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निर्वाण उपनिषद
कम, इससे कम पर संन्यासी राजी नहीं है। यज्ञोपवीत ही डालना है, तो वह तुरीय अवस्था का डाल लेगा। वह तीनों के पार हट जाएगा और अपने को चौथे के साथ एक कर लेगा।
इसे थोड़ा प्रयोग करेंगे तो ही खयाल में आ सकेगा कि यह कैसा यज्ञोपवीत है। __ जब जागें तब ऐसा मत समझें कि मैं जाग रहा हूं, तब ऐसा ही समझें कि जागरण मेरे ऊपर आया, मैं देख रहा हूं। बी ए विटनेस टु इट। साक्षी हों, एक मत हो जाएं। अगर आप दिनभर जागकर यह साक्षीभाव रख सकें कि यह जागरण भी एक स्थान है, जहां मैंने पड़ाव डाला, मैं यात्री हूं, यह स्थान है, पड़ाव है, तो धीरे-धीरे आप स्वप्न में भी यह स्मरण रख पाएंगे कि स्वप्न भी एक पड़ाव है और मैं एक यात्री हूं। और फिर निद्रा में भी इस साक्षीभाव का प्रवेश किया जा सकता है। तब आप यह भी जान पाएंगे कि निद्रा मुझ पर आती और जाती है, मैं पृथक हूं। और जब आप तीनों से अपने को पृथक जान पाएंगे, तभी वह यज्ञोपवीत आपके गले में पड़ता है, जो तुरीय ब्रह्म का है।
लेकिन हम, जो हमारे ऊपर आता है, उसी के साथ एक हो जाते हैं। जो लहर हमें पकड़ लेती है, हम उसी के साथ एक, हम उसी से रंग जाते हैं। भूल ही जाते हैं कि रंग हमारे ऊपर पड़ा, हम रंग से पृथक हैं। जुड़ जाते हैं तत्काल। ____ हमारी हालत ऐसी है, जैसी कि फोटो प्लेट की होती है। कैमरे के भीतर जो फोटो प्लेट है या फोटो फिल्म है, हमारी हालत वैसी है। जरा सा झांक लेती है कैमरे के बाहर, जो दिख जाता है, उसी को पकड़ लेती है। जरा, सेकेंड के भी छोटे से हिस्से के लिए कैमरे का पर्दा हटता है, आंख खुलती है; और वह जो भीतर छिपी फोटो प्लेट है, वह जो भी बाहर दिख जाता है—दरख्त तो दरख्त, झील तो झील, आदमी तो आदमी-जो भी दिख जाता है, उसे पकड़ लेती है। उसी के साथ एक हो जाती है। इसीलिए तो फोटो . उतर पाता है, नहीं तो फोटो नहीं उतर पाएगा। फिर आप तस्वीर लिए फिरते हैं और कहते हैं, झील की तस्वीर है। झील की तस्वीर है माना, लेकिन यह जो फिल्म का टुकड़ा है, यह बड़ी भ्रांति में पड़ गया। यह जो था, वह न रहा; और जो यह नहीं है, उसको पकड़ लिया।
संन्यासी जीता है दर्पण की भांति, फोटो प्लेट की भांति नहीं। दर्पण के सामने जो भी आता है, दिखाई पड़ता है; हट जाता है, हट जाता है; दर्पण फिर खाली हो जाता है। दर्पण पकड़ता नहीं, रिफ्लेक्ट जरूर करता है। प्रतिबिंब जरूर बनाता है, लेकिन पकड़ता नहीं। सब तस्वीरें फिसलकर नीचे गिर जाती हैं और दर्पण अपने स्वभाव में थिर रहता है। __ इसीलिए दर्पण एक ही को देखकर खराब नहीं होता, फोटो प्लेट एक को ही देखकर खबर हो जाती है। दर्पण हजार को भी देखकर निर्मल बना रहता है। पकड़ता ही नहीं, तो विकृत होने का कोई सवाल नहीं है। ___ हम भी फोटो प्लेट की तरह हैं। जो भी सामने आ जाता है, उसी को पकड़ लेते हैं। जागरण होता है तो समझ लेते हैं कि मैं जागरण, स्वप्न होता है तो समझ लेते हैं कि मैं स्वप्न, निद्रा होती है तो समझ लेते हैं कि मैं निद्रा, जन्म होता है तो समझ लेते हैं कि मैं जीवन, मृत्यु होती है तो समझ लेते हैं कि मैं मुर्दा। बस ऐसे ही चलते हैं। जो भी, वह पकड़ लेते हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन एक मरघट के करीब से गुजर रहा है। सांझ हो गई है और डर उसे लग रहा है। गांव
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