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अंतर-आकाश में उड़ान, स्वतंत्रता का दायित्व और शक्तियां प्रभु-मिलन की ओर
हम सब काट रहे हैं। न हमें उन डालों का पता है, जिन पर हम बैठे हैं; न हमें उन हथियारों का पता है, जिनसे हम काट रहे हैं। न हमें नीचे की गहराई का पता है, जहां हम गिरेंगे। और अगर कोई नीचे से कहता हुआ भी निकले कि देखो, गिर जाओगे, तो हम उससे कहते हैं, तुम कोई ज्योतिषी हो ? भविष्य बता रहे हो और बिना पूछे बता रहे हो !
क्या कर रहे हैं हम अपनी शक्तियों के साथ ? स्युसाइड, आत्मघात कर रहे हैं। तर्क, एक शक्ति है हमारे पास दिव्य, लेकिन हम करते क्या हैं? तर्क हमें परमात्मा तक पहुंचा सकता है, अगर हम उसका ठीक उपयोग कर पाएं। लेकिन तर्क का हम उपयोग करते हैं परमात्मा से दूर रहने के लिए, बचने के लिए। अगर हम तर्क का ठीक उपयोग कर पाएं, जैसा कि सुकरात ने किया...। सुकरात ने तर्क का बहुत उपयोग किया। और आखिर में उसने कहा कि तर्क का उपयोग कर-कर के मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि तर्क दोनों ही बातें सिद्ध कर सकता है, इसलिए उसके सिद्ध करने का कोई अर्थ नहीं है। दोनों ही बातें सिद्ध कर सकता है। कह सकता है ईश्वर है और सिद्ध कर सकता है, और कह सकता है ईश्वर नहीं है और सिद्ध कर सकता है। ऐसा हुआ ।
मुल्ला नसरुद्दीन को एक आदमी ने चैलेंज कर दिया, चुनौती दे दी कि विवाद होकर रहेगा। तुम बड़े ज्ञानी बने हो ! तुम जो बातें कह रहे हो, उसका खंडन किया जाएगा। दिन तय हो गया, भीड़ इकट्ठी हो गई। नसरुद्दीन आया। नसरुद्दीन ने उस आदमी से कहा कि बोलो मेरे खिलाफ । तुम्हें जो कहना है, वह कहो। उस आदमी ने नसरुद्दीन का खूब खंडन किया। जो-जो नसरुद्दीन के विचार थे, उनको तोड़ा। एक-एक को टुकड़े-टुकड़े कर डाला। फिर गौरव से, जीतकर गौरव से उसने नसरुद्दीन की तरफ देखा । नसरुद्दीन ने कहा, आश्चर्य ! कुशल हो, प्रतिभाशाली हो । अब एक काम और करो। अब जितनी चीजें तुमने खंडित की हैं, उनको सिद्ध करके बताओ। तब तुम्हारे तर्क की पूरी कुशलता का पता चले।
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वह आदमी तो आ गया था जोश में। गर्मी में था, होश में तो था नहीं। वह नसरुद्दीन की ट्रिक समझ न पाया। उसने नसरुद्दीन सही है, यह सिद्ध करना शुरू कर दिया। घंटेभर में तोड़ा था जमीन पर, घंटेभर में फिर नसरुद्दीन को बनाकर खड़ा कर दिया। नसरुद्दीन ने लोगों से कहा कि देखो, आदमी पागल है। इसकी तुम कौन सी बात में भरोसा करते हो - पहली कि दूसरी ? उन लोगों ने कहा, इसकी हम अब कभी भी किसी बात में भरोसा न करेंगे। नसरुद्दीन ने कहा कि जाओ, तुम हार गए। नसरुद्दीन ने एक तर्क भी न दिया ।
असल में तर्क दोनों ही काम कर सकता है। तर्क दुधारी तलवार है। वह दोनों काम बराबर करता है। सागर यूनिवर्सिटी के निर्माता डाक्टर हरिसिंह गौर के संबंध में एक बहुत प्रसिद्ध घटना है कि वह प्रिवी कौंसिल में एक मुकदमा लड़ रहे थे। संभवतः भारत में उन जैसा कानूनविद उस समय नहीं था। हिंदुस्तान के शायद वह अकेले वकील थे, जिनके तीन आफिस थे - एक पेकिंग में और एक लंदन में और एक दिल्ली में पूरे साल यहां से वहां भटकते रहते थे। करोड़ों रुपए उन्होंने कमाए। वह सब सागर विश्वविद्यालय बना। लेकिन कभी किसी भिखारी को एक पैसा दान नहीं दिया। सागर में ऐसा कहा जाता था कि अगर कोई भिखारी उनके घर की तरफ चला जाए, तो लोग समझ जाते थे कि नया भिखारी है। क्योंकि वे कभी... । नया भिखारी है, अपरिचित है गांव से, क्योंकि हरिसिंह गौर के घर से कभी एक
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