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________________ तुरीय ब्रह्म ही उनका यज्ञोपवीत, वही उनकी शिखा है। तुरीय शब्द के संबंध में पहली बात तो यह जान लेनी जरूरी है कि यह शब्द सिर्फ संख्या का सूचक है। तुरीय का अर्थ है : चौथा, द फोर्थ। बहुत-बहुत मार्गों से तुरीय को समझने की कोशिश की गई है। एक तो मैंने कहा, तीन गुणों के जो पार है, द फोर्थ, वह है चौथा। उसे नाम जानकर नहीं दिया है। क्योंकि वह अनाम है, इसलिए अंक दिया है। नाम में झगड़ा भी हो सकता है, अंक में तो झगड़ा नहीं हो सकता। कोई उसे राम कहे, कोई उसे रहीम कहे, झगड़ा हो सकता है। लेकिन द फोर्थ, चौथे में तो कोई झगड़ा नहीं हो सकता। चौथा चाहे हिंदी में कहो, चाहे अंग्रेजी में कहो, चाहे अरबी में कहो, चाहे हिब्रू में कहो, कोई झगड़ा नहीं हो सकता। जिन्होंने उसे चौथा कहा है, बड़ी अंतर्दृष्टि की बात की है। नाम देते ही झगड़ा शुरू होता है, क्योंकि नाम के साथ मोह बनना शुरू हो जाता है। और मेरा नाम सत्य है, मेरा दिया नाम सत्य है, दूसरे का दिया नाम असत्य होगा, ऐसा अहंकार मानना शुरू कर देता . है। लेकिन आंकड़े में झगड़े की संभावना न के बराबर है। जैसा ऋषियों ने कहा, तुरीय, ऐसा अगर सारे जगत ने कहा होता; आंकड़ा, अंक, गणित का उपयोग किया होता, तो विवाद नहीं हो सकता था। ___ यह भी बहुत मजे की बात है कि उपनिषद का ऋषि और गणित के अंक का प्रयोग करता है, ब्रह्म के लिए। यह जानकर आप हैरान होंगे कि इस जगत में, इस पूरे मनुष्य की जानकारी में गणित ही अकेला शास्त्र है, जिसमें सबसे कम विवाद है। उसका कारण है। क्योंकि शब्द का कोई उपयोग नहीं है। अंकों का उपयोग है। अंकों में विवाद नहीं हो सकते। और दो और दो किसी भी भाषा में लिखे जाएं, और परिणाम चार किसी भी तरह कहा जाए, तो अंतर नहीं पड़ता है। इसलिए गणित सबसे कम विवादग्रस्त विज्ञान है। और वैज्ञानिक मानते हैं कि आज नहीं कल हमें सारे विज्ञान की भाषा को गणित की भाषा में ही रूपांतरित करना पड़ेगा, तो ही हम अन्य विज्ञानों और शास्त्रों के विवाद से मुक्त हो सकेंगे। बहुत पहले, हजारों साल पहले ऋषि उस ब्रह्म को, उस परम सत्ता को कहता है : द फोर्थ, चौथा, तुरीय। ___ मैंने कहा, एक तो तीन गुणों के जो पार है, वह चौथा। एक और गहन खोज, जिसका सारा श्रेय उपनिषदों को है और आधुनिक मनोविज्ञान उस श्रेय के ठीक-ठीक मालिक को खोज लेने में समर्थ हो गया है, कि उपनिषद ही उस श्रेय के हकदार हैं, वह है मनुष्य के चित्त की तीन दशाएं हैं-जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति। जागते हैं, स्वप्न देखते हैं, सोते हैं। अगर इन तीनों में ही मनुष्य समाप्त है, तो वह कौन है जो जागता है! वह कौन है जो सोता है! वह कौन है जो स्वप्न देखता है! __निश्चित ही चौथा भी होना चाहिए, जिस पर जागरण का प्रकाश आता है, जिस पर निद्रा का अंधकार आता है, जिस पर स्वप्नों का जाल बुन जाता है। वह द फोर्थ, चौथा होना चाहिए, वह तीन में नहीं हो सकता। अगर मैं तीन में से एक हूं, तो बाकी दो मेरे ऊपर नहीं आ सकते। अगर मैं जाग्रत ही हूं, तो निद्रा मुझ पर कैसे उतरेगी? अगर मैं निद्रा ही हूं, तो मुझ पर स्वप्नों की तरंगें कैसी बनेंगी? ये तीन अवस्थाएं,
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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