SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निर्वाण उपनिषद होगा, वृक्ष के नीचे बैठेगा, तो वृक्ष ही बांध लेगा। ___ जिसके भीतर मोह है, वह कहीं भी बंध जाएगा। क्षुद्रतम से बंध जाएगा। कोई बड़े साम्राज्य आवश्यक नहीं हैं बंधने के लिए। नहीं तो इस दुनिया में दो-चार ही लोग बंध पाएं, बाकी तो सब मुक्त ही रहें। हीरा ही जरूरी नहीं है, कौड़ी भी बांध लेती है। त्यागी का त्याग तो, संन्यासी का त्याग तो उस आधार के ही विसर्जन का है, जिससे उपद्रव पैदा होता है। मूल पर आघात है। एक आदमी वृक्ष के पत्ते काटता रहता है। लेकिन वृक्ष के पत्ते काटना अगर वह सोचता है कि वृक्ष को काटने का उपाय है, तो खतरे में पड़ सकता है। क्योंकि वृक्ष के पत्ते जब भी कोई काटता है, तो सिर्फ कलम होती है, वृक्ष कटता नहीं, और एक पत्ते की जगह दो पत्ते निकल आते हैं। लगता है, काट रहा है वृक्ष को, शाखाएं काट रहा है। लेकिन जो भी वृक्षों से परिचित हैं, वे जानते हैं कि वृक्ष के लिए और सुविधा दे रहा है फैलने की। जब एक शाखा कटती है, तो अनेक अंकुर निकल आते हैं, कलम हो जाती है। अनंत-अनंत जन्मों तक काटते रहें शाखाओं को, पत्तों को, कहीं पहुंचेंगे नहीं, क्योंकि मूल पर कोई चोट नहीं की जा रही है। वृक्ष पत्तों से नहीं जीता, वृक्ष जड़ों से जीता है। जड़ें भीतर छिपी हैं जमीन के, वे दिखाई नहीं पड़ती। वृक्ष जिनसे जीता है, वे छिपी हैं, भूमिगत हैं। इसीलिए छिपी हैं। क्योंकि जिससे जीना है उसे भीतर छिपा होना जरूरी है, नहीं तो कोई भी नुकसान पहुंचा सकता है। इसे ठीक से समझ लें। वृक्ष भी अपनी जड़ों को छिपाए है सुरक्षा में। प्रकट नहीं हैं। जो प्रकट है, उसको चोट पहुंचाने से गहरी चोट नहीं पहुंचने वाली है। पत्ते फिर निकल आएंगे, शाखाएं फिर फूट जाएंगी। __अभी पिछली बार जब मैं आया था आबू, तो सारा रास्ता सूखा हुआ था। एक पत्ता न था वृक्षों पर। लेकिन जड़ें भीतर हरी रही होंगी, क्योंकि अब आया हूं, तो सब वृक्ष हरे हो गए हैं। सूरज हमला न कर पाए जड़ों पर, जानवर हमला न कर पाएं, आदमी हमला न कर पाएं, धूप हमला न कर पाए जड़ों पर, इसलिए जड़ें जमीन में छिपी हैं। और वृक्षों की आत्मा वहां है। धूप आएगी, गर्मी आएगी, पत्ते सूखेंगे, गिर जाएंगे। वृक्ष निश्चित है। थोड़ी प्रतीक्षा की बात है। फिर वर्षा होगी, फिर अंकुर निकल आएंगे। जड़ें सुरक्षित हैं, तो पत्ते तो कभी भी निकल आएंगे। लेकिन इससे उलटा नहीं हो सकता कि जड़ें टूट जाएं, कट जाएं, पत्ते सुरक्षित हों और जड़ें फिर से निकल आएं। इससे उलटा नहीं होता। जड़ कहां हैं हमारी बीमारी की? वह हमारा जो फैलाव है, विस्तार है, धन है, मकान है, मित्र हैं, प्रियजन हैं, परिवार है, वे हमारी जड़ें हैं। ये जड़ें भीतर हैं। वे हमारी जड़ें भी भीतर छिपी हैं। सब जड़ें छिपी होती हैं। मोह भीतर छिपा है, मोह का विस्तार बाहर है। ___ एक आदमी पत्नी को छोड़कर भाग जा सकता है, बच्चों को छोड़कर जंगल जा सकता है। लेकिन उस आदमी को पता नहीं कि जिसने पत्नी बनाई थी और जिसने बच्चे निर्मित किए थे, वह मोह साथ चला गया। वह मोह नई पत्नियां निर्मित कर लेगा, नए बच्चे बना लेगा। मन इतना चालाक है कि नए नाम रख देगा, नई व्यवस्था कर लेगा। जड़ें सुरक्षित थीं, अंकुर फिर निकल आएंगे। नाम से कोई फर्क 7220
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy