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________________ निर्वाण उपनिषद स्पेशलिस्ट का मतलब ही यह होता है कि वन हू नोज़ मोर एंड मोर अबाउट लेस एंड लेस । मतलब ही यह होता है, कम से कम के संबंध में जो ज्यादा से ज्यादा जानता है। उसका उलटा मतलब यह हो जाता है कि जो ज्यादा से ज्यादा के संबंध में कम से कम जानता है। स्वभावतः, चारों एक्सपर्ट थे, विशेषज्ञ थे। उसमें जो विशेषज्ञ था वनस्पति-शास्त्र का, तीनों ने कहा, तुम सब्जी खरीद लाओ, जब रास्ते में रुके पड़ाव पर । वनस्पति-शास्त्र का विशेषज्ञ था, सब्जी तो कभी खरीदी नहीं थी । सब्जियों के बाबत जानकारी भारी थी। उसने बैठकर बड़ा चिंतन-मनन किया । अंततः उसने कहा कि नीम की पत्तियों के सिवाय कोई चीज उचित नहीं है। सिद्धांत यही है। सभी चीजों में कोई न कोई खामी, कोई न कोई दोष। कोई वात पैदा करती है, कोई कुछ पैदा करती है, कोई कुछ पैदा करती है। नीम की पत्ती एकदम निर्दोष है। तो वह नीम की पत्तियां तोड़कर बड़ा प्रसन्न वापस लौटा। शास्त्र का पूरा उपयोग हुआ । विशेषज्ञ पूरा था वह । दूसरा था तर्कशास्त्री, एक लाजीशियन । नव्य-न्याय पढ़कर लौट रहा था। न्याय की गहराइयों में उतरा था। अब न्यायशास्त्र में उदाहरण में सदा यह आता है कि घृत रखा है पात्र में, तो प्रश्न उठाया जाता है कि पात्र घृत को सम्हालता है कि घृत पात्र को सम्हालता है ? कौन किसको सम्हालता है ? तो इसको किताब में तो पढ़ा था । तर्कशास्त्री को भेजा गया घी लेने, क्योंकि तर्कशास्त्री से निरंतर उसके मित्रों ने यह बात सुनी थी कि कौन किसको सम्हालता है— पात्र घृत को सम्हालता है कि घृत पात्र को सम्हालता है ? लेकिन तर्कशास्त्री ने कभी न तो घृत पकड़ा था और न पात्र पकड़ा था हाथ में। बाजार से लौटते वक्त जब घी का पात्र लेकर वह चला, तो उसने कहा, आज अवसर मिला है तो देख ही लूं कि कौन किसको सम्हालता है ! उसने उलटा कर देखा । जो होना था, वह हुआ। घृत तो नीचे गिर गया, पात्र खाली रह गया। वह बड़ा प्रसन्न लौटा। उसने कहा, सिद्ध हो गया कि पात्र ही सम्हालता है। वह जो तीसरा व्यक्ति था, उसको सम्हाला था काम — वह एक व्याकरण का विशेषज्ञ था - उसको कहा था कि तू आग वगैरह जला ले। चूल्हा तैयार रख, पानी चढ़ा देना। सब सामान आया जाता है, तो तब बना लेंगे। आटा बन जाएगा। चौथे को भेजा था लकड़ियां लेने। क्योंकि वह एक मूर्तिकार था और लकड़ियों पर उसने बड़ी मेहनत थी और मूर्तियां बनाई थीं। लेकिन उसे यह पता ही नहीं था कि गीली लकड़ियां जलाई नहीं जा सकतीं। वह सौंदर्य का पारखी था, मूर्तिकार था, चित्रकार था । तो वह सुंदरतम लकड़ियां जंगल से छांटकर लाया, लेकिन वे सब गीली थीं। असल में सूखी लकड़ी सुंदर रह भी नहीं जाती । हरी होनी चाहिए - जीवंत, युवापन। तो युवा से युवा, कोमल से कोमल, सुंदर से सुंदर लकड़ियां काटकर वह सांझ होते-होते वापस लौटा। क्योंकि चुनाव करने में बड़ी मुश्किल पड़ी, जंगल बड़ा था। वे कोई लकड़ियां मतलब की न थीं, एक भी जल न सकती थी। जिसको दिया था अवसर कि वह आग थोड़ी जलाकर तैयार रखे, लकड़ियां आ जाती हैं, थोड़ी-बहुत लकड़ियां वहीं बीनकर वह आग जला ले। लकड़ियां आ जाएंगी, तब तक सामान आ जाता है। उसने आग भी जला ली थोड़ी। पानी रखकर बर्तन चढ़ा दिया। पानी में बुदबुद की आवाज होने लगी । वह था व्याकरण का ज्ञाता। उसने पढ़ा था कि अशब्द को कभी न सुनना चाहिए, न सहना चाहिए। 212
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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