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________________ निर्वाण उपनिषद यह जो शक्ति की तलाश है, हिंसक मन की तलाश है। ऋषि कहता है, शक्तियों का समुचित उपयोग चतुराई है। शक्तियां सब दिव्य हैं। जो भी है, सब दिव्य है। अगर आज एटम बम हमारे हाथ में है, तो वह भी दिव्य है। उससे विराट शुभ फलित हो सकता है, मंगल की वर्षा हो सकती है। लेकिन दिव्य शक्तियों का सम्यक उपयोग चतुराई, बुद्धिमत्ता, विजडम है। वह विजडम उस व्यक्ति को ही उपलब्ध होती है वह बुद्धिमत्ता, जो अपनी इंद्रियों, अपनी वासनाओं, अपनी इच्छाओं के पार खड़े होकर देख पाता है, जो अपने मन से दूर होकर देख पाता है। तब बुद्धिमान होता है। बुद्धिमान वही होता है, जो तटस्थ होता है स्वयं से भी। अगर अपने से भी बहुत लगाव है, तो आदमी तटस्थ नहीं हो पाता। तटस्थ होने के लिए अपने मन से भी लगाव नहीं चाहिए। तो अंतर-आकाश में जो जाता है मन की बदलियों के पार, वही अपनी शक्तियों का सम्यक उपयोग कर पाता है, बुद्धिमानीपूर्वक उपयोग कर पाता है। शक्तियां हम सबके पास हैं समान-बुद्ध हों कि हिटलर, महावीर हों कि स्टैलिन, मोहम्मद हों कि माओ, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। शक्तियां सबके पास बराबर हैं। लेकिन बुद्धिमानीपूर्ण उपयोग, वह सबके पास नहीं दिखाई पड़ता। अधिक लोग अपनी ही शक्तियों के दुरुपयोग में दबते हैं और नष्ट होकर मर जाते हैं। कामवासना शक्ति है, ब्रह्मचर्य बन सकती है, लेकिन व्यभिचार बनकर समाप्त हो जाती है। जो भी हमारे पास है, अगर उसका प्रज्ञापूर्वक उपयोग न हो सके, तो दिव्यशक्ति आत्मघाती हो जाती है। और स्वतंत्र हैं हम उपयोग करने को। कोई कहेगा नहीं कि ऐसा मत करो। हम स्वतंत्र हैं। ____ मुल्ला नसरुद्दीन एक झाड़ पर बैठा है कालिदास के पोज में। काट रहे हैं उसी शाखा को जिस पर । बैठे हुए हैं। बिलकुल गिरने के करीब हैं। नीचे से एक आदमी गुजरता है। वह कहता है, देखो महानुभाव, आप गिर जाओगे। तो मुल्ला ने कहा, तुम कोई ज्योतिषी हो? जब हम अभी गिरे नहीं, तो तुम भविष्य बता रहे हो और मुफ्त में बता रहे हो। बिना पूछे बता रहे हो। जाओ अपने रास्ते से, ज्योतिष में मेरा विश्वास नहीं! अब ज्योतिष का कुछ लेना-देना न था। काट रहे थे, काटते चले गए, क्योंकि ज्योतिष में उनका भरोसा नहीं था। फिर गिरे। जब नीचे गिरे, तो कहा कि मान गए, आदमी ज्योतिषी था। भागे। दूर निकल गया था दो मील आदमी। पकड़ा, पैरों पर गिर पड़े। कहा, जरा हाथ देखकर बता, मेरी मौत कब होगी? उस आदमी ने कहा कि मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूं। मुल्ला ने कहा, अब मैं छोडूंगा नहीं। हम समझ गए कि भविष्य तू देख लेता है। बताना ही पड़ेगा। उसने कहा, ज्योतिष से मेरा कोई संबंध नहीं है। साधारण आंखों का, छोटी सी बुद्धि का उपयोग किया है। मुझे कुछ पता नहीं भविष्य-अविष्य का। लेकिन इतना कोई भी कह सकता है कि जिस डाल पर बैठे हो उसको काटोगे, तो मरोगे, गिरोगे। हम करीब-करीब सभी जिस डाल पर बैठे हैं, उसी को काट रहे हैं। सभी कालिदास के पोज में हैं। यह कालिदास बड़ा, कहना चाहिए टाइप, ऐसा आदमी है जो हम सबके भीतर के टाइप की खबर देता है। हम सब उसी डाल को काटते रहते हैं। पर पता नहीं चलता, क्योंकि डालें सूक्ष्म हैं, काटने का ढंग सूक्ष्म है। एक साधारण वृक्ष पर कोई बैठकर काटता है, तो हमको भी दिख जाता है कि गिरेगा। लेकिन 7208
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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