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असार बोध, अहं विसर्जन और तुरीय तक यात्रा-चैतन्य और साक्षीत्व से
यह कहता है कि अब कुछ मैं नहीं करता। अब वह जो कराता है, कराता है। अब मैंने अपने सिर पर से वह बोझ हटा दिया। नर्क जाऊं, तो वह जाने; स्वर्ग जाऊं, तो वह जाने। जीऊं तो ठीक, मरूं तो ठीक। जो भी हो, अब मैं नहीं हूं अपने कर्मों के पीछे। अगर कोई ऐसा सरक जाए पीछे से कर्म के, तो आज के कर्म ही नहीं क्षीण हो जाते, अनंत-अनंत जन्मों के कर्मों से संबंध टूट जाता है।
कर्मों को निर्मूल कर डालना ही उसकी कन्था है। _ और निर्मूल वे तभी होंगे, जब मूल कट जाए; और मूल है अहंकार। मूल है कर्ता का भाव कि मैं . कर रहा हूं। मैं ध्यान कर रहा हूं, इतना भी पकड़ जाए, तो कर्म का बंध होता है। मैं धर्म कर रहा हूं,
प्रार्थना कर रहा हूं, पूजा कर रहा हूं, इतना भी पकड़ जाए, तो कर्म का बंध होता है। - उमर खय्याम ने बहुत प्यारा गीत लिखा है। उमर खय्याम बहुत कम समझा जा सका, क्योंकि बातें उसने ऐसी कहीं कि नासमझों को बहुत जंचीं। और नासमझों ने उनके अपने अर्थ लगा लिए जो उनको जंचे। तो उमर खय्याम, एक कीमती सूफी अनुभवी जिस बुरी तरह मिसइंटरप्रिटेड हुआ है सारी दुनिया में, उसका कोई हिसाब लगाना कठिन है। फिट्जराल्ड ने पश्चिम में जब उसका अनुवाद किया, तो मिट्टी कर दिया। बहुत अच्छा अनुवाद किया, लेकिन उसकी जो सूफियाना पकड़ थी, वह जरा भी न बची।
भारत में भी बहुत अनुवाद उमर खय्याम के हुए हैं, लेकिन एक भी अनुवाद ठीक नहीं है। हो नहीं . सकता। क्योंकि उन अनुवाद करने वालों में एक भी सूफी नहीं है। वे कवि हैं, तो गीत तो उतार देते हैं। ऐसा लगने लगा, आपने देखा होगा, शराबखानों के नाम लोगों ने रख लिए, उमर खय्याम। क्योंकि ऐसा लगा, यह उमर खय्याम शराब पीने की गवाही देता है और कहता है पीयो। लेकिन उमर खय्याम समझा नहीं जा सका। ___ उमर खय्याम कहता है पीयो, क्योंकि पिलाने वाला वही है। और इस भ्रम में मत पड़ना कि तुम पीना छोड़ दोगे, क्योंकि उसके बिना छुड़ाए कैसा छोड़ना! और फिर हमने सुना है कि वह बहुत रहीम है, रहमान है; हमने सुना है कि वह बड़ा दयावान है, तो हम पुण्य करने का बोझ अपने सिर पर क्यों लें? हम जैसे हैं, वैसे रहे आएंगे। और उसके सामने मौजूद हो जाएंगे। अगर उमर खय्याम जैसे छोटे से आदमी के पाप भी उसकी दया से न धुल सके-छोटे से आदमी के छोटे ही पाप उसकी दया से न धुल सके-तो हमारी कोई बदनामी नहीं, उसी की दया बदनाम हो जाएगी। ___ मगर जिन्होंने इनके अनुवाद किए, उन्होंने तो सब खराब कर डाला। उन्होंने तो मतलब निकाला कि मजे से पीयो। वह रहीम है, रहमान है, मजे से पीयो! अपना क्या बिगड़ेगा, उसी की बदनामी होगी।
उमर खय्याम कुछ और ही बात कह रहा है। वह यह कह रहा है कि उसके बिना कराए क्या होगा! न पकड़ सकते कुछ, न छोड़ सकते कुछ। और जब वह छुड़ाएगा, तो हमारी क्या ताकत कि हम पकड़ रखेंगेऔर जब तक वह पकड़ाए है, तो हम इस अहंकार को क्यों करें कि हम छोड़ देंगे।
शराब तो सिर्फ बहाना है, बातचीत का बहाना है। जो जानते हैं, वे कहते हैं, उमर खय्याम ने कभी शराब नहीं छुई! और सब बातें तो उसने शराब की ही लिखी हैं। सब बातें शराब की ही लिखी हैं। शराब उसके लिए प्रतीक है, सूफियों के लिए प्रतीक है। वह प्रतीक है कई अर्थों में। दो-तीन बातें खयाल में ले लेने जैसी हैं।
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