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सम्यक त्याग, निर्मल शक्ति और परम अनुशासन मुक्ति में प्रवेश
दे पाओगे। मैं रुपया देने वाला नहीं हूं।
हम सब जी रहे हैं। भीतर बड़े रस पैदा कर रहे हैं, बड़ी अपेक्षाएं निर्मित कर रहे हैं। इसलिए कभी आपने खयाल किया कि रास्ते से आप गुजर रहे हैं और एक आदमी आपका गिरा हुआ छाता उठाकर दे देता है, तो कितना अनुग्रह मालूम पड़ता है। क्योंकि कोई अपेक्षा नहीं थी कि वह उठाकर दे। लेकिन आपकी पत्नी उठाकर दे देती, तो कोई अनुग्रह पैदा नहीं होता। क्योंकि यह अपेक्षा थी ही कि उठाकर देना चाहिए। अगर न दे तो दुख पैदा होता है, लेकिन दे तो सुख पैदा नहीं होता। ___ जहां-जहां अपेक्षा बन जाती है, वहां-वहां सुख क्षीण हो जाता है और दुख गहन हो जाता है। और जब अपेक्षाएं बिलकुल थिर हो जाती हैं, तो दुख ही दुख हाथ में रह जाता है, सुख का तो कोई उपाय ही नहीं रह जाता। ___ इसलिए अजनबी कभी थोड़ा-बहुत सुख भला दे दें, अपने लोग कभी सुख नहीं दे पाते। इसका कारण अपने लोग नहीं हैं, इसका कारण अपेक्षा है। अपरिचित, अनजान लोग कभी सुख की झलक दे जाएं, लेकिन परिचित, जाने-माने, संबंधित, मित्र, परिवार के कभी सुख नहीं दे पाते।
कोई बेटा किसी मां को सुख नहीं दे पाता। यह वक्तव्य थोड़ा अतिशयोक्तिपूर्ण मालूम पड़ेगा। आप कहेंगे कि चोर हो जाता है, तो नहीं दे पाता होगा। नहीं, बुद्ध हो जाए, तो भी नहीं दे पाता। बेईमान हो जाए, तब तो दे ही नहीं पाता; ईमानदार हो जाए, तब भी नहीं दे पाता। सजा काटे, जेलखाने में चला जाए, तब तो दे ही नहीं पाता; साधु हो जाए, सरल हो जाए, तो भी नहीं दे पाता। कुछ भी करे बेटा, कोई मां आज तक तृप्त हुई है, इसकी खबर नहीं मिली। कोई बाप आज तक तृप्त हुआ है, इसकी खबर नहीं मिली।
बात क्या है? कारण क्या है ? बाप की अपनी अपेक्षाएं हैं। बेटे का अपना जीवन है। और यह भी बड़े मजे की बात है और बड़े राज की कि अगर बेटा बिलकुल बाप की मानकर चले तो भी सुख नहीं दे पाता, क्योंकि तब वह गोबर-गणेश मालूम पड़ता है-बिलकुल गोबर के गणेश। बाप कहे बैठो, तो बैठ जाए; बाप कहे उठो, तो उठ जाए; बाप कहे चलो, तो चलने लगे तो बाप सिर ठोक लेता है कि बिलकुल गोबर-गणेश है। अगर बाप की न माने, तो दुख होता है। बाप की माने, तो दुख होता है।
हमारे एक्सपेक्टेशंस कंटाडिक्टी हैं. बडे विरोधी हैं। अगर पति पत्नी की न माने. तो पीडा होती है। अगर बिलकुल मानकर चले, तो समझती है, कैसा पति है! किसी मतलब का नहीं, हुए न हुए, बराबर। पति तो ऐसा चाहिए, रोबीला! और ऐसा भी चाहिए कि गुलाम। बड़ी मुश्किल है। पति चाहिए पुरुष,
और ऐसा चाहिए कि पैर दाबता रहे। दोनों बातें हो नहीं सकतीं। वह पैर दाबे, तो पुरुषत्व क्षीण हो जाता है। पुरुषत्व क्षीण हो जाता है, तो पत्नी की दृष्टि गिर जाती है उस पर। नौकर-चाकर हो जाता है।
मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन घर लौटा है। और पत्नी से कहने लगा, यह तूने क्या किया! मैनेजर नौकरी छोड़कर चला गया। पत्नी ने कहा, मैनेजर और मेरा क्या संबंध? उसने कहा कि तूने आज फोन करके उससे इस तरह के अपशब्द बोले कि उसने तत्काल इस्तीफा दे दिया। पत्नी ने कहा, भल हो गई। मैं तो समझी कि फोन पर तम हो। ___ हमारी ऐसी अपेक्षाएं हैं। अगर प्रतिभाशाली बेटा होगा, तो बाप की खींची गई लक्ष्मण रेखाओं के भीतर नहीं चल सकता। प्रतिभा सदा स्वतंत्र होती है। बाप चाहता है, बेटा प्रतिभाशाली हो, लेकिन बाप
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