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________________ अंतर-आकाश में उड़ान, स्वतंत्रता का दायित्व और शक्तियां प्रभु-मिलन की ओर की खोज ही मूढ़ता है। उससे कुछ मिलने वाला नहीं। उससे सिर्फ दूसरे को दबाने की सुविधा मिलती है, अपने को पाने की नहीं। और दूसरे को मैं कितना ही दबाऊं, इससे क्या हल होता है? समझदार खोजता है शांति, शक्ति नहीं। और शांति में समझ का फूल खिलता है। यह दुर्भाग्य है कि जिनके पास समझ होती है, उनके पास शक्ति नहीं होती; और जिनके पास शक्ति होती है, उनके पास समझ नहीं होती। यह इतिहास की दुर्घटना है। इससे हम पीड़ित हैं। क्योंकि समझदार राह के किनारे खड़े रह जाते हैं और बुद्ध राजसिंहासनों पर चढ़ जाते हैं। फिर उपद्रव होने ही वाला है। यह सारा जो उपद्रव है, उसका कारण है। और यह उपद्रव मिट नहीं सकता। क्योंकि शक्ति मिलते ही, जिसके पास बुद्धि नहीं है, वह भी शक्ति की गर्मी में बुद्धिमान मालूम पड़ने लगता है। वह भी बुद्धिमत्ता की बातें करने लगता है। सुना है मैंने कि नसरुद्दीन एक सम्राट के घर सेवक हो गया था। भोजन के लिए पहले ही दिन बैठा था, तो सम्राट ने कहा कि देखो, यह सब्जी कैसी बनी है? नसरुद्दीन ने कहा, यह सब्जी, यह अमृत है। रसोइए ने सुना, दूसरे दिन भी वही सब्जी बना लाया। सम्राट थोड़ा बेचैन हुआ, लेकिन नसरुद्दीन उसकी तारीफ हांके जा रहा था कि यह बिलकुल अमृत है। इसको जो खाता है, वह कभी मरता ही नहीं। तो सम्राट किसी तरह खा गया। रसोइए ने तारीफ सुनी। तीसरे दिन फिर बना लाया। सम्राट ने कहा, हटाओ इस अमृत को यहां से। यह मरने के पहले ही मुझे मार डालेगा। हाथ मारकर उसने थाली नीचे पटक दी। नसरुद्दीन ने कहा, हुजूर, यह बिलकुल जहर है। इससे सावधान रहना। सम्राट ने कहा, तू आदमी कैसा है ? तू दो दिन तक अमृत कहता रहा, अब जहर कहने लगा? उसने कहा, मैं सब्जी का गुलाम नहीं हूं, आपका गुलाम हूं। यू पे मी, तुम मुझे तनख्वाह देते हो, सब्जी मुझे तनख्वाह नहीं देती। जब तुम खा रहे थे तो अमृत थी, जब तुम फेंक रहे हो तो जहर है। हमें क्या लेना-देना है! न हम खा रहे हैं, न हम फेंक रहे हैं। ____ तो जिसके हाथ में ताकत है, उसके आसपास ऐसे लोग इकट्ठे हो जाते हैं, जो कहते हैं, आप-आप ईश्वर हैं। हिटलर ने एक नाटक मंडली में काम करने वाले एक अभिनेता को पकड़वाकर बुलवाया। क्योंकि वह वहां मजाक का काम करता था। नाटक मंडली में मसखरे का काम करता था। और जर्मनी में जब हिटलर ताकत में था, तो हेल हिटलर, हिटलर की जय हो, वह महामंत्र था। गायत्री जर्मनी की वह थी। यह जो अभिनेता था, मसखरा, यह मंच पर आकर कहता था, हेल...। और फिर कहता, क्या नाम है उस नालायक का? इतना ही कहकर रुक जाता। हेल...क्या नाम है उस मूर्ख का? तो सारे लोग समझ तो जाते कि हेल के बाद हिटलर होना चाहिए, इसमें कोई शक तो था नहीं। पूरा हाल हंसता। हिटलर ने उसको बुलवा लिया। उसने कहा कि तूने मेरा व्यंग्य किया? और उसने कहा, मैंने कभी जिंदगी में आपका नाम ही नहीं लिया। मैं तो सिर्फ इतना ही कहता हूं, हेल...क्या नाम है उस मूर्ख का? इससे ज्यादा मैंने कभी कछ कहा नहीं। वह तो जेल में डाल दिया गया। वह सड़ा जेल में, मरा, क्योंकि शक्ति के अंधे लोग व्यंग्य भी तो नहीं समझ सकते हैं। हिटलर की जगह कोई बुद्धिमान होता, तो हंसता, प्रसन्न होता, पुरस्कार देता। भारी चोट पड़ गई। 2077
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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