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अंतर-आकाश में उड़ान, स्वतंत्रता का दायित्व और शक्तियां प्रभु-मिलन की ओर
अशब्द! तो यह बुदबुद तो कोई शब्द है नहीं। बहुत शास्त्र पढ़ डाले थे उसने, यह बुदबुद क्या बला है! यह निश्चित अशब्द है। शब्द नहीं है, तो अशब्द तो है ही पक्का। उसने कहा, इसको सुनना खतरनाक है। यह तो बिलकुल पाणिनी के खिलाफ जाना है। उठाकर लट्ठ उसने बर्तन में मारा कि अशब्द को बंद करो। वह बर्तन टूट गया, चूल्हा गिर गया, आग बुझ गई। ... सांझ को जब वे चारों मिले तो चारों भूखे ही रात सोए, क्योंकि चारों विशेषज्ञ थे। सिद्धांत उनके पक्के थे, गलती किसी ने न की थी। फिर भी गलती हो गई थी।
नहीं, जीवन तरल है, लोचपूर्ण है। सिद्धांत सख्त और मुर्दा होते हैं। जिंदगी सख्त और मुर्दा नहीं होती। तो जो आदमी सिद्धांतों को लोचपूर्ण नहीं बना सकता, वह बुद्धिमान नहीं है। सब शक्तियां, सब सिद्धांत, सब, सब जीवन में जो भी है; वह तरल, जितना तरल हो, जितना लोचपूर्ण हो, जितना परिवर्तित हो सके, प्रवाहमान हो, डायनेमिक हो, गत्यात्मक हो. उतना बद्धिमानी है।
तो शम की शक्तियां हों या दम की शक्तियां हों, जो भी शक्तियां हैं मनुष्य के पास, वे सब दिव्य हैं और उनका सम्यक उपयोग बुद्धिमानी है, चतुराई है।
परात्पर से संयोग ही उनका तारक उपदेश है।
और उनका सम्यक उपयोग जिस बुद्धिमानी से होता है, उस बुद्धिमानी को ऋषि सदा कहते हैं, परात्पर से संयोग ही हमारा उपदेश है। अगर तुम अपनी सारी शक्तियों का, शम और दम की सारी शक्तियों का चतुराई से उपयोग करो, तो आज नहीं कल तुम्हारा परात्पर परम ब्रह्म से संयोग हो जाएगा।
शक्तियां जब गलत उपयोग की जाती हैं, तो प्रभु से विपरीत बहती हैं। और जब ठीक उपयोग की जाती हैं, तो प्रभु की ओर बहती हैं। शक्तियों का सम्यक उपयोग, शक्तियों का परमात्मा की ओर प्रवाह है। शक्तियों का गलत उपयोग परमात्मा के विपरीत प्रवाह है, उलटा। इसलिए जो शक्तियों का जितना गलत उपयोग करेगा, उतना धीरे-धीरे परमात्मा से रिक्त और खाली होता चला जाएगा।
आज पश्चिम में एक शब्द का बहुत ही बहुत प्रचलन है, वह शब्द है : एम्पटीनेस खालीपन, रिक्तता। आज अगर पश्चिम के जो भी विचारशील लोग हैं-चाहे अल्बर्ट कामू और चाहे ज्यां पाल सार्च और चाहे हाइडेगर और चाहे काफ्का–पश्चिम के जो भी विचारशील लोग हैं, जिन्होंने पचास वर्षों में पश्चिम की बुद्धि को थिर किया है, उन सबकी जबान पर एक शब्द जो बहुत चलता है वह है एम्पटीनेस, खालीपन, रिक्तता। क्या बात है? पश्चिम को खालीपन का ऐसा अनुभव क्यों हो रहा है? इतना खालीपन का क्या खयाल है? कहते हैं वे कि भीतर सब खाली है, आदमी के भीतर कुछ भी नहीं। ' __पूरब के सब मनीषियों को पूर्णता का, फुलफिलमेंट का अनुभव हुआ है। वे कहते हैं, भीतर भरा है। अनंत-अनंत भरा है। और पूरब का मनीषी जब शून्य शब्द का भी उपयोग करता है, तब भी उसका अर्थ एम्पटीनेस नहीं होता। शून्य भी बड़ा भराव है। शून्य का अर्थ रिक्तता नहीं है, शून्य का भी अपना भराव है। उसकी भी अपनी मौजूदगी है। उसकी भी अपनी बीइंग, अपना अस्तित्व, अपनी सत्ता है। इसलिए शून्य का अर्थ एम्पटीनेस नहीं है। शून्य का अर्थ है, द वायड-रिक्त नहीं, खाली नहीं, शून्य। शून्य का अपना अस्तित्व है। रिक्तता तो केवल किसी का अभाव है, ऐब्सेंस है।
पश्चिम में इतने जोर से इस बीसवीं सदी में आकर रिक्तता की ऐसी प्रतीति का कारण इस ऋषि के
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