वृत्ति दहन, अनाहत मंत्र और अक्रिया में प्रतिष्ठा ऋषियों ने एक ऐसे मंत्र को खोजा है, जो अनाहत है। जो न कंठ से बोला जाता है, न ओंठ से बोला जाता-जो बोला ही नहीं जाता, अबोला है, अजपा है। उसका जप नहीं होता। उसका जप चल ही रहा है, सिर्फ हमने सुना नहीं है। जैसे कभी अंधेरी रात में सन्नाटा होता है। आप गपशप में लगे हैं, सुनाई नहीं पड़ता है। फिर गपशप बंद हो गई, आप अकेले बैठे हैं, अचानक चारों तरफ सन्नाटे की आवाज गूंजने लगती है। वह जब आप बोल रहे थे, तब भी गूंज रही थी, लेकिन आपके बोलने में इतनी दबी थी। मुल्ला नसरुद्दीन एक संगीतज्ञ को सुनने गया है। साथ में उसकी पत्नी है। संगीतज्ञ बड़े जोर से आलाप भर रहा है। शास्त्रीय संगीतज्ञ है। नसरुद्दीन बड़ा बेचैन हो रहा है। पत्नी बड़ी आनंदित हो रही है। पत्नी ने आखिर में पूछा, कैसा लग रहा है संगीत? अदभुत है! पत्नी ने कहा, अदभुत है! कैसा लग रहा है संगीत? नसरुद्दीन ने कहा, जरा जोर से बोलो, इस दुष्ट की वजह से कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा है। यह इतने जोर से चिल्ल-पों मचा रहा है कि तू क्या कहती है, कुछ सुनाई नहीं पड़ता। तो उसकी पत्नी ने कहा कि तुम बड़े डोल रहे थे, हिल रहे थे, तो मैं समझी कि तुम बड़े आनंदित हो रहे हो। नसरुद्दीन ने कहा, मैं बड़ा बेचैन हो रहा हूं। अपने घर जो बकरा मरा था, वह भी इसी हालत में मरा था। इसी तरह आलाप भर रहा था। तो मैं यह देख रहा हूं कि यह आदमी अब मरा, अब मरा। यह बिलकुल आखिरी घड़ी में है। इसको बचाना बिलकुल मुश्किल है। बकरे को भी अपन बचा नहीं पाए थे। तो में इसलिए हिल-डुल रहा है कि कोई उपाय हो सकता है इसको बचाने का कि नहीं। यह दुष्ट बोलना बंद करे, तो मैं सन पाऊं कि त क्या कहती है. नसरुद्दीन कह रहा है। और वह पछ रही है कि अदभुत है यह संगीत! हम जब बंद हों, यह हमारा शास्त्रीय संगीत जो चल रहा है चौबीस घंटे, यह जब बंद हो, तो हमें अनाहत नाद का पता चले। वह चल रहा है पूरे वक्त। कहना चाहिए वह बायोलाजिकल है, बिल्ट-इन बायोलाजिकल है। वह हमारे होने में ही है। एग्झिस्टेंशियल है। जब कुछ भी ध्वनि नहीं रह जाती भीतर, तब भी एक ध्वनि रह जाती है, जो हमारी पैदा की हुई नहीं है, अनाहत है। अपने आप हो रही है, स्व-आविर्भूत है। उस ध्वनि का नाम अनाहत है। और वह ध्वनि जहां चोट करती है, उस चोट के स्थान का नाम अनाहत चक्र है। ___और अनाहत की वह ध्वनि ही संन्यासी का मंत्र है, क्योंकि संन्यासी उसकी ही खोज पर निकला है, जो असृष्ट है, अनक्रिएटेड है। संसारी उसकी खोज पर निकला है, जो बनाया हुआ है, बनाया गया है। संन्यासी उसकी खोज पर निकला है, जो अनबना है, अनक्रिएटेड है। अगर अनबने को खोजना है, अनबना ही ब्रह्म है, तो फिर अनबने साधन से ही खोजना पड़ेगा। 'अनाहत उसका मंत्र है। अक्रिया उसकी प्रतिष्ठा है। वह क्रिया में नहीं जीता, वह अक्रिया में ही प्रतिष्ठित रहता है क्रिया करते हुए भी। इसलिए कहा, अक्रिया उसकी प्रतिष्ठा है। ऐसा नहीं कहा कि वह क्रिया नहीं करता है। अक्रिय हो जाता है, ऐसा भी नहीं कहा। अक्रिया उसकी प्रतिष्ठा है। चलता है, लेकिन चलते समय भी उसमें प्रतिष्ठित रहता है, जो कभी नहीं चला है। बोलता है, लेकिन बोलते समय भी उसमें प्रतिष्ठित रहता है, जो मौन है। भोजन करता है, लेकिन भोजन करते वक्त भी उसमें प्रतिष्ठित रहता है, जिसके लिए भोजन की कोई भी 2797
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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