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अंतर-आकाश में उड़ान, स्वतंत्रता का दायित्व और शक्तियां प्रभ-मिलन की ओर
क्योंकि जब तक विपरीत का अनुभव न हो...जैसे शिक्षक काले ब्लैक बोर्ड पर सफेद खड़िया से लिखता है। सफेद दीवार पर भी लिख सकता है, लिखने में कोई अड़चन नहीं है, लेकिन तब दिखाई नहीं पड़ेगा। लिखा भी जाएगा और दिखाई भी नहीं पड़ेगा। लिखा तो जाएगा, पढ़ा नहीं जा सकेगा। और ऐसे लिखने का क्या प्रयोजन, जो पढ़ा न जा सके। ___ सुना है मैंने कि एक आदमी सुबह-सुबह मुल्ला नसरुद्दीन के द्वार पर आया। गांव में अकेला ही पढ़ा-लिखा आदमी था नसरुद्दीन। और जहां एक ही आदमी पढ़ा-लिखा होता है, समझ लेना चाहिए, पढ़ा-लिखा कितना होगा! उस आदमी ने कहा कि जरा एक चिट्ठी लिख दो मुल्ला। मुल्ला ने कहा, मेरे पैर में बहुत दर्द है, मैं न लिख सकूँगा। उस आदमी ने कहा, हद हो गई। कभी हमने सुना नहीं कि लोग पैर से चिट्ठी लिखते हैं। हाथ से लिखो। पैर में दर्द है, रहने दो। हाथ में क्या अड़चन है? नसरुद्दीन ने कहा कि यह जरा रहस्य की बात है, यह न पूछो तो अच्छा। हम लिख न सकेंगे, चिट्ठी हम न लिखेंगे, पैर में बहुत तकलीफ है। उस आदमी ने कहा, जरा रहस्य ही बता दो। यह बात क्या है, मेरी समझ में नहीं आता। नसरुद्दीन ने कहा, बात यह है कि हमारी लिखी चिट्ठी हमारे सिवाय और कोई नहीं पढ़ पाता। तो दूसरे गांव की यात्रा करने की अभी हमारी हैसियत नहीं है। पैर में तकलीफ बहुत है। लेकिन जो, नसरुद्दीन ने कहा, जो पढ़ा ही न जा सके, उसके लिखने का क्या फायदा। इसलिए हाथ तो फुर्सत में है, . लेकिन पढ़ेगा कौन?
सफेद दीवार पर लिख तो सकते हैं हम, पढ़ा नहीं जा सकता। और जो पढ़ा नहीं जा सकता, उस लिखने का कोई अर्थ नहीं। इसलिए काले ब्लैक बोर्ड पर लिखना पड़ता है। उस पर दिखाई पड़ता है उभरकर। आकाश पर जब काले बादल होते हैं, तो दिखाई पड़ती है बिजली कौंधती।। • भीतर जो छिपा है परमात्मा, उसके अनुभव के लिए पदार्थ की गहनता में उतरना अनिवार्य है। संन्यास को भी जानने के लिए गृहस्थ हुए बिना कोई मार्ग नहीं। सत्य को भी जानने के लिए असत्य के रास्तों से गजरना पडता है। और इसे जब कोई अनिवार्यता समझता है और इस रहस्य को समझ जाता है, तो फिर जिस असत्य से गुजरा, उसके प्रति भी धन्यवाद ही मन में उठता है। क्योंकि उसके बिना सत्य तक नहीं पहुंचा जा सकता था। जिस पाप से गुजरकर पुण्य तक पहुंचे, उस पाप की भी अनुकंपा ही मालूम होती है अंदर, क्योंकि उसके बिना पुण्य तक नहीं पहुंचा जा सकता था।
बोधिधर्म ने कहा है-और बोधिधर्म इस पृथ्वी पर दस-पांच लोगों में एक है, जिन्होंने गहनतम सत्य के अनुभव को जाना—बोधिधर्म ने कहा है मरने के क्षण में, कि संसार, तेरा धन्यवाद, क्योंकि तेरे बिना निर्वाण को जानने का कोई उपाय न था। शरीर, तुझे धन्यवाद, क्योंकि तेरे बिना आत्मा को पहचानने की सुविधा कैसे बनती। सब पापो, तुम्हारी अनुकंपा मुझ पर, क्योंकि तुमसे गुजरकर मैं पुण्य के शिखर तक पहुंचा। तुम सीढ़ियां थे।।
तब जीवन विपरीत होकर भी विपरीत नहीं रह जाता। तब जीवन विपरीत होकर भी एकरस हो जाता है और वैपरीत्य में भी एक हार्मनी और एक संगीत उत्पन्न हो जाता है। संगीत पैदा होता है विभिन्न स्वरों से। और अगर संगीत के किसी स्वर को बहुत उभारना हो, तो उसके पहले बहुत धीमे स्वर पैदा करने पड़ते हैं। तब उभरकर संगीत प्रगट होता है।
2017