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निर्वाण उपनिषद
हैं, और जो मैं हूं, वह निश्चित ही चौथा होना चाहिए। उपनिषद उसे तुरीय कहते हैं, वह जो चौथा है।
और मनुष्य के चित्त की इन चार दशाओं की चर्चा सबसे पहले जगत में उपनिषद के ऋषियों ने की पश्चिम के मनोविज्ञान ने अभी सौ वर्षों में सिर्फ नंबर दो पर कदम रखा है। सौ वर्षों में – सिर्फ पिछले सौ वर्षों में- पश्चिम के मनोविज्ञान को खयाल आया कि मनुष्य को जाग्रत ही समझने की कोशिश खतरनाक है और आमूल गलत है। क्योंकि आदमी जितनी देर जागता है, वह सिर्फ एक अंग है। फि सोता भी है, फिर स्वप्न भी देखता है। और चारकाट से लेकर फ्रायड तक पश्चिम ने बड़ी मेहनत की इस बात की कि हम मनुष्य के स्वप्नों के संबंध में जब तक न जान लें, तब तक मनुष्य के संबंध की जानकारी हमारी अधूरी होगी। और जब फ्रायड मनुष्य के स्वप्नों की गहराइयों में उतरा, तो उसने कहा, मनुष्य के जागने पर भरोसा ही मत करना, क्योंकि आदमी जागकर धोखा देता है। सपने से जो जाना जाता है, वही सत्य है।
इसलिए आजं मनोविश्लेषक आपके जागने की फिक्र नहीं करता । वह आपसे पूछता है, आप स्वप्न कौन से देखते हैं? क्योंकि स्वप्न में आप धोखा नहीं दे सकते। जागने में आप दूसरे को ही नहीं, अपने
भी धोखा दे सकते हैं। जागने में आप ब्रह्मचारी हो सकते हैं, लेकिन स्वप्न आपके ब्रह्मचर्य की सारी पट्टी उधेड़ देगा और आपके व्यभिचार को प्रकट कर देगा।
इसलिए तथाकथित ब्रह्मचारी नींद से डरते हैं, सोने से भयभीत होते हैं, क्योंकि उनकी सब साधना जागरण के दरवाजे पर रखी रह जाती है। स्वप्न में उनका कुछ वश नहीं चलता। छोटे-मोटे साधक नहीं, जिन्हें हम बड़े साधक कहें, जो नीति को ही साधकर चलते हैं, उनके लिए यह कठिनाई बनी ही रहेगी। योग को बिना जाने, धर्म को बिना जाने, केवल नैतिक आचरण में ही अपने जीवन को लगा देते हैं, उनको यह झंझट रहेगी ।
महात्मा गांधी जैसे साधक को भी अंततः यह कहना पड़ा कि जागने में ही मैं अपने संयम को साध पाता हूं, स्वप्न में तो मेरा संयम टूट जाता है। स्वप्न में मेरे संयम पर मेरा कोई काबू नहीं रहता।
लेकिन स्वप्न में अगर संयम टूट जाता है, तो संयम अभी ऊपरी है। क्योंकि जो संयम स्वप्न तक को नहीं जीत पाता, वह सत्य को क्या जीत पाएगा? जो संयम स्वप्न तक से पराजित हो जाता है, उस संयम की सत्य में क्या गति हो सकेगी ? बहुत निर्बल है, बहुत ऊपरी है, बहुत झीनी चादर की तरह है। भीतर सब रोग छिपे रहते हैं, ऊपर हम चादर की सजावट कर लेते हैं। शृंगार है।
फ्रायड ने मनुष्य के चित्त को ठीक से समझना हो, तो उसके स्वप्न को जानना अनिवार्य बना दिया। अब पश्चिम का पूरा मनोविज्ञान आदमी के संबंध में जो भी जानकारी पा सका है, वह उसके सपनों के द्वारा है। यह बहुत उलटा मालूम पड़ता है कि आपकी सचाई आपके सपने से पता चले। हद हो गई! आपकी सच्चाई और आपके सपनों में खोजनी पड़े !
आदमी ने अपने को निश्चित ही इतना धोखा दे दिया है, जागना इतना भ्रांत और झूठ हो गया है कि सोए बिना आपके भीतर क्या चलता है, इसका कुछ भी पता चलना मुश्किल है। आपको ही पता नहीं चलता, दूसरे को पता चलना तो अति कठिन है।
लेकिन अभी पश्चिम का मनोविज्ञान सिर्फ दूसरी अवस्था पर गया है - वेकिंग एंड ड्रीमिंग। अभी
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