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निर्वाण उपनिषद
छूट जाता है। इसलिए ऋषि कहता है, चैतन्यमय होकर संसार का त्याग ही उनके हाथ की लकड़ी है, उनका दंड है। ब्रह्म का नित्य दर्शन ही उनका कमंडलु है। यह प्रतीक कह रहा है।
ब्रह्म का नित्य दर्शन ही उनका कमंडलु है और कर्मों को निर्मूल कर डालना ही उनकी झोली है।
इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है। कर्मों को निर्मूल कर डालना। कर्म पकड़ते हैं इसलिए कि हमें भ्रांति है कि हम कर्ता हैं। अगर कोई सोचता हो कि मैं कर्मों को निर्मूल कर दूंगा, तो वह निर्मूल करने के नए कर्म का बंध करेगा। कर्म बंधते इसलिए हैं कि मुझे खयाल है मैं कर्ता हूं। मैंने चोरी की, मैंने दान दिया। मैंने यह किया, मैंने वह किया। यह जो मैं हूं पीछे, मैं कर्ता हूं, ऐसा जो भाव है, वह कर्मों को मुझसे जोड़ता चला जाता है। ___ जन्मों-जन्मों में न मालूम कितने कर्म का भाव हमारे भीतर इकट्ठा हो जाता है। हम बड़े कर्ता हो जाते हैं। जब कि कर्ता सिवाय परमात्मा के और कोई भी नहीं है। तो हम झूठ ही कर्ता होने का.खयाल अपने भीतर बना लेते हैं। फिर सब कर्मों को सम्हालकर रखते हैं, लेखा-जोखा रखते हैं। क्या-क्या मैंने किया, क्या-क्या मैंने किया। वही हमारे चारों तरफ भीड़ इकट्ठी हो जाती है। वही हमारे भीतर भर जाता है कूड़ा-कबाड़। उसकी वजह से जीवन के सत्य का अनुभव नहीं हो पाता, प्रभु का नित्य दर्शन नहीं हो पाता। __ कैसे कटेंगे ये कर्म? यह ऋषि क्या कहता है ? ये कर्म कैसे करेंगे? ये कट जाते हैं एक क्षण में। अगर इतना ही स्मरणपूर्वक अपने भीतर कोई सजग हो जाए कि मैं अपने कर्मों का कर्ता नहीं, सब कर्म परमात्मा के हैं। मैं केवल उसके हाथ की बांसुरी हूं। स्वर उसके हैं, गीत उसके हैं, मैं सिर्फ बांस की पोंगरी हूं।
कबीर ने कहा है कि जिस दिन यह जाना कि मैं बांस की पोंगरी हूं, उसी दिन झंझट कट गई। अब । वह जाने, उसकी झंझट जाने। अपना कोई लेना-देना न रहा।
मरने लगे कबीर तो काशी छोड़कर चले गए। काशी लोग मरने आते हैं। मरे मराए लोग काशी मरने आते हैं। खयाल है कि काशी में जो मरता है, वह स्वर्ग में जन्म लेता है। काशी के पास एक छोटा सा गांव है, मगहर। कि जो मगहर में मरता है, वह गधा होता है नर्क में। कबीर मरते वक्त मगहर चले गए। बहुत समझाया मित्रों ने, प्रियजनों ने, शिष्यों ने कि क्या करते हैं, मगहर में कोई मरता ही नहीं! मगहर में आदमी मर भी जाए, तो उसके रिश्तेदार उसे लेकर भागते हैं कि अभी थोड़ी सांस चल रही है, मगहर के बाहर निकाल लो, नहीं तो नर्क में गधा होता है। तो काशी लोग मरने आते हैं दूर-दूर से और तुम काशी जिंदगीभर रहे और मरने के वक्त मगहर जा रहे हो, दिमाग खराब तो नहीं हो गया!
कबीर ने कहा कि काशी में रहकर अगर मैं मरा और स्वर्ग में गया, तो कर्ता का भाव पकड़ जाएगा-अपनी वजह से। मगहर में मरूं, तो जहां उसकी मर्जी हो। नर्क का गधा बना दे, तो भी उसकी मर्जी रही। हम तो मगहर में ही मरेंगे। और अगर स्वर्ग गए तो फिर कह सकेंगे, तेरी अनुकंपा, तेरी कृपा। मरे तो मगहर में थे, होना तो गधा था। लेकिन काशी में मरकर अहंकार पकड़ेगा कि काशी में मरे, रहे काशी में, गए काशी-इसलिए।
हमारे हर कर्म के पीछे कर्ता खड़ा हो जाता है, मैं कर रहा हूं। कर्मों की निर्जरा न हो, तो मुक्ति नहीं है, स्वतंत्रता नहीं है, चेतना का परम विकास नहीं है। संन्यासी
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