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अंतर-आकाश में उड़ान, स्वतंत्रता का दायित्व और शक्तियां प्रभु-मिलन की ओर
ऋषि कहता है, शुद्ध परमात्मा ही उनका आकाश है। यही महासिद्धांत है।
यह भीतर का जो आकाश है बादलरहित, मेघरहित, विचाररहित, मनरहित - आकाश का तभी पता चलेगा। जब आकाश में बादल घिर जाते हैं, तो बादलों का पता चलता है, आकाश का पता नहीं चलता। हालांकि आकाश मिट नहीं गया होता, सदा बादलों के पीछे खड़ा रहता है। और बादल भी आकाश में ही होते हैं, आकाश के बिना नहीं हो सकते। लेकिन जब बदलियों से घिरा होता है आकाश, तो बदलियों का पता चलता है, आकाश का पता नहीं चलता । विचारों से, मन से घिरे हुए भीतर के आकाश का भी पता नहीं चलता ।
डेविड ह्यूम ने कहा है कि सुनकर ये बातें कि भीतर भी कोई है, मैं बहुत बार खोजने गया, लेकिन जब भी भीतर गया, तो मुझे कोई आत्मा न मिली, कोई परमात्मा न मिला। कभी कोई विचार मिला, कभी कोई वासना मिली, कभी कोई वृत्ति मिली, कभी कोई राग मिला, लेकिन आत्मा कभी भी न मिली। वह ठीक कहता है। अगर आप अपने हवाई जहाज को उड़ाएं, या अपने पंखों को फैलाएं आकाश की तरफ - और बदलियां आपको मिलें, और बदलियों की ही खोज करके आप वापस लौट आएं, बदलियों को पार न करें, तो लौटकर आप भी कहेंगे, आकाश कोई भी न मिला। बदलियां ही बंदलियां थीं, धुआं ही धुआं था, बादल ही बादल थे, कहीं कोई आकाश न था ।
अपने भीतर भी हम सिर्फ बदलियों तक जाकर लौट आते हैं। उनके पार प्रवेश नहीं हो पाता। जब तक उनके पार प्रवेश न हो— जैसे आप कभी हवाई जहाज पर उड़े हों बादलों के ऊपर, और बादल नीचे छूट जाते हैं - वैसे ही ध्यान में भी एक उड़ान होती है, जब विचार नीचे छूट जाते और आप ऊपर हो जाते हैं, तब खुला आकाश मिलता है। तब अंतर का आकाश मिलता है। इसे ऋषि कहता है, महासिद्धांत। क्योंकि इस पर सब कुछ निर्भर है।
कहा ं है, शम-दम आदि दिव्य शक्तियों के आचरण में क्षेत्र और पात्र का अनुसरण करना ही चतुराई है।
शम-दम आदि दिव्य शक्तियों के आचरण में क्षेत्र और पात्र का अनुसरण करना ही चतुराई है। मनुष्य के पास शक्तियां हैं। मनुष्य के पास शक्तियां तो जरूर हैं, लेकिन समझ सबकी जागी हुई नहीं है। इसलिए शक्तियों का दुरुपयोग हो जाता है। और शक्ति के साथ समझ न हो, तो खतरनाक है। हां, समझ के साथ शक्ति न हो, तो कोई खतरा नहीं है। लेकिन होता ऐसा है कि समझ के साथ अक्सर शक्ति नहीं होती और नासमझ के साथ अक्सर शक्ति होती है । इस दुनिया का दुर्भाग्य यही है कि नासमझों के हाथ में काफी शक्ति होती है। उसका कारण है कि नासमझ शक्ति की ही तलाश करते हैं। समझदार तो शक्ति की तलाश बंद कर देते हैं।
फ्रेड्रिक नीत्से ने अपने जीवन का सार - सिद्धांत जिस किताब में लिखा है, उसका नाम है, द विल टु पावर । शक्ति को खोजने की वासना, आकांक्षा, अभीप्सा, संकल्प । नीत्से कहता है, इस जगत में पाने योग्य एक ही चीज है, वह है शक्ति, पावर । नीत्से कहता है, कोई सुख नहीं पाना चाहता। सब लोग शक्ति पाना चाहते हैं । और जब शक्ति मिलती है, तब सुख एक बाय-प्रोडक्ट है। और शक्ति पाने के लिए आदमी कितने दुख उठा लेता है। अनंत दुख उठाने को राजी हो जाता है।
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