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निर्वाण उपनिषद
हर शब्द की गहराई है आपके भीतर। हर ध्वनि आपके भीतर अलग गहराइयों तक प्रवेश करती है। इसलिए मंत्र गुरु के द्वारा दिया जाता रहा। उसका और कोई कारण नहीं था । और जब गुरु मंत्र देता है, तो कई दफे लेने वाले को लगता है कि अरे, यह मंत्र ! यह तो हमें पहले ही मालूम था । और गुरु के पास गए, उन्होंने बड़े प्राइवेट में, और बड़े कान में कहा कि राम-राम बोलना। हद हो गई, यह भी कोई मंत्र हुआ? यह राम-राम किसको पता नहीं है? यह तो हम पहले ही से बोल रहे थे। तो गुरु ने ऐसा कौन सा खूबी का काम कर दिया कि कान में कह दिया, राम-राम बोलना। उसके कारण और हैं। रामं - राम तो आपको परिचित है, लेकिन आपके उपयोग का है या नहीं, यह आपको पता नहीं है।
और कई बार गलत मंत्रों का उपयोग लोग करते रहते हैं, जो उन्हें नहीं करना चाहिए। क्योंकि हो सकता है, उन मंत्रों के उपयोग से उनके भीतर जहां चोट पड़ती हो, वह उन्हें कठिनाई में डाले । जैसे कि मैं हू पर आग्रह करता हूं। क्योंकि मेरा मानना है कि हमारा युग कामातुर युग है। सेक्स सेंटर इज़ द मोस्ट सिग्नीफिकेंट टुडे | आज की अधिकतम बीमारियां, आज की अधिकतम चिंता, आज की अधिकतम परेशानी, काम-केंद्र से जुड़ी है। तो अगर इस युग में कोई भी रूपांतरण करना है, तो एक ऐसी ध्वनि का उपयोग करना पड़ेगा, जो काम ऊर्जा को जगाए और कुंडलिनी की तरफ प्रवाहित कर दे।
संन्यासी का मंत्र अनाहत है, क्योंकि संन्यासी वह है जिसकी काम-ऊर्जा कुंडलिनी की तरफ चल पड़ी। उसे वहां चोट करने का सवाल नहीं है। अब वह अनाहत पर चोट करे । अनाहत, सोहम् ।
अनाहत का अर्थ होता है, जो बिना चोट के पैदा हो - बिना आहत, बिना किसी चोट के । अगर हम दोनों तालियां बजाएं तो यह आहत ध्वनि है। क्योंकि दो चीजों की चोट हुई, तब यह पैदा हुई। जो भी ध्वनि चोट से पैदा होगी, वह आहत ध्वनि है। वह अनाहत चक्र तक नहीं पहुंचेगी। अनाहत तक एक ही ध्वनि पहुंच सकती है, जो बिना चोट के पैदा होती है।
झेन फकीर जापान में कहते हैं अपने साधक को कि जाओ और खोजो उस ध्वनि को, जो एक ही हाथ से पैदा होती है। एक ही हाथ से कोई ध्वनि पैदा नहीं होती। एक ध्वनि है जो अनाहत है, जैसे सोहम् । सोहम् आपको पैदा नहीं करना पड़ता। अगर आप शांत बैठ जाएं और केवल अपनी श्वासों को देखते रहें आते और जाते, कमिंग इन, गोइंग आउट, सिर्फ श्वास को देखते रहें। थोड़ी ही देर में श्वासों में सोहम् का उच्चार शुरू हो जाएगा बिना आपके । श्वासों की गति ही सोहम् के उच्चार को पैदा करती है। श्वास के होने में ही सोहम् की ध्वनि छिपी हुई है। इसलिए सोहम् न तो संस्कृत है, न किसी और भाषा का है । सोहम् कहें, निसर्ग की ध्वनि है, जो आपके भीतर श्वास से पैदा होती रहती है।
यह अनाहत ध्वनि है। इस ध्वनि की चोट अनाहत चक्र पर होती है। और इस ध्वनि की चोट बड़ी गहरी और बड़ी बारीक और बड़ी सूक्ष्म है। और अनाहत चक्र में वह सारी शक्ति छिपी है, जो ऊर्ध्वगमन
साधन बनती है।
संन्यासी का मंत्र अनाहत है। वह ऐसे मंत्र का उपयोग नहीं करता जो ओंठों से बोला जाए। क्योंकि ओंठों से बोला जाएगा, वह ओंठों से गहरा नहीं जाता। वह ऐसे मंत्र का उपयोग नहीं करता, जो कंठ से बोला जाए। क्योंकि जो कंठ से बोला जाएगा, वह कंठ तक ही रह जाता है। वह ऐसे मंत्र का उपयोग नहीं करता, जो मन से बोला जाए। क्योंकि जो मन से बोला जाएगा, वह मन के पार नहीं ले जा सकता।
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