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________________ भ्रांति भंजन, कामादि वृत्ति दहन, अनाहत मंत्र और अक्रिया में प्रतिष्ठा आदमी मैंने नहीं देखा। हर हालत में तुम मेरे साथ रहे। नसरुद्दीन ने कहा, सच्चाई बताएं? जब मैं घर से चलने लगा, तो मेरी पत्नी ने कहा, सदा जनरल के पीछे रहना, क्योंकि जनरल कभी मारे नहीं जाते। उसी कारण से आपके पीछे तकलीफें उठाकर भी लगा रहा। घर लौट आए नसरुद्दीन, लेकिन तलवार पकड़ना भी सीख न पाए थे, क्योंकि आड़ में ही समय बीता। लेकिन गांव में खबर फैल गई कि नसरुद्दीन लौट आए हैं युद्ध से। तो काफी हाउस में भीड़ इकट्ठी हो गई और लोग नसरुद्दीन से पूछने लगे कि कुछ सुनाओ। नसरुद्दीन क्या सुनाएं! उन्होंने कुल एक ही काम किया था। फिर भी कुछ सुनाना जरूरी था, सोचने लगे। तभी एक और सैनिक काफी हाउस में बैठा था । उसने कहा, कुछ बताते नहीं! इतना भयंकर युद्ध हुआ, मैंने अकेले सैकड़ों आदमियों की गर्दनें काट दीं। और नसरुद्दीन, तुम तो तमगा लेकर लौटे हो जनरल का कि तुम बड़े बहादुर आदमी हो ! नसरुद्दीन ने कहा कि गर्दनें? ऐसा हुआ एक बार कि तीन-चार आदमियों के पैर मैंने काट दिए । उस सैनिक ने कहा, पर यह बहादुरी हमने पहले कभी नहीं सुनी। आदमी काटता है तो गर्दन ! नसरुद्दीन ने कहा, गर्दन तो कोई पहले ही काट चुका था। गर्दन तो कोई पहले ही काट चुका था, अपर्चुनिटी, तो मैंने उठाई तलवार और चार-छह आदमियों के पैर धड़ल्ले से काट दिए। नो इतनी ही बहादुरी करके वह लौटे थे। स्वाभाविक है । आड़, और आड़, ,और आड़, तो जिंदगी ऐसी ही हो जाती है— लोच-पोच । उसमें कुछ बचता नहीं । भीतर का सत्व गिर जाता है, नीचे गिर जाता है। संघर्ष ही उनका आवास है । आड़ में वे नहीं जीते। खुले, वलनरेबल, ओपन, जो भी हो, राजी । तूफान आए, आंधियां आएं, दुख आएं, पीड़ा आएं, मौत आए - वलनरेबल - सदा खुले । अनाहत जिनका मंत्र, अक्रिया जिनकी प्रतिष्ठा । अनाहत मंत्रम् । इन संन्यासियों का मंत्र क्या है ? इनकी साधना क्या है? तो ऋषि कहता है, अनाहत मंत्र । इसे थोड़ा जाना पड़े भीतर । मनुष्य के भीतर, हमारे शरीर के भीतर सात चक्र हैं। उनमें एक चक्र है अनाहत । प्रत्येक चक्र से साधना हो सकती है। इसलिए प्रत्येक चक्र की साधना अलग-अलग है । और प्रत्येक चक्र का मंत्र भी अलग-अलग है। और उस मंत्र के द्वारा उस चक्र पर चोट की जाती है। वह चक्र सक्रिय हो जाता है तो उसमें छिपी हुई ऊर्जा ऊपर की तरफ यात्रा पर निकल जाती है। यह ऋषि कहता है कि संन्यासी का मंत्र तो अनाहत है। वह जो अनाहत चक्र है, वहीं वह चोट करता है। उस चोट की अपनी ध्वनियां हैं, जिनसे अनाहत पर चोट की जाती है। जैसे सोहम्, अनाहत पर चोट करने का ध्वनि - सूत्र है । 'आपने कभी खयाल न किया होगा कि जब भी आप कोई शब्द बोलते हैं, तो उसकी चोट आपके शरीर के अलग-अलग हिस्सों में पड़ती है। अगर आप भीतर कहें ओम, तो हृदय से नीचे तक ओम की ध्वनि नहीं जाएगी। ओम का अधिक गुंजार मस्तिष्क में होगा। जैसे आप यहां उच्चारण कर रहे हैं, तो हू ठीक सेक्स सेंटर तक जाएगा। इसलिए बहुत से मित्र मुझे आकर कहते हैं कि अजीब बात है, इस हू के प्रयोग करने से हमारी तो कामवासना उठती हुई मालूम पड़ती है। पड़ेगी। क्योंकि उसकी चोट ठीक सेक्स सेंटर तक जाती है, काम-केंद्र तक जाती है। 277
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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