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________________ सम्यक त्याग, निर्मल शक्ति और परम अनुशासन मुक्ति में प्रवेश नहीं पड़ता है। वह आदमी घर छोड़कर आश्रम बना लेगा। अब उसको आश्रम कहेगा और आश्रम के लिए उतना ही चिंतारत हो जाएगा, जितना घर के लिए था। और आश्रम की जमीन के लिए अदालत में वैसे ही मुकदमा लड़ेगा, जैसे घर के लिए लड़ता था। आश्रम की ईंट-ईंट के लिए पैसा जुटाएगा, जैसे घर के लिए जुटाता था। और अब एक बड़ा धोखा है। वह है गृहस्थ, और जहां रह रहा है, उस जगह का नाम आश्रम है। अब वह अपने को और भी धोखा दे सकता है, सेल्फ डिसेप्शन और आसान है। क्योंकि वह कहेगा, मैं अपने लिए थोड़े ही करता हूं, आश्रम के लिए करता हूं। ___ आप यह नहीं कह सकते कि मैं अपने लिए थोड़े ही करता हूं। हालांकि हम भी कोशिश करते हैं। बाप कहता है, मैं अपने लिए थोड़े ही करता हूं, बेटे के लिए करता हूं। अपने लिए थोड़े ही करता हूं, पत्नी के लिए करता हूं। जिम्मेदारी है। वह अब कहेगा, परमात्मा के लिए कर रहा हूं। यह तो आश्रम है, यह कोई मेरा घर नहीं है। लेकिन उसके सारे संबंध वही हैं, जो उसके घर से थे। वह मोह तो साथ ले आया, क्रोध तो साथ ले आया, राग तो साथ ले आया, आसक्ति तो साथ ले आया। इसलिए ऋषि कहता है, त्यागी का त्याग बाह्य त्याग नहीं है। इसका यह अर्थ नहीं है कि त्यागी बाह्य त्याग नहीं करेगा। इसका केवल इतना ही अर्थ है कि त्यागी जड़ों को तोड़ देता है। फिर बाहर जो है, वह स्वप्नवत हो जाता है। वह घर हो कि आश्रम, वह अपना हो कि पराया, वह महल हो कि झोपड़ा, वह स्वप्नवत हो जाता है। ___ एक और मजे की बात है कि भोगी अगर छोड़कर भागता है, तो जिस चीज को छोड़कर भागता है, उससे डरता है। सदा डरता रहता है। क्योंकि उसे पक्का पता है कि अगर वह चीज फिर सामने आ जाए, तो फिर उसके भीतर जो छिपी हुई जड़ें हैं, वे अंकुरित हो जाएंगी। अगर वह धन को छोड़कर भागा है, तो वह ऐसी जगह से बचकर निकलेगा जहां धन मिल सकता है फिर। अगर वह स्त्री को छोड़कर भागा है, तो वह बचेगा ऐसी जगह से जहां स्त्री दिखाई पड़ सकती है फिर। यह तो गृहस्थ से भी ज्यादा बदतर स्थिति हो गई। यह तो भय भयंकर हो गया। यह तो दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीने लगा। यह तो बहुत भय से आक्रांत स्थिति है। और भय से आक्रांत स्थिति ब्रह्म में प्रवेश नहीं बन सकती। और यह सारा का सारा जो भय है, उसे ऐसी सीमाएं निर्मित करने को मजबूर करेगा, जिनके भीतर वह एक कारागृह का कैदी हो जाएगा। ___ आगे सूत्र आता है, बहुत ही क्रांतिकारी है-टू मच रेवल्यूशनरि। शायद यही कारण है कि निर्वाण उपनिषद पर टीकाएं नहीं हो सकी। यह निग्लेक्टेड उपनिषदों में से एक है, उपेक्षित। जब पहली दफा मैंने तय किया कि इस शिविर में इस पर बात करनी है, तो अनेक लोगों ने मुझे पूछा कि ऐसा भी कोई उपनिषद है—निर्वाण उपनिषद? कठोपनिषद है, छांदोग्य है, मांडूक्य है-यह निर्वाण क्या है? यह बहुत ही खतरनाक है। ऋषि कह रहा है, वे वही छोड़ देते हैं, जिससे फैलाव के बीज ही नष्ट हो जाते हैं, दग्ध हो जाते हैं। ऐसा देखें, भय है, इसलिए हम बहुत आयोजन करते हैं। जब एक आदमी महल बना रहा है, दीवारें 2217
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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