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निर्वाण उपनिषद
नवाण
मेरे साथ कोई है, संगी है, साथी है। और उसे पता नहीं है कि जिसको उसने संगी-साथी बनाया है, उसने भी उसे इसीलिए संगी-साथी माना हुआ है कि वह अकेला है। अब ध्यान रखें, दो अकेले मिलकर दुगुने अकेले हो जाएंगे, या क्या होगा? गणित तो कहेगा, दुगुने अकेले हो जाएंगे-द लोनलीनेस विल बी डबल्ड। होना भी यही चाहिए। अगर दो बीमार मिलें, तो बीमारी दुगुनी हो जाती है। अगर दो अकेले आदमी इकट्ठे हो जाएं, तो अकेलापन दोहरा और गहरा हो जाता है।
संन्यासी कहता है, दो होने का मार्ग ही नहीं है, अकेले हम हैं। इसकी स्वीकृति, मोह का विसर्जन हो जाता है इसकी स्वीकृति, एक्सेप्टीबिलिटी कि अकेला मैं हूं।
शोक क्या है? दुख क्या है? एक ही दुख है जगत में, अपेक्षाजनित। सब दुख आते हैं, थू एक्सपेक्टेशन। सोचते कुछ हैं, होता कुछ है। सोचते थे, आदमी रास्ते पर मिलेगा, नमस्कार करेगा, वह
आंखें बचाकर निकल गया। शोक पैदा हो गया। शोक क्या है? अपेक्षाओं की राख। और शोक से हम . पीड़ित होते हैं, दुख से हम पीड़ित होते हैं। दुख बहुत छिद जाता है, छाती में छिदता चला जाता है। फिर भी हम अपेक्षाएं किए चले जाते हैं, बिना यह देखे कि दुख के आने का दरवाजा क्या है—अपेक्षा।
जहां अपेक्षा की, वहां दुख आया। दुख से हम बचना चाहते हैं और अपेक्षा करते चले जाते हैं। वही कालिदास का पोज़, बैठे हैं उसी शाखा पर, काट रहे हैं उसी को। रोज दुखी होते हैं और रोज अपेक्षाएं करते हैं। और कभी इस तर्क को नहीं देख पाते, इस नियम को नहीं देख पाते कि अपेक्षाएं दुख पैदा करती हैं।
संन्यासी कहता है कि दुखी होना नहीं, तो अपेक्षा करना नहीं। कोई अपेक्षा न करेंगे। अपेक्षा ही न करेंगे। अपेक्षा तो अपने हाथ में है। जिस दिन मैंने अपेक्षा की, किसी भी भांति की अपेक्षा की, उसी दिन शोक उतर आएगा। क्योंकि इस दुनिया में कोई आदमी मेरी अपेक्षाएं पूरा करने के लिए पैदा नहीं हुआ, हर आदमी अपनी अपेक्षाएं पूरा करने के लिए पैदा हुआ है।
बाप की अपेक्षा और है बेटे से, बेटे की अपेक्षा और है बाप से। होगी ही, क्योंकि बेटा बेटा है, बाप बाप है। दोनों की अपेक्षाएं दोनों को दुखी कर जाएंगी। और जितना दुख होता है, उतनी अपेक्षाएं हम ज्यादा करने लगते हैं। हम सोचते हैं, अपेक्षाओं से सुख मिलेगा। और अपेक्षाओं से मिलता दुख है। __शोक क्या है? एक ही शोक है कि जो हम चाहते हैं, वह नहीं होता। जैसा हम चाहते हैं, वैसा नहीं होता। जैसा हम मानकर चलते हैं, वह नहीं होता। ___ मुल्ला नसरुद्दीन से किसी ने कुछ रुपए उधार मांगे। पचास रुपए उधार मांगे हैं। मुल्ला ने उसे पचास रुपए लाकर दे दिए हैं। वह बड़ा हैरान हुआ। ऐसी अपेक्षा न थी कि मुल्ला बिना कुछ कहे चुपचाप उठेगा
और पचास रुपए दे देगा। पंद्रह दिन बाद वायदे के अनुसार वह पचास रुपए वापस लौटा गया। मुल्ला बहुत चकित हुआ, क्योंकि ऐसी अपेक्षा न थी कि वह रुपए वापस लौटा जाएगा। लेकिन महीनेभर बाद वह फिर हाजिर हुआ। उसने कहा कि एक पांच सौ रुपए की जरूरत है। मुल्ला ने कहा, अब की बार तुम धोखा न दे पाओगे, पिछली बार तुम धोखा दे गए। यू डिसीव्ड मी द लास्ट टाइम। उसने कहा, धोखा! मैं तुम्हारे पचास रुपए लौटा नहीं गया? उसने कहा, वही तो धोखा है, क्योंकि अपेक्षा यह थी कि रुपए लौटने वाले नहीं हैं। वही तो धोखा हुआ। पिछली दफे धोखा दे गए, लेकिन अब की दफे न
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