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________________ असार बोध, अहं विसर्जन और तुरीय तक यात्रा-चैतन्य और साक्षीत्व से अभी दूर है। तभी उसने देखा कि दूर से कुछ लोग चले आ रहे हैं, बैंड-बाजे हैं। वह डरा और भी, कोई लुटेरे तो नहीं हैं! दीवार थी मरघट की, छलांग लगाकर उस तरफ चला गया कि छिप जाए। नई कोई कब्र खुदी थी, अभी आया तो नहीं था मेहमान उस कब्र का। सोचकर कि इसमें लेट जाए, यह भीड़-भाड़ निकल जाए उपद्रवियों की जो बाहर से गुजर रहे हैं, फिर अपने घर लौट जाएगा, उसमें लेट गया। रात सर्द थी, थोड़ी देर में हाथ-पैर ठंडे होने लगे। किताब में पढ़ा था उसने कि आदमी जब मरता है, तो हाथ-पैर ठंडे हो जाते हैं। सोचा कि गए। मर गए। जब सोचा कि मर गए, तो हाथ-पैर और ठंडे होने लगे। तभी उसे खयाल आया, लेकिन अभी सांझ का भोजन नहीं किया। कम से कम भोजन तो कर ही लेना चाहिए मरने के पहले। तो वह उचककर कब्र के बाहर निकला। दीवार कूदकर अपने घर की तरफ भागता था, तो वहां वह जो यात्री दल आया था, उसने अपने ऊंट बांधे थे, वह विश्राम की तैयारी कर रहा था। उसके कूदने से ऊंट भड़क गए, भगदड़ मच गई, लोगों ने उसकी पिटाई की। पिटा-कुटा घर पहुंचा। पत्नी ने कहा, बड़ी देर लगाई, कहां रहे? मुल्ला ने कहा, यह कहो किसी तरह लौट आए। मर गए थे। पत्नी मन में तो हंसी, फिर भी उसने जिज्ञासावश पूछा कि मर गए थे, मरने का अनभव कैसा हआ। मल्ला ने कहा. मरने में तो कोई तकलीफ नहीं. अनलेस य डिस्टर्ब देअर कैमल्स। जब तक उनके ऊंटों को तुम गड़बड़ मत करो, तब तक तो बड़ा शांत। लेकिन ऊंट गड़बड़ करो कि सब गडबड. बडी पिटाई होती है। तो अगर त मरे. तो एक बात का ध्यान रखना. मल्ला ने अपनी पत्नी से कहा कि ऊंट भर गड़बड़ मत करना। मौत में तो कोई खतरा ही नहीं है। हम पूरा अनुभव करके आए, कब्र में लेटकर आ रहे हैं। वह तो हम लौटते भी नहीं, लेकिन सांझ का खाना नहीं लिया था, इसलिए लौट आए। तो एक ध्यान रखना सदा, ऊंट कभी गड़बड़ मत करना। ___ अप्रासंगिक जो है, इरेलेवेंट जो है, जिसकी कोई संगति भी जीवन की धारा से नहीं है, वह भी पकड़ जाता है। और हमारे भीतर कॉज़ और अफेक्ट बन जाता है। ऐसा लगता है कि कार्य-कारण का संबंध है। ऊंट का और मौत से कोई लेना-देना नहीं, लेकिन सिलसिला तो है। मुल्ला ने जिसे मृत्यु समझी उसी के बाद ऊंट गड़बड़ हुए और वह पिटा। मन ने सब पकड़ लिया और सबका तादात्म्य हो गया। सब इकट्ठा जुड़ गया। जिंदगीभर हम इसी तरह की चीजें जोड़े चले जाते हैं, जोड़े चले जाते हैं। आखिर में यह जो संघट हमारे पास इकट्ठा हो जाता है, यह जो लंबी फिल्म इकट्ठी हो जाती है, इसमें दर्पण जैसा कुछ भी नहीं होता। सब गंदा होता है, सब बिगड़ गया होता है, सब पर धूल जम गई होती है। ___ इस धूल से भरे हुए मन के साथ हम तुरीय को न जान सकेंगे। वह जो चौथी अवस्था है, वही जान जाएगा, जो दर्पण की तरह रहने में समर्थ है और जो प्रतिपल अपने दर्पण को साफ करता रहता है और पोंछता रहता है और धूल को जमने नहीं देता। जो किसी चीज को अपने दर्पण पर नहीं जमने देता, हमेशा झाड़-पोंछकर दर्पण को साफ रखता है, तो निश्चित ही धीरे-धीरे तीन के पार चौथे का अनुभव शुरू हो जाता है। वही, वही दर्पण की चेतना वाला व्यक्ति संन्यासी है, जिसने चौथे को जाना है। ___ हमें तो सपने में भी याद नहीं रहता कि हम अलग हैं। सपने के साथ एक हो जाते हैं। इतने एक हो जाते हैं जिसका हिसाब नहीं है। सपने में आपको कभी याद नहीं रहता कि आप कौन हैं। सपने भी पता नहीं रहता कि यह जो मैं कर रहा हूं, यह मैंने जागने में किया होता! सपने में असंगति भी दिखाई 2457
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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